-आईजीएनसीए ने तीन लाख से ज्यादा मनु स्कि्रप्ट को डिजिटल किया

कहीं कपड़े तो कहीं पॉम लीफ, कागज पर अंकित स्वर्ण अक्षर वाली पांडुलिपियां। जिनपर अंकित हर शब्द भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का वाहक है। ये पांडुलिपियां जो सैकड़ों साल पुरानी मानवीय सभ्यता की कहानी सुनाती है। गुजरते वक्त के साथ भारत की धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक विकास की कहानी सुनाती पांडुलिपियों की लिपि पढ़ने वालों की भी कमी होती गई। लिहाजा, आम आदमी की पहुंच से ये दूर होती चली गई। ऐसे में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र ने पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण का बीड़ा उठाया है। देशभर की 52 लाइब्रेरियों की मदद से अब तक तीन लाख से ज्यादा पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जा चुका है।

यूं शुरू हुआ सफर

कला निधि के निदेशक डॉ रमेश सी गौड़ कहते हैं कि पांडुलिपियां सिर्फ किताबों, पत्रों या फिर कपड़ों पर अंकित सिर्फ शब्द नहीं है। बल्कि ये तत्कालीन समाज का आइना हैं। समाज कैसे व्यवस्थित होता था। कैसे रहता, सोचता और क्या धार्मिक या सामाजिक क्रिया कलाप थे। भारत में पांडुलिपियों के बारे में अनुमान लगाया गया है कि पहले 10 करोड़ से ज्यादा पांडुलिपियां थी। लेकिन वर्तमान अनुमान 60 लाख पांडुलिपियों का है। ये पांडुलिपियां भारत के कोने कोने में बिखरी है। मसलन, ये लाइब्रेरी में है, सरकार के पास है, प्राइवेट प्रापर्टी है या फिर कई जगह घरों या लोगों के पास है।

पांडुलिपियों की लिपि

पदाधिकारी कहते हैं कि प्राचीन दुर्लभ सभी पांडुलिपियां संस्कृत में है। हालांकि इनकी लिपि अलग अलग है। ये पाली, ब्राम्ही, प्रकृति, मोडी, शारदा, देवनागरी, नास्तलिक, तेलगू, ओरियान, गुरूमुखी, बंगला, नक्ष आदि लिपि में उपलब्ध है। सबसे ज्यादा पांडुलिपियां पॉम लीफ और कागज पर हैं। बताते हैं कि अकेले दिल्ली के नेशनल म्यूजियम में करीब एक हजार पांडुलिपियां है, जिन्हें डिटिजल किया गया है। इनमें सबसे ज्यादा पांडुलिपियां शारदा लिपि में हैं। दिल्ली में हिंदी की भी दुर्लभ किताबें उपलब्ध है, जो कृष्णा लीला का वर्णन है।

पहले बनाई गई माइक्रो फिल्म

डॉ रमेश सी गौड़ ने बताया कि 90 के दशक में आईजीएनसी ने 52 लाइब्रेरी के साथ बैठक की। जिसमें पांडुलिपियों की माइक्रो फिल्म बनाना तय हुआ। 2010 तक करीब 2 लाख 70 हजार पांडुलिपियों की माइक्रो फिल्म बनाई गई। इसके लिए बकायदा एक रूम बनाया गया है, जहां माइक्रो फिल्म रखी गई है। पास ही बड़ी बड़ी चार मशीने भी रखी है। जहां प्रोजेक्टर पर इन माइक्रो फिल्म को लगाते हैं एवं फिर प्रकाश की मदद से ये स्क्रीन पर बड़े बड़े अक्षरों में दिखती है।

यूं शुरू हुआ डिजिटल का दौर

कुछ समय पहले डिजिटल का दौर शुरू हुआ तो आईजीएनसीए ने भी इस दिशा में कदम उठाए। सबसे पहले जिन पांडुलिपियों की माइक्रो फिल्म उपलब्ध है उनका डिजिटलीकरण करने की सोची गई। यही नहीं सन 2003 में नेशनल मिशन फार मनु स्कि्रप्ट बना। इसके तहत 30 लाख पांडुलिपि का कैटलॉग बनाया गया। इसके तहत भी पांडुलिपियों को डिजिटल किया गया। खैर

दुर्लभ पांडुलिपियां

अब तक तीन लाख से ज्यादा पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जा चुका है। ये पांडुलिपियां एस्ट्रोलॉजी, एंड्रोलाजी, आर्किटेक्ट, मेडिकल साइंस, धर्म कर्म समेत जिंदगी से जुड़े लगभग प्रत्येक विषय पर उपलब्ध है। वेदों, पुराणों समेत संहिताओं को अपने अंदर समेटी ये पांडुलिपियां ज्ञान का अकूत भंडार है। कई पांडुलिपियां बहुत कम पेज में बची है। कई ऐसी भी पांडुलिपियां हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। विशेषज्ञों की मदद से इन पांडुलिपियों की लिपि पढ़ने की कोशिश की जा रही है। जैसे महाराष्ट्र और कश्मीर की लिपि पढ़ने और समझने वालों की संख्या बहुत ही कम हो चुकी है। पदाधिकारी बताते हैं जिन लिपि को राजा, महाराजा या फिर वर्तमान में सरकार का प्रश्रय मिला, उनको पढ़ने लिखने वाले मौजूद हैं। लेकिन जिन्हें प्रश्रय नहीं मिला उनको पढ़ने वाले गिनती के लोग हैं।

ज्ञान का खजाना

ज्योतिष की सटीक गणना आधारित कई दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद है। करीब 500 वर्ष पुरानी ऐसी ही पांडुलिपि गणररत्‍‌न महोदधि है। इसमें ज्योतिष के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां है। जबकि भारतीय दर्शन के बारे में यदि आप पढ़ना चाहते हैं तो गूढ़ जानकारियों का अकूत भंडार है शत साहस्रिका, प्रज्ञा पारमिता जो 800 साल पुरानी है। इसी तरह भंडारकर इंस्टीटयूट पूणे की 350 साल पुरानी कई पांडुलिपियां सचित्र थी, जिन्हें डिजिटल किया गया। इनमें भागवत पुराण, गीता, योग वशिष्ठ, विष्णु, पुराण है। 700 वर्ष पुरानी प्राचीन चिकित्सा सार संग्रह हैं। 500 वर्ष पुरानी महाभाष्य भी डिजिटल की गई है। जबकि लाल भाई दलपत भाई प्राच्य विद्या संस्थान की 750 पांडुलिपियां डिजिटल की गई है। 500 साल पुरानी शांति नाथ चरित सचित्र डिजिटल है। न्याय कंजलि पंजिका, व्यायाम चिंतामणि, गणचक्र, अश्वचक्र समेत कई दुर्लभ पांडुलिपियां है। मणिपुर की 400 वर्ष पुरानी सुविका ग्रंथ है। यूंबन लाल (कामशास्त्र) का दुर्लभ ग्रंथ है।

डिजिटलीकरण में चैलेंज

कला निधि के निदेशक डॉ रमेश सी गौड़ कहते हैं कि लिपि को जानने वालों की संख्या कम है। इससे डिजिटलीकरण की प्रक्रिया पर निसंदेह असर पड़ता है। यही वजह है कि इसी साल से आईजीएनसीए ने मनुस्कि्रप्टोलॉजी में पीजी डिप्लोमा का कोर्स शुरू किया है। एक साल के इस कोर्स में लिपि पढ़ाई जाती है। इसके लिए पूरे देश भर में संस्कृत से स्नातक, परास्नातक किए गए छात्रों की वर्कशाप की जाती है। उन्हें कोर्स करने के लिए प्रेरित किया जाता है। यहां लिपि पढ़ाने के साथ ही पांडुलिपियों का हिंदी, अंग्रेजी में अनुवाद भी करवाया जाता है।

कैसे कर सकते हैं उपयोग

आईजीएनसीए की वेबसाइट पर किताबों का कैटलॉग उपलब्ध है। यहां कोई भी स्कॉलर विषयवार, लेखकों के क्रम में पांडुलिपि सर्च कर सकता है। इन डिजिटल की गई पांडुलिपियों को जल्द वेबसाइट पर अपलोड भी किया जाएगा। जहां से कोई भी घर बैठे पढ़ सकता है। फिलहाल अभी वेबसाइट से फाइल संख्या, नाम आदि जानकर आईजीएनसीए में पांडुलिपि पढ़ी जा सकती है।

कौन कौन सी प्रमुख लाइब्रेरी जुड़ी है

अहमदाबाद- एलडी इंस्टीटयूट।

इलाहाबाद-गंगानाथ झा, केंद्रीय रिसर्च इंस्टीटयूट।

अलवर- गर्वमेंट स्टेट म्यूजियम।

भुवनेश्वर-ओडिशी स्टेट म्यूजियम।

बड़ौदा- ओरिएंटेल इंस्टीटयूट।

कलकत्ता-एशियाटिक सोसायटी, नेशनल लाइब्रेरी, श्रीचैतन्य रिसर्च इंस्टीटयूट।

चेन्नई-गर्वमेंट ओरिएंटल मास लाइब्रेरी।

गुवाहटी-कर्मपुरा अनुसंधान समिति।

होशियारपुर- वी वी रिसर्च इंस्टीटयूट।

हुबली- एस जे एम।

नई दिल्ली- नेशनल म्यूजियम।

————

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here