बांग्लादेश मुक्ति युद्ध (Bangladesh Liberation War) की पूरी कहानी
Bangladesh Liberation War भारत (India), पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों के रूप में एक समय नई समस्या का सामना कर रहा था। लाखों की संख्या में शरणार्थी पश्चिम बंगाल पहुंच रहे थे। देखते-ही-देखते इनकी संख्या दस लाख के आसपास पहुंच गई और इनके भरण-पोषण और पुनर्वास का इन्तजाम करना एक बड़ी समस्या बन गई। शरणार्थियों में ज्यादातर पूर्वी पाकिस्तान के हिन्दू थे, लेकिन बहुत-से मुसलमान भी थे।
इन्दिरा गांधी (Indir gandhi) ने वरिष्ठ और सम्मानित सोशलिस्ट नेता जयप्रकाश नारायण (jayaprakash narayan) को विश्व दौरे पर भेजा, ताकि वे विदेशी मुल्कों को यह बता सकें कि शरणार्थियों की बाढ़ से भारत पर कितना आर्थिक बोझ पड़ रहा था। उन्हें विश्व नेताओं को यह भी समझाना था कि पूर्वी पाकिस्तान के हालात को देखते हुए इन शरणार्थियों के लिए वहां रहना मुश्किल हो गया था। ( www.theyoungistaan.com )
इसके कुछ समय पहले (19 दिसम्बर, 1970) को हुए आम चुनावों में पूर्वी पाकिस्तान के लिए स्वायत्तता की मांग कर रही ‘अवामी लीग’ को पूर्वी पाकिस्तान की 169 सीटों में से 167 सीटें प्राप्त हुई थीं। दूसरी तरफ पश्चिम पाकिस्तान में ‘पाकिस्तान पीपल्ज पार्टी’ (पीपीपी) को 144 में से 88 सीटें प्राप्त हुई थीं। दोनों पाकिस्तानों की कुल 313 सीटों को देखते हुए शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली अवामी लीग (167 सीटें) के पास स्पष्ट बहुमत था। फिर भी राष्ट्रपति याहिया खान और ‘पीपीपी’ के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए राजी नहीं हुए तो शेख मुजीबुर्रमान ने पूर्वी पाकिस्तान के लिए स्वायत्तता की मांग कर डाली।
दोनों विजयी नेताओं में किसी तरह के समझौते के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे, बल्कि पाकिस्तान के दोनों हिस्सों के आपसी सूत्र ही खतरे में पड़ गए थे। राष्ट्रपति याहिया खान और भुट्टो ने मुजीब की चुनौती का मिल-जुलकर सामना करने का फैसला किया, जिसे वे पाकिस्तान को तोड़ने की कोशिश के रूप में देख रहे थे। मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया और उनकी पार्टी को बैन करके पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर दमन चक्र शुरू कर दिया गया। इस बीच (26 मार्च 1971) पूर्वी पाकिस्तान ने ‘बांग्लादेश’ के रूप में अपने आपको एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया था।
इस्लामाबाद के आदेश पर पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में ऐसे-ऐसे जुल्म ढाए और हत्या, बलात्कार और लूटपाट का ऐसा नंगा नाच खेला कि लोग डर के मारे अपना परवार छोड़कर शरणार्थियों के रूप में भारत की तरफ कूच करने लगे। देखते-ही-देखते इन भयभीत शरणार्थियों की संख्या लाखों में पहुंच गई तो भारत ने सीमा को बन्द करने का विचार किया। इस सम्बन्ध में नेहरू ने भी एक बार कहा था, “अगर हमारे पास किसी को सुरक्षा देने की माँग आती है, खासकर स्त्रियों और बच्चों को जिनकी जिन्दगी खतरे में हो या इससे भी बुरा होने की सम्भावना हो, तो उनके लिए कुछ न करना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन हो जाता है।