देवेन वर्मा (Deven Verma) ने एक से बढ़कर एक फिल्में की। गोलमाल (film golmaal old), बुड्ढा मिल गया (Buddha mil gaya), अंगूर (Anoor) सरीखी फिल्मों में दर्शकों को खूब हंसाया। भारत के पहले ऑर्टिस्ट थे जिन्होंने मिमिक्री शुरू की। लेकिन अचानक एक दिन ऐसा क्या हुआ कि बालीवुड को अलविदा कह दिया। वो भी उस समय जब वो एक साल में 16 से अधिक फिल्में कर रहे थे।
इस तरह मिली एंट्री
देवेन वर्मा के पिता बलदेव फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन का काम करते थे। पंचगनी के स्कूल में देवेन ने पढ़ाई की। इसके बाद वाडिया कालेज से ग्रेजुुएशन किया और एवं लॉ कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन लॉ की पढ़ाई में मन नहीं लगता था। इसलिए अचानक एक दिन पढ़ाई बीच में छोड़ दी और स्टेज शो करने लगे। देवेन पहले ऑर्टिस्ट थे जिसने अभिनेताओं की मिमिक्री करनी शुरू की।
बीआर चोपड़ा हुए प्रभावित
उत्तर भारत में एक कार्यक्रम में देवेन अभिनेताआें की मिमिक्री कर रहे थे। दर्शकों की भीड़ में प्रसिद्ध निर्देशक, निर्माता बीआर चोपड़ा भी मौजूद थे। वो देवेन के अभिनय से काफी प्रभावित हुए। बीआर चोपड़ा ने उन्हेें फिल्म धर्मपुत्र के लिए 600 रुपयेे पर साइन किया। यह फिल्म बहुत अधिक नहीं चली लेकिन देवेन को इतना बड़ा बैनर मिल गया। बाद में बीआर चोपड़ा ने 1500 रुपये के पगार पर तीन साल के लिए साइन किया। अब देवेन बाम्बे और मद्रास के बीच सफर करते थे। एक साल बाद वो बाम्बे छोड़कर मद्रास ही रहने आ गए।
एक साल में सर्वाधिक फिल्में
सन 1976 में एक समय ऐसा भी था जब देवेन के पास सर्वाधिक फिल्में थी। उन्होंने एक के बाद एक 16 फिल्में साइन की। रात में वो इस्माइल श्राफ की फिल्म आहिस्ता-आहिस्ता की शूटिंग करते तो दोेपहर चार बजे दिल्ली पाकर यश चोपड़ा की फिल्म सिलसिला की शूटिंग करते। काम की कोई कमी नहीं थी। लेकिन अचानक ऐसा क्या हुआ कि सन्यास ले लिया।
चौंकानेे वाला कारण बताया
देवेन ने एक इंटरव्यू में बताया कि एक बार फिल्म की शूटिंग के दौरान स्टेज पर एक असिस्टेंट के व्यवहार ने उन्हें द्रवित कर दिया। असिस्टेंट सिगरेट पी रही थी। छल्ला बनाते हुए बोली कि चलिए, आपको शूट के लिए बुला रहे हैं। तब उन्हें लगा कि समय बहुत बदल गया है। यह पहली बार था जब देवेन को किसी ने इस तरह बुलाया था। उन्होंने सोचा कि नई पीढ़ी कभी बदल नहीं सकती, इसलिए उन्होंनेे निवास और प्रोफेशन ही चेंज कर दिया।