कहा जाता है कि दिल्ली की विजय के बाद नादिरशाह को इतने भोज दिए गए कि उसका पेट खराब हो गया और वह कुछ भारीपन महसूस करने लगा। हकीम अलवी खां को, जो शाही हकीम थे, बुलाया गया। वे अपनी दवाओं के साथ आए उन्होंने सोने और चांदी के पलड़ों वाली अपनी दवाओं की तराजू भी ले आए। सही खुराक को नापने के बाद और हकीम साहब के कुछ और अमल के बाद जब जड़ाऊ ढकने को उठाया गया तो नादिरशाह ने सोने की एक तश्तरी देखी जिस पर एक प्याला और एक क़ीमती पत्थर का चमचा रखा हुआ था।
उस प्याले में गुलकंद था जो गुलाब की पत्तियों, उनमें से निकले हुए रस और शीरीनी का मिश्रण था, नादिरशाह को उसकी शक्ल, ख़ुशबू और हकीम साहब की दिलकश मुस्कराहट इतनी अच्छी लगी कि उसने हकीम साहब के इशारे के बिना उस चमचे में से थोड़ा-सा गुलकंद लिया और खा गया। उसका जायका उसे इतना पसंद आया कि वह यह कहते हुए कि यह बहुत ही स्वादिष्ट हलवा है, सारे का सारा गुलकंद खा गया। नादिरशाह ने उन हकीम साहब को और भी कई तरीक़ों से आज़माया और अंत में उनसे इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें अपने साथ ही अपने देश ले गया।
एक मशहूर और योग्य हकीम आमतौर पर माहिर नाड़ी देखने वाला होता है। ऐसी बहुत-सी कहानियां मशहूर हैं जिनमें हकीमों को रोग का निदान बिना रोगी के कुछ बोले या पूछे, करते हुए बताया है। बहुत-सी पर्दानशीन औरतें अपनी कलाई हकीम के हाथ में पकड़ाना पसंद नहीं करती थी। ऐसी औरतें अपनी कलाई में एक मोटा धागा बांधकर उसका सिरा हकीम की तरफ़ बढ़ा देती थीं और वह उसी सिरे को थामकर नाड़ी देख लेता था और रोग का निदान करके नुस्ख़ा लिख देता था। निःसंदेह इन कहानियों में अतिशयोक्ति बहुत है।
उदाहरण के लिए, एक मशहूर हकीम को आज़माने के लिए लोगों ने एक बिल्ली के पंजे में धागा बाँध दिया और हकीम को बुलवा कर उससे यह कहकर कि अंदर कमरे में एक पर्दानशीन महिला की तबियत बड़ी ख़राब है, उसके हाथ में धागा थमा दिया। हकीम ने धागा पकड़ लिया और रोगिणी की नाड़ी से रोग का निदान करने लगा। हकीम इतना माहिर था कि वह समझ गया कि अंदर कोई महिला रोगी नहीं है बल्कि बिल्ली के पंजे में धागा बांधा हुआ है। उसने अपने नुस्खे में रोगिणी के लिए मांस के छीछड़े सुझा दिए जिन्हें बिल्लियों और कुत्तों को खिलाया जाता था।