लेखक—संजीव कुमार मिश्र

नया वर्ष अपने साथ नई उम्मीदें लेकर आता है। साल 2023 कई मायनों में देश के लिए महत्वपूर्ण साबित होगा। देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। अमृत काल की भी शुरुआत हो चुकी है। दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी वाला भारत (India) देश विश्वगुरू बनने की राह पर अग्रसर है। दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था का तगमा भी हम हासिल कर चुके हैं। आज युवा हर क्षेत्र में अपना दमखम दिखा रहे हैं और इन्हीं की बदौलत भारत भी तरक्की की सीढी चढता जा रहा है। लेकिन यह भी कटुसत्य है कि नशे के दलदल में युवाओं के पांव धंसते जा रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Amit shah) ने लोकसभा में बताया कि देश के 472 जिलों में नशे का जाल फैल चुका है। देश में इस समय कुल 766 जिले हैं। ऐसे में बरबस ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितनी बडी समस्या है। इसे लेकर तत्काल सजग होने की जरूरत है। नए साल में नशे के सौदागरों पर नकेल कसने की आवश्यकता है। ताकि युवा पीढी का भविष्य खराब होने से बचे। चंद दिनों पूर्व ही वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी मादक पदार्थों की तस्करी को लेकर चेताया था। उन्होंने कहा था कि अब तस्करी में शामिल बडी मछलियों को पकड़ना होगा। यह पता लगाना बेहतर जरूरी है कि अवैध ड्रग्स का पहाड़ आखिर कौन भेज रहा है।

भारत किस तरह मादक पदार्थों की तस्करी के मकड़जाल में उलझता जा रहा है और इसकी एक बानगी संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट से भी होती है। रिपोर्ट की मानें तो भारत में 2009 के मुकाबले 2018 तक नारकोटिक्स ड्रग्स के उपयोग में 30 प्रतिशत की बढोत्तरी हुई। यदि देश में नशीले पदार्थ की तस्करी रोकनी है तो उन दो गोल्डन ट्रायंगल को ध्यान में रखना होगा। दरअसल, देश की सीमा के पास दो गोल्डन ट्रांयगल बनते हैं। एक में म्यांमार, थाईलैंड और लाओस हैं तो दूसरे में ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान शामिल है। ये देश सर्वाधिक अफीम उत्पादक देशों में शामिल हैं। इस वजह से भारत के साथ लगती इनकी सीमा वाले इलाके संवेदनशील हो जाते हैं। भारत-पाकिस्तान बार्डर नशे की तस्करी के लिए सबसे संवेदनशील है। बार्डर के रास्ते हेराइन, चरस की तस्करी होती है।

अफगानिस्तान से बड़ी मात्रा में हेरोइन की तस्करी भारत के पश्चिमी हिस्सों राज्यों में होती है। म्यांमार से भारत के पूर्वी इलाके में नशे की खेप पहुंचाई जाती है। अफगानिस्तान के मादक द्रव्य पदार्थ की गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर समेत पंजाब तक तस्करी होती है। अधिकतर नशे की तस्करी बार्डर एरिया से होती है लेकिन हाल के वर्षों में समुद्री मार्ग का उपयोग भी बढा है। कुछ समय पहले ही गुजरात के मुंद्रा तट पर 3000 किलो ड्रग्स जब्त की गई थी। केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इसपर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि 2022 के नवंबर महीने तक देश में कुल 3017 किलोग्राम हेराइन जब्त की गई थी। इसका 55 प्रतिशत यानी करीब 1664 किलोग्राम हेराइन समुद्री मार्ग से ले आयी गई थी।

पंजाब, नशे की तस्करी से सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में शामिल है। पंजाब के मालवा, माझा और दोआबा रीजन से मादक पदार्थ का मकड़जाल पूरे प्रदेश को जकड़ रहा है। पंजाब में 15 से 25 आयु वर्ग के लगभग 40 प्रतिशत युवा नशे की गिरफ्त में हैं। मजदूर और किसानों में नशे की लत का बढना चिंताजनक है। पंजाब में ही सबसे अधिक हेराइन जब्त की गई।

पश्चिमी भारत के राज्यों से इतर पूर्वी और उत्तरी पूर्वी भारत के राज्य गोल्डन ट्रायंगल के देशों के चलते नशे से जूझ रहे हैं। नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार से होने वाले नशे की तस्करी से मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, पं बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार तक प्रभावित हैं।

केंद्र सरकार ने मादक पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए कई कारगर कदम उठाए हैं। बार्डर सिक्योरिटी फोर्स, सशस्त्र सीमा बल, रेलवे प्रोटक्शन फोर्स, असम राइफल्स आदि एजेंसियों को नशीले पदार्थ की तस्करी को रोकने के लिए बकायदा ट्रेनिंग दी गई है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत अन्य देशों के साथ समय समय पर उच्च स्तरीय बैठक भी होती है। केंद्रीय और राज्य की जांच एजेंसियों में तालमेल का ही नतीजा है कि हाल के वर्षों में नशीले पदार्थों की जब्ती बढी है। 2021 में ही 55 हजार किलो गांजा, 1 हजार किलो से अधिक हेरोइन जब्त की गई। केंद्र की मोदी सरकार नशे के सौदागरों के खिलाफ लगातार सख्त कार्रवाई कर रही है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह लोकसभा में बताया कि 2006 से 2013 के बीच 22.41 लाख किलो मादक पदार्थ जब्त किया गया था जबकि मोदी सरकार में 2014 से 2022 के बीच 62.60 लाख किलो मादक पदार्थ सुरक्षा एजेंसियों ने जब्त किया।

सरकार किसी भी हाल में इन सौदागरों को छोड़ेगी नहीं। सरकार की यह प्रतिबद्धता काबिले तारीफ है। यह बहुत आवश्यक भी है। हाल ही में मिजोरम सरकार की एक रिपोर्ट भी यह इशारा करती है कि अब समय सख्त कदम उठाने का ही है। दरअसल, म्यांमार में पिछले साल सैन्य तख्तापलट के बाद से मिजोरम में म्यांमारी नागरिकों की संख्या बढी है। इनकी संख्या बढने के साथ ही राज्य में नशीले पदार्थ की तस्करी के मामले भी बढे हैं। एक बड़ी आबादी नशे के चंगुल में फंसती चली जा रही है। राज्य सरकार की एक रिपोर्ट की मानें तो 30 प्रतिशत युवा ड्रग्स ले रहे हैं। खासकर, किशोरों के ड्रग्स लेने की वजह से स्कूल छोड़ने वालों की संख्या भी बढी है। ड्रग्स लेने वाले बच्चे अवसाद, चिंता सरीखी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। सरकार ने 10- 75 साल तक के लोगों पर यह सर्वे किया था। पता चला कि व्यस्क भी ड्रग्स ले रहे हैं। इसमें से 41 प्रतिशत तो शिक्षित हैं। इनमें 11 प्रतिशत ग्रेजुएट हैं। इसमें भी 81 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार हैं। मिजोरम में 1948 से इस साल अप्रैल तक ड्रग्स की वजह से 1697 लोगों की मौत हुई, जिसमें 200 महिलाएं भी शामिल है। इसलिए जरूरी है कि केंद्र सरकार सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक संगठित प्रयासों के जरिए नशे के सौदागरों को सलाखों के पीछे पहुंचाए।

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