मुगल शासन में इस अखबार की बोलती थी तू ती
मुगल शासन काल में डेल्ही गैजेट का ध्यान अंग्रेजों की तरफ था जो हमेशा अपनी भीगी आंखों से अपने देश के सरसब्ज बागों के ख्वाब देखते रहते थे। इसमें कभी-कभी चांदनी चौक की नहरों में रोशनी करने या उन गढ़ों का जिक्र आ जाता था जो इसके कश्मीरी दरवाजे के दफ्तर के सामने थे।” कभी-कभार कोई चिंताजनक खबर किसी खतरनाक डकैती के बारे में भी आ जाती, या दिल्ली क्रिकेट क्लब की कलकत्ता क्लब से हारने, या दिल्ली की घुड़दौड़ रेस का ऐलान।
एक बार दिल्ली की पहियों वाली गाड़ियों की दौड़ का भी जिक्र था जिसमें बैंड बजाने वाले दस्ते का एक सिपाही हर गाड़ी में बैठकर दौड़ में मुकाबला करता और जीतने वाले को आठ रुपए का इनाम दिया जाता।”
बहुत खास मौकों पर अंग्रेज और मुगल दुनिया एक हो जाती। ब्रिटिश राज के शुरू के जमाने में अंग्रेज और हिंदुस्तानी आमतौर पर मिलकर मुगल दरबार की सभाओं और त्योहारों में शिरकत करते थे। लेकिन 1850 के बाद यह सिर्फ अंग्रेज इलाकों तक ही सीमित हो गई। मसलन दिल्ली के घुड़दौड़ के मुकाम पर जहां दिल्ली के रईस लोग अपनी देहाती जागीर से शहर आते और मुगल कप में हिस्सा लेते।”
या कभी-कभी दिल्ली की फ्रीमेसन लॉज में जहां हिंदुस्तानियों को सदस्य बनने की इजाजत थी।” इसी तरह का एक मौका तब आया जब टोड एंड कंपनी अपनी घूमती नुमाइश लेकर दिल्ली आए। इसमें नई-नई चीजें थीं और कई दूरबीनें भी थीं।
डेल्ही गैजेट ने लिखा कि उनको देखकर दिल्ली के बाशिंदों को बहुत हैरत हुई कि किस तरह चीज़ों की बारीकियां उनकी नजर के सामने जाहिर हो जाती थीं।” एक और मौके पर मिस्टर जोर्डेन अपना सर्कस लेकर आए, तो अखबार ने लिखा:
“मैडम जोर्डेन का नाच और घुड़सवारी देखकर अंग्रेज दर्शकों ने बहुत तालियां बजाईं और सब हिंदुस्तानियों ने ‘वाह वाह’ कहकर दाद दी। मिस्टर जोर्डेन ने अपनी ताकत का प्रदर्शन करके न सिर्फ देसी लोगों को बल्कि सब देखने वालों को हैरतजदा कर दिया। और मिस्टर ओलीवर ने एक नया खेल खेला और गेंद पर सवार होकर सर्कस के चारों तरफ घूमे और फिर एक तख्ते पर चढ़ गए जिसके सिरे पर वह गेंद पर संतुलन बनाकर खड़े हो गए। सब लोगों ने इसकी बहुत तारीफ की। और फिर एक घोड़े राजापैक ने अपने करतब दिखाए अपने साईस के सब निर्देशों का पालन किया और आखिर में एक तख्ते पर जाकर सो गया, जहां से उसे उसी तरह बाहर ले जाया गया।