दिल्ली में मुगल शासन काल में डेल्ही गैजेट अखबार चर्चित था। इस अखबार का दिल अपने पढ़ने वालों और बेचैन संपादक जॉर्ज वैगनट्राइबर की तरह कहीं और ही था। उसमें अक्सर ख़बरें ब्रिटिश जीतों की होती थीं, या उन तोपों की सलामी का ज़िक्र जो ऐंग्लो-बर्मा जंग के खात्मे पर चलाई गईं और पेगो पर कब्ज़ा करने और रंगून को जीतने का ऐलान। इसमें अंग्रेजों की फौजों का अफगानिस्तान,  ईरान और क्रीमिया में जंग करने की खबरें होतीं और सबसे ज्यादा अपने मुल्क यानी इंग्लैंड के बारे में सूचनाए होतीं।

या अंग्रेजों के लिए इश्तहार होते कि शिमला या मसूरी के पहाड़ों में अंग्रेजी तर्ज के कॉटेज जिनका नाम “रोज विला” या “ब्रिज विला” है वह किराये के लिए मुहैया हैं। या यह कि जरूरत है इंग्लैंड में अच्छे खानदान के लोगों की जो अंग्रेज बच्चों की शिक्षा-दीक्षा कर सकें, ताकि वह हिंदुस्तानी लहजा न अपना लें।”

एक इश्तहार में लिखा था,

“मां-बाप और अभिभावको को सूचना दी जाती है कि एक महिला जो इंग्लैंड वापस जा रही हैं अपने साथ कुछ बच्चों को ले जाने पर तैयार हैं और उनको हिफाजत से वहां पहुंचा देंगी।

एक और इश्तेहार एक शादीशुदा पादरी की तरफ से था जो इंग्लैंड में

समरसेटशायर के किसी अच्छे इलाके में रहता था और अपने घर दो-तीन बच्चों को रखने के लिए तैयार है ताकि वह उसके अपने बच्चों के साथ शिक्षा प्राप्त कर सकें। साठ गिनीज़ से लेकर सौ पाउंड महीने की रकम पर।

यह अखबार खूब समझता था कि उन वतन से दूर गरीबों की परेशानियाँ और घर की याद को किस तरह दिलासा देना चाहिए। लेकिन इसमें दिल्ली के लोगों का बहुत कम ज़िक्र होता था। और 1850 के दशक के बाद अगर होता भी था तो इस तरह जैसे बड़ी मेहरबानी दिखाई जा रही हो, उनको देसी या काले लोग कहकर ।” संपादक वैगनट्राइबर का यह रवैया काफ़ी उलझा था क्योंकि उसकी अपनी बीवी एलिजाबेथ स्किनर्स हॉर्स के मशहूर जेम्स स्किनर की ऐंग्लो-इंडियन बेटी थीं, जो दिल्ली के सफेद मुगल समाज के एक स्तंभ थे ।

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