भारत-पाकिस्तान के तल्ख रिश्तों के बारे में सभी को पता है। लेकिन इतिहास ने कई ऐसे मौके दिए, जिसे यदि मान लिया गया होता तो वर्तमान हालात जुदा होते। ऐसे ही एक मौके का जिक्र कुलदीप नैयर ने अपनी किताब एक जिंदगी काफी नहीं में किया है। उन्होने लिखा है कि सेना प्रमुख जनरल थापर ने उन्हे बताया था कि “हमले की तैयारी के लिए सेना को आमतौर से पन्द्रह दिन का समय दिया जाता है और हमले के लिए भोर फूटने का समय चुना जाता है।” यही हुआ भी। पूर्वी सेक्टर में चीनी हमला 20 अक्टूबर, 1962 को सुबह 5.00 बजे शुरू हुआ, जबकि लद्दाख में यह सुबह 7.00 बजे शुरू हुआ जहाँ सूरज देर से निकलता है।
ईरान के शाह ने लिखा पत्र
लड़ाई शुरू हो गई तो ईरान के शाह ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान को एक पत्र लिखा, जिसकी एक प्रति उन्होंने नेहरू को भी भेजी। इस पत्र में शाह ने अयूब को लिखा था कि पाकिस्तानी सेना को भारतीय सेना के साथ मिलकर लड़ना चाहिए और ‘लाल खतरे’ को उपमहाद्वीप से बाहर खदेड़ देना चाहिए। बकौल कुलदीप वह दिन याद आ गया जब उन्होने बंटवारे से पहले जिन्ना लाहौर में लॉ कालेज में आए और उनसे पूछा था कि अगर किसी तीसरे देश ने भारत पर हमला किया तो पाकिस्तान का क्या रुख होगा। जिन्ना का जवाब था कि पाकिस्तानी सैनिक हिन्दुस्तानी सैनिकों के साथ मिलकर लड़ेंगे। लेकिन अयूब ने भारत की मदद के नाम पर सिर्फ इतना कहा कि पाकिस्तान इस मौके का फायदा नहीं उठा रहा था, इसलिए इसी को उसकी मदद और दोस्ताना रवैया समझना चाहिए।
रक्षा मंत्री ने यह बात कही
लड़ाई खत्म होने के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने ईरान के शाह के पत्र का जिक्र करते हुए कहा था कि अगर पाकिस्तानी सैनिक हिन्दुस्तानी सैनिकों के साथ मिलकर लड़े होते और अपने हिन्दुस्तानी भाइयों के साथ उन्होंने भी अपना खून बहाया होता, तो “अगर वे कश्मीर भी मांगते तो हमारे लिए न करना मुश्किल हो जाता है” शायद यह सच भी था, क्योंकि हमारे फैसलों में जन्यात बड़ी अहम भूमिका निभाते हैं।