चावड़ी बाजार, जीबी रोड से गुजरते हुए सकुचाते थे दिल्लीवाले

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Chawri Bazar story: यदि आबादी के लिहाज से देखें तो मोटे तौर पर चावड़ी बाज़ार को हिंदू-मुस्लिम कालोनी की विभाजन रेखा कहा जा सकता है। यह खुद लम्बे समय तक वेश्याओं से आबाद था। नीचे दुकानें और ऊपर तवायफों के कोठे।

दिन में निगाहें नीची किए बाज़ार में तिजारती सौदे होते थे। क्योंकि तब भी वह काग़ज़ की सबसे बड़ी मंडी थी। रात में दबे पाँव, दुनिया की नज़रों से आँख बचाते वही लोग वहाँ जाते जिन्हें किसी कोठे पर चढ़ना होता।

सदी के चौथे दशक तक तवायफों की यह बस्ती विस्थापित करके पुनर्वास-योजना के तहत जी.बी. रोड पर बसा दी गई-बिना  शोर-शराबे के। क्योंकि पूरे नगरवासियों की इस विषय पर अनकही सहमति थी कि वेश्याओं को शरीफ़ों के मोहल्लों से ज़रा दूर ही होना चाहिए। उस समय की भौगोलिक बनावट के अनुसार जी.बी. रोड शहर के बाहरी हिस्से पर ही पड़ता था। पुरानी दिल्ली से नई दिल्ली जाने के लिए भी इस सड़क से गुज़रना कतई जरूरी नहीं था। यह बात चावड़ी बाज़ार के बारे में सही नहीं थी।

इसके अलावा, उस समय आसफ अली रोड की विशाल इमारतों का भी अता-पता नहीं था। दरियागंज के दिल्ली गेट से अजमेरी गेट तक, इरविन अस्पताल (अब जयप्रकाश नारायण अस्पताल) को छोड़कर विराट सूनापन व्याप्त रहता था। लेकिन अजमेरी गेट से अन्दर दाखिल होते ही, पुराने शहर की वही चहल-पहल भरी ज़िन्दगी अपनी भौगोलिक संरचना, अपनी रवायतें, जो दिल्ली की निजी पहचान थी।

दिलचस्प है गली-मोहल्लों के शिरा-जाल से रचा वह इलाक़ा, जिसके एक तरफ़ तुर्कमान गेट के आसपास घनी मुस्लिम बस्ती है। अजमेरी गेट के पासवाली मस्जिद, कुछ आगे बढ़ने पर मशहूर हकीम अब्दुल हमीद का हमदर्द दवाखाना, और उधर गेट के दाहिनी तरफ़ अब के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज (जो तब ऐंग्लो अरबिक कॉलेज था) की प्राचीन मुगल शैली की इमारत। जी.बी. रोड, इसी कॉलेज की इमारत के बगल से अजमेरी गेट को अलग करके सीध में बढ़नेवाली लम्बी सड़क है जो अन्त में खाड़ी बावड़ी पर खत्म होती है।

बहरहाल, अजीबोगरीब बनावट थी-अजमेरी गेट से भीतर आने पर बसागत की। अब उस सड़क पर हॉर्डवेयर और उसी क़िस्म के दूसरे सामान की थोक मार्केट है। सड़क सीधी हौज़ काज़ी पर आकर खत्म होती है। इसी सड़क पर दाएँ हाथ बीचोबीच अब मैट्रो का स्टेशन बना है, जो पूरे इलाके के लिए बहुत बड़ी नेमत है।

‘हौज़ काज़ी’ नाम ही किसी हद तक यहाँ की रिहाइश की प्रकृति की तरफ़ इशारा करता है। जहाँ सड़क खत्म होती है, उसके ठीक सामने एक मस्जिद है। अनुमान किया जा सकता है कि इस चौराहे पर बीचोबीच मस्जिद से सम्बद्ध कोई बड़ा हौज़ रहा होगा। बाकी तीन सड़कों में से सीधी जानेवाली सड़क मशहूर चावड़ी बाज़ार है जो आज भी कागज़ और कार्यों की सबसे बड़ी थोक मार्केट है। दूसरा अजूबा है चावड़ी बाज़ार के दाएँ हाथवाली सड़क-बाज़ार सीताराम।

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