संधि की परिभाषा, संधि के प्रकार पढ़िए

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

✍️संधि की परिभाषा

दो वर्णों के मेल को संधि कहते है |

उदाहरण – विद्या + अर्थी = विद्यार्थी ( इसमें विद्यार्थी संधि है )

✍️संधि विच्छेद

संधि किये गये शब्दों को अलग अलग करके पूर्व की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है |

जैसा कि हम जानते है कि दो वर्णों के मेल को संधि कहते है ऊपर के उदाहरण से स्पष्ट है ‘ विद्यार्थी ‘ संधि है | विद्यार्थी को ‘विद्या’ + ‘अर्थी’ अलग –अलग कर देने की प्रक्रिया ही संधि विच्छेद कही जाती है | अत: विद्या + अर्थी संधि विच्छेद है |

✍️संधि का अर्थ –

संधि शब्द का शाब्दिक अर्थ है – जोड़ अथवा मेल |’संधि’ शब्द का अर्थ व्यापक अर्थों में लिया जाता है ,परंतु यहाँ संधि शब्द का अर्थ वर्णों के मेल और विच्छेद से होता है | दो वर्णों का जो मेल या जोड़ होता है वह नियमों के अधीन होता है | संधि के नियम बने हुए है | जिसके अधीन संधि की जाती है |संधि में भाषा के नियमों का पूर्ण रूप से पालन किया जाता है | हिंदी भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता है | अत: संस्कृत के नियमों का पालन किया जाता है |

✍️संधि के भेद – संधि के तीन भेद हैं –

  • (1) स्वर-सन्धि
  • (2) व्यंजन सन्धि
  • (3) विसर्ग सन्धि

✍️1. स्वर संधि – दों स्वरों के मेल से जो संधि होती है ,उसे स्वर संधि कहते है |

✍️स्वर संधि के भेद – स्वर संधि के निम्न भेद है :-

1. दीर्घ संधि

इसकों इस प्रकार समझ सकते है –

, आ + अ , आ = आ

, ई + इ , ई = ई

दीर्घ संधि के उदाहरण –

 संधि विच्छेद         संधि

पुस्तक + अर्थी = पुस्तकार्थी

सूर्य +अस्त = सूर्यास्त

वेद +अन्त = वेदान्त

उत्तम+ अंग = उत्तमांग

राम + अयण = रामायण

धन + अर्थी = धनार्थी

शब्द + अर्थ = शब्दार्थ

अद्य + अवधि = अद्यावधि

महा + आलय = महालय

हिम + आलय = हिमालय

देव + आलय = देवालय

नित्य+ आनंद = नित्यानंद

कमल + आसन = कमलासन

आज्ञा + अनुपालन = आज्ञानुपालन

राम + आश्रय = रामाश्रय

वार्ता + आलाप = वार्तालाप

शिक्षा +अर्थी = शिक्षार्थी

परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी

शिव + आलय = शिवालय

गिरि + इंद्र = गिरीन्द्र

अभि + इष्ट = अभीष्ट

गिरि + ईश = गिरीश

कवि + इंद्र = कवींद्र

रवि + इंद्र = रवींद्र

मही + ईश = महीश

भारती + ईश्वर = भारतीश्वर

मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर

भानु + उदय = भानूदय

मंजु + ऊषा = मंजूषा

विधु + उदय = विधूदय

स्वयंभू + उदय = स्वयंभूदय

भू + उत्तम = भूत्तम

 संधि विच्छेद     संधि

शुभ + इच्छु = शुभेच्छु

पूर्ण + इंद्र = पुर्णेंद्र

परम + ईश्वर = परमेश्वर

दिन + ईश = दिनेश

नर + उत्तम = नरोत्तम

गंगा+ ऊर्मि = गंगोर्मि

राज + ऋषि = राजर्षि

महा + ऋण = महर्ण

✍️वृद्धि संधि – [ सूत्र – वृद्धिरेचि ] –

यदि अ या आ के बाद ए या ऐ आवे तो दोनों के स्थान पर ‘ ऐ ‘ हो जाता है तथा अ या आ के बाद ओ या औ आवें तो दोनों के स्थान पर ‘ औ ‘ आदेश हो जाता है |इस नियम प्रक्रिया को वृद्धि संधि कहते है |

अद्य + एव = अद्यैव

देव +ऐश्वर्य = देवैश्वर्य

सर्वदा +एव = सर्वदैव

उष्ण + ओदन = उष्णौदन

जल + ओस = जलौस

परम + औदार्य = परमौदार्य

✍️ यण संधि [ सूत्र- इको यणचि ] –

यदि हृस्व या दीर्घ इ ,उ ,ऋ ,लृ के बाद कोई भी असमान स्वर आये तो उसके स्थान पर क्रमश: य् ,व् ,र ,ल् हो जाता है |

उ या ऊ + कोई असमान स्वर = व्

ऋ या ॠ + कोई असमान स्वर = र्

यण संधि के उदाहरण –

उपरि+ उक्त = उपर्युक्त

अति + उक्ति = अत्युक्ति

अति + आनंद = अत्यानंद

दधि + ओदन = दध्योदन

नदी + आमुख = नद्यामुख

सखी + एक्य = सख्यैक्य

देवी +आलय = देव्यालय

देवी+ उक्ति = देव्युक्ति

देवी + ओज = देव्योज

सु + आगत = स्वागत

मधु + आलय = मध्वालय

अनु + आदेश = अन्वादेश

✍️अयादि संधि –[ सूत्र – एचोsयवायाव: ] –

यदि ए ,ऐ ,ओ, औ, के बाद कोई असमान स्वर आवे तो ए, ऐ, ओ, औ के स्थान पर क्रम से अय् ,आय् , अव् , आव् हो जाता है | जैसे – ने + अन = नयन

इसको इस प्रकार समझा जा सकता है –

औ + कोई असमान स्वर = आव्

अयादि संधि के उदाहरण –

संधि विच्छेद संधि

पौ + अक = पावक

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