Viceroy of India, Lord Linlithgow at his desk in New Delhi

इर्विन अस्पताल का शिलान्यास 1930 में लार्ड इर्विन द्वारा हुआ था, मगर यह बनना शुरू हुआ 1934 में और अप्रैल 1935 में बनकर तैयार हुआ। करीब छब्बीस लाख रुपये इस पर खर्च आए। इसमें 320 मरीजों की गुंजाइश रखी गई थी। 20 पारिवारिक वार्ड बनाए गए और दस विशेष वार्ड। अब तो यह अस्पताल बहुत बढ़ गया है। इसके कई नए कक्ष बनाए गए हैं। मरीजों के बैड दुगुने से भी अधिक हो गए हैं। एक कक्ष पंडित गोविंद बल्लभ पंत के नाम से बनाया गया है।

इर्विन के बाद 1932 में लार्ड विलिंगडन आया, जो 1936 तक दिल्ली में रहा। इसके जमाने की यादगार विलिंगडन अस्पताल है। यह नई दिल्ली में गोल डाकखाने के पास स्थित है। इसके जमाने की दूसरी यादगार अखिल भारतीय युद्ध स्मारक है, जो राजपथ पर बीच में बना हुआ है। यह एक सफेद पत्थर का 13 फुट ऊंचा और 40 फुट चौड़ा द्वार है। द्वार के ऊपरी भाग में दोनों ओर गेटवे आफ इंडिया लिखा हुआ है। इसे इंडिया गेट कहकर पुकारते हैं। 10 फरवरी 1921 के दिन ड्यूक आफ कनाट ने इसका शिलान्यास किया था। 1933 में यह बनकर तैयार हुआ। 1914-18 तक के युद्ध में जो हिंदुस्तानी फौजी आहत हुए, उनके नाम इसकी दीवारों पर लिखे हुए है। इंडिया गेट के दोनों ओर मैदान में फव्वारे लगे हैं। इस इंडिया गेट के पश्चिम में किंग जार्ज पंचम का संगमरमर का आदमकद बुत लगा हुआ है, जिसके ऊपर छतरी है और नीचे फव्वारा।

विलिंगडन का जमाना भी ऐतिहासिक घटनाओं से पूर्ण रहा है। इर्विन ने जो समझौता किया था, उसके अनुसार गांधीजी गोलमेज परिषद में शरीक होने इंग्लैंड गए, मगर वहां से वह दिसंबर के अंत में निराश होकर लौटे और आते ही फिर से सत्याग्रह युद्ध छिड़ गया, जो 1933 तक चला। विलिंगडन ने पूरे दमन की नीति बरती। गांधीजी से इसका कोई समझौता न हो सका।

1936 ई. में लार्ड लिनलिथगो आया, जो 1943 तक वाइसराय रहा। यह किसान वाइसराय कहा जाता है। इनके जमाने की कोई यादगार दिल्ली में नहीं है। मगर इसका काल खासकर ऐतिहासिक है, क्योंकि इसके जमाने में 1939 का द्वितीय महायुद्ध शुरू हुआ और 1940 में गांधीजी का व्यक्तिगत संग्राम तथा 1942 के अगस्त मास में भारत की आजादी का आखिरी युद्ध- ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू हुआ, जो 1945 तक चलता रहा। 9 अगस्त 1942 के दिन गांधीजी और अन्य समस्त नेताओं की गिरफ्तारी हुई और सारे देश में बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता संग्राम चला। कई लाख नर-नारी जेल गए। कई सौ मारे गए। इस जमाने में बड़े-बड़े अत्याचार हुए, मगर हिंदुस्तानी अविचलित रहे।

15 अगस्त 1942 के दिन आगा खां महल में गांधीजी के निजी सचिव महादेव देसाई की अकस्मात मृत्यु हो गई।

शुरू-शुरू में गांधीजी की लिनलिथगो के साथ अच्छी पटी। 1937 में भारत में विधानसभाओं का पहला चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने हिस्सा लिया और सूबों में वजारतें बनाई, मगर द्वितीय महायुद्ध के शुरू होते ही आपसी मतभेद बढ़ता गया, क्योंकि कांग्रेस ने युद्ध में सहायता देने से इंकार कर दिया।

लक्ष्मीनारायण का मंदिर इसके जमाने में रीडिंग रोड पर नई दिल्ली के तीन विख्यात उपासना स्थान तैयार हुए, जिनमें लक्ष्मीनारायण का मंदिर सबसे मशहूर है। इसे बिरला मंदिर भी कहते हैं। इसे सेठ जुगल किशोर बिरला ने बनवाया। इसका उद्घाटन 18 मार्च 1939 को गांधीजी ने किया था। मुसलमानों के अतिरिक्त अन्य समस्त धर्मावलंबी इसमें जा सकते हैं। मंदिर सड़क के किनारे ही बना हुआ है। संगमरमर की सीढ़ियां चढ़कर खुला सहन आता और फिर मंदिर-द्वार, जिसमें प्रवेश करके एक लंबा-चौड़ा दालान है और सामने की ओर तीन मंदिर। बीच में विष्णु भगवान और लक्ष्मी का मंदिर है और दाएं-बाएं शिव और दुर्गा के मंदिर हैं। मंदिर के साथ मिला हुआ गीता भवन है, जिसमें कृष्ण भगवान की खड़ी मूर्ति है। भवन में भजन-कीर्तन होता रहता है। मंदिर में जगह-जगह गीता के तथा उपनिषदों और अन्य धर्मग्रंथों के श्लोक दीवारों पर खुदे हुए हैं। जगह-जगह चित्र भी बने हुए हैं। मंदिर की पुश्त पर पहाड़ी के साथ एक बहुत लंबा-चौड़ा खुला उद्यान है, जिसमें पानी के फव्वारे छूटते रहते हैं और घास लगी हुई है। यह दर्शनार्थियों के लिए आराम करने का सुंदर स्थान है। मंदिर के साथ यात्रियों के लिए एक छोटी धर्मशाला भी है, जहां भोजन का प्रबंध भी है। इस मंदिर की ख्याति दिनोंदिन बढ़ रही है। वर्ष के कई उत्सव यहां होते हैं, खासकर जन्माष्टमी के दिन, जब सारा मंदिर बिजली से रोशन किया जाता है।

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