हाइलाइट्स
- कनॉट प्लेस, लोदी रोड, नेहरू प्लेस की दीवारों पर की गई हैं पेेटिंग
- पर्यटकों को लुभाती हैं ये कलाकृतियां
- दिल्ली के रेलवे स्टेशनों, फ्लाईओवरों को भी किया जा रहा है पेंट
शहर में घूमते हुए किसी मोड़ पर जिंदगी के रंगों से मुलाकात करना किसे अच्छा नहीं लगेगा। गली कूचों में यूं ही टहलते हुए कहीं युवाओं की बेबाकी के रंगों से परिचय हो जाए, तो कही अपना मासूम सा बचपना मुस्कुराता मिले, तो कही जिम्मेदारी का बोध करा जाए, तो कही किसी बेजान सी पड़ी चीज से कुछ सुनाई देता सा नजर आए। शहर की चिल्लपो के बीच गली कूचों, बाजारों के दरों- दीवारों पर कुछ बोलती हुई नजर आती हैं यह खूबसूरत पेंटिगस। इस कला के लिए पूरा शहर ही कैनवास बन जाता है, जिस पर सरोकार से लेकर समसमाजिक विषयों को अनोखे रंगों में बिखेरा जा रहा है। स्ट्रीट आर्ट ने दिल्ली शहर को भी नई सूरत देना शुरू किया है। दूर दराज के गांवों के घरों के चौखटों से निकल कर महानगर के दरों दीवारों पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं भित्तचित्र जो अब स्ट्रीट आर्ट के नाम से लोकप्रिय हो रही है। शाहजहांनाबाद में भी भित्तचित्र का अनोखा अंदाज आज भी यहां की हवेलियों में मुस्कुराते दिखाई दे जाते हैं। लेकिन महानगरीय संस्कृति में अब इस कला को एक नए कलेवर में स्ट्रीट आर्ट के रूप में सभी के सामने हैं। लिहाजा भित्तचित्र की परंपरा का नया आयाम स्ट्रीट आर्ट के रूप में बिखर रहा है, निखर रहा है। दिल्ली की कई गलियों और उनके घरों की दीवारों पर बिखरे चटख रंगों में सिर्फ सामाजिक सरोकार के संदेश ही नहीं बल्कि आज की जरूरतों को भी मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं स्ट्रीट आर्ट बनाने वाले कलाकार। दिल वालों की दिल्ली के दिलकश अंदाज को गलियों में भी कूचों और रंगों के जरिए खूबसूरती से निखर रहा है। कनॉट प्लेस (connaught place), शंकर मार्केट (shankar market), लोधी गार्डन (lodhi garden) , खान मार्केट (khan market ), बाल भवन (bal bhawan) , नेहरू प्लेस (nehru place), इफ्को चौक (ifco chowk) के साथ राजाजी मार्ग, नरेला रेलवे स्टेशन (narela railway station) और सब वे में भी जिंदगी के तमाम रंगों को समेटा गया।
शंकर मार्केट, कनॉट प्लेस, खान मार्केट
कनॉट प्लेस और उसके आसपास बने बाजारों में बिकते चीजों के साथ साथ एक और विषय भी इन दिनों राहगीरों का ध्यान आकर्षित कर रहा है। शंकर मार्केट के बाहर से गुजरते हुए बड़ा सा ड्रेगन और उसके पीछे युवा मस्ती के तमाम रंग पर नजर पड़ती हैं। युवाओं को आकर्षित करने के लिए चटक रंगों से गाते बजाते युवाओं को दिखाया गया है। दिल्ली स्ट्रीट आर्ट के नीरज बताते हैं कि बाजारों के फेसलिफ्ट के मकसद इन दिनों इसके दीवारों को कुछ विषयों के साथ पेंट किया गया है। बाजारों को पेंट करते वक्त उसके मिजाज को भी बखूबी दिखाने का प्रयास किया जाता है। लोग खरीददारी करने के लिए किस कदर उत्साहित होते हैं उस खुशी के रंगों को भी देखाना होता है। दीवार कैनवास तो है लेकिन जीवन के रंग कई हैं। कनॉट प्लेस में महिला सशक्तिकरण को दर्शाया गया है। दिल्ली में महिलाएं सुरक्षित तभी हो सकती है जब खुद महिलाएं अपने अंदर की शक्ति को पहचानेंगी। इसलिए महिलाओं को किसी शेर के ऊपर बिठाया दिखाया गया तो कही बाज पर सवार हो कर अपनी शक्ति का बोध कराती महिलाएं। इसके अलावा दिल्ली के ढोल, पंजाबी, तीज त्योहार, कपड़े, गौरया भी पेंटिंग में खास तव्वजों दी गई है।
हेरीटेज नरेला रेलवे स्टेशन में अपने से लगे कुछ मुसाफिर
करीब साल 1890 में बने नरेला रेलवे स्टेशन को शायद ही कोई जानता होगा लेकिन इस स्टेशन पर रंगों के बिखर जाने के बाद इसकी रंगत में लोग अब दूर दूर से खिंचे चले आ रहे हैं। बाहरी दिल्ली के इस स्टेशन पर अगर आप घूमे तो एक पल के लिए एक ट्रेन के मुसाफिर सा अनुभव होने लगेगा। किस तरह एक मुसाफिर अपने स्टील के बक्से को लेकर शहरों की भीड़ में गुम होने के लिए भाग रहा है, उन मुसाफिर के मनोभाव से भी यहां मुलाकात हो जाएगी। चूंकि यह रेलवे स्टेशन हेरीटेज स्टेशन हैं इसलिए यहां की छतों पर भाप के इंजन भी बनाए गए हैं। ढलान वाली छतों पर रेल की पटरी है और उस पर कुछ पुराने दिनों के हमसफर भाप के इंजन भी मुस्कुराते नजर आएंगे। स्टेशन के अंदर आप दिल्ली के कुछ पेड़ों और परिंदों से भी मिलेंगे। हरियाली और उसकी महत्व को समझाने के लिए अच्छा प्रयास किया गया है। ऑयल और एक्रीलिक पेंट में बनी इन पेंटिंग में हम और आप घूमते नजर आ जाएंगे, लिहाजा इन्हें निहारा बेहद रोचक लगता है।
हौज खास व लोधी कॉलोनी
हौज खास व लोधी कालोनी में लोगों ने अपने घरों को आककर्षित करने के लिए जिंदगी के चटक रंगों से लबरेज विषयों को दीवारों पर पेंट कराया है। लोधी कालोनी में सफाई के महत्व को ध्यान में रखते सड़क साफ करते लोग, इतिहास के गलियारों से रानी झांसी की लड़ते हुए पेंटिंग, लाल, हरे, पीले, नीले जैसे चटख रंगों से लबरेज दीवारों पर थ्री डी इफेक्टस का भी बखूबी इस्तेमाल किया गया है। कभी एक रंग में रंगी दीवारें अब जिंदगी के रंगों से लबरेज नजर आती हैं। आते जाते लोग यहां सेल्फी लेते नजर आ जाते हैं, तो कुछ लोग सफाई का महत्व भी सीख जाते हैं। कॉलोनी के लोग भी इस स्ट्रीट आर्ट से बेहद खुश हैं। अब यह कालोनी की दीवारें बोलती हुई दिखाई देती है।
गार्डन के डस्टबिन ने किया आकर्षित
लोधी गार्डन में कभी पिकनिक मनाने आए लोगों के लिए डस्टबिन जैसी चीज देखने की फुर्सत नहीं होती थी। खाने पीने की चीजों और फलों के टुकड़े सहित कई कूड़ा करकट वहीं पीछे छोड़ कर चल दिया करते थे लोग। लेकिन यहां के डस्टबिन अब लोगों को ऐसा करने से पहले ही आगाह करते हुए नजर आते हैं। इनके इस्तेमाल के प्रोत्साहन के लिए इन पर कुछ संदेश लिखे गए हैं। कुछ डस्टबिन बादलों के रंगों में रंगे हैं, तो कुछ जंगल के, तो कुछ महानगरीय संस्कृति में। कूड़ा यहां फैंक, यूज मी, बी माई फ्रेंड जैसे कई जुमले लिखे गए हैं। हरे भरे पेड़ों के बीच अब इन डस्टबिन को जीवंत देखा जा सकता है।
बाल भवन में मिलिए अपने बचपन से
आईटीओ स्थित बाल भवन भी अब बोलता हुआ प्रतित होता है। चार दीवारी के अंदर बच्चों के भीतर उठते गिरते उन सभी भावों को खूबरसूरती से उकेरा गया है। दीवारें बच्चों को ट्रेन के सफर पर ले जाती हुई प्रतीत होती है। दिल्ली, मुंबई, पटना और चेन्नई शहर के स्टेशन और सभी शहरों की परंपरा को उकेरा गया है। देश की कला संस्कृति और परंपरा किस कदर रंगीन और खूबसूरत है यहां की दीवार इसकी गवाही देती नजर आती है। बच्चों के मन को छूने के लिए आर्टिस्ट ने बचपन के सभी रंगों को अपनी पेंटिग में समाहित किया है। बच्चे के संसार को इन दीवारों ने एक आयाम दे दिया है। बचपन के दिनों में किस तरह लोग प्लेटफार्म पर बैठ कर ट्रेन का इंतजार हुआ करता था और इस बीच कई दूसरी ट्रेनों को आते जाते देखने, प्लेटफार्म पर खाने के लिए जिद्द करते बच्चे। यह सारे किरदारों से लोग यहां मिल सकते हैं।
योगेश सैनी, संस्थापक, दिल्ली स्ट्रीट आर्ट
पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर होने के नाते देश विदेश की यात्रा की। सुदूर प्रांतों में भित्त चित्र, मधुबनी आर्ट जैसे कई लोक कला को करीब से देखने का मौका मिला। न्यूयार्क, बर्लिन, रोम, म्यूनिच जैसे शहर की खूबसूरती में वहां की कला और संस्कृति को वहां की गलियों में घूम कर ही देखा जा सकता है। गली कूचों और घरों के बाहर वहीं की संस्कृति को दीवारों पर उकेरा गया है। इन सुंदर दीवारों पर आते जाते एक नजर तो निगाह टिक ही जाती है। रोजाना उन्हीं गलियों में घूमते घूमते सोचा कि क्यों न इसे अपने देश में भी शुरू किया जाना चाहिए। दीवारों पर पेंट करना कोई नई बात नहीं है लेकिन कैनवास पर ख्यालों और वहां के लोगों की बातों को रंगों के जरिए जबान देना ही स्ट्रीट आर्ट है। शुरुआत डस्टबिन को रंगने से की गई। पार्को में डस्टबिन होने के बावजूद भी लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते। यह दुख की बात थी लिहाजा लोधी गार्डन के 131 डस्टबिन को रंगने की मुहिम शुरू की गई। डस्टबिन को पेंट करते समय कई लोगों ने अपने कदमों को रोक कर पूछा कि यह क्या हो रहा है? लोगों ने इसे नोटिस करना शुरू किया। उस दौरान लोगों का रिस्पोंस देखा। लोगों ने इस प्रयास के बाद इसका इस्तेमाल करना शुरू किया। इससे सरकारी संस्थाओं को भी इसकी जरुरत महसूस होने लगी। जो मार्केट पहले चल नहीं रही थी उसे नए कलेवर में दिखाने के लिए मार्केट की दीवारों को नया रूप दिया गया। राहगीरों की नजरें उन ड्रेगन और शहर की मस्ती को दिखाने के लिए पेंट किए गए गाते बजाते लोगों पर पड़ी। अब लोग मार्केट की दीवारों पर हुए पेंट को देखने के लिए इस तरफ कदम मोड़ लेते हैं। इससे पेंटिग का उद्देश्य पूरा होता गया। अब राजाजी मार्ग पर थ्री डी पेंटिग का इस्तेमाल करते हुए जेब्रा क्रासिंग को तैयार किया गया है। ताकि लोग इस कला के माध्यम से सोचने पर मजबूर हों। दिल्ली में समस्या यह है कि लोग अपनी सुविधा के आगे सार्वजनिक सुविधाओं को इस्तेमाल नहीं करते, जैसे डस्टबिन, सब वे, शौैचालय, जेब्रा क्रासिंग। पेंटिंग के माध्यम से लोगों में जागरुकता लाने का यह प्रयास सार्थक साबित हो रहा है। शायद इसलिए लोग स्ट्रीट आर्ट को समझने लगे हैं और इसे बढ़ावा दे रहे हैं। शुरुआत में तो इस कान्सेप्ट को समझाने में काफी मेहनत करनी पड़ती थी।