इसे जेम्स स्किनर ने 1826-36 ई. में बनवाया था। यह शख्स पहले महाराजा ग्वालियर की मुलाजमत में था। जब महाराजा ग्वालियर अंग्रेजों से लड़ने को तैयार हुए तो इसने नौकरी छोड़ दी और ईस्ट इंडिया कंपनी की मुलाजमत कर ली।

गिरजाघर 1826 से 1836 तक दस वर्ष में नब्बे हजार रुपये की लागत से बनकर तैयार हुआ। इमारत बहुत सुंदर बनी हुई है। गुंबद कमरखी है। उस पर सुनहरी सलीब लगी है। कमरों में संगमरमर का फर्श है। गदर में गोलाबारी से गुंबद को नुकसान पहुंचा था और वह गिर गया था।

1865 ई. में उसे दुरुस्त करवाया गया। गदर में गिरजा पर एक तांबे का गोला लगा हुआ था, जो 1883 ई. में उतारकर नीचे रख दिया गया। इसमें 79 सूराख गोलियों के हैं और सलीब में चौदह हैं। यह एक चबूतरे पर रखा हुआ है।

गिरजा के सहन में कमिश्नर फ्रेजर की कब्र है, जो 1835 ई. में कत्ल हुआ था। यह कब्र संगमरमर की है, जिस पर दो शेर बैठे हैं और लोहे का कटारा चारों ओर लगा है। फ्रेजर की कब्र से मिली हुई पीछे की सड़क पर एक चबूतरे पर गदर में कत्ल किए गए अन्य व्यक्तियों की यादगार है। गिरजे के उत्तर-पूर्वी कोने में मैटकाफ की कब्र है। यह गदर के जमाने में मजिस्ट्रेट था। इसी ने मैटकाफ हाउस बनवाया था। इसके अतिरिक्त स्किनर खानदान वालों की कई कब्रें इस गिरजे के सहन में बनी हुई हैं।

गिरजे के पीछे फसील के साथ के मकान सवा, डेढ़ सौ बरस के बने हुए हैं। कचहरी के साथ वाला मकान 1845 ई. में स्मिथ का मकान कहलाता था। इसमें डिस्ट्रिक्ट बोर्ड का दफ्तर था। इस मकान में कई तहखाने हैं। सेंट जेम्स के बुर्ज के पास दिल्ली गजट की इमारत थी, जिसमें दिल्ली गजट अखबार छपता था। यहीं से इंडियन पंच भी निकला था। इस मकान के सामने जो खुला हुआ मैदान था, वह रेजीडेंसी का बाग था। बाद में यहां गवर्नमेंट कालेज और फिर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड स्कूल बना। अब पोलीटेक्नीक स्कूल है। कश्मीरी दरवाजे से मिला हुआ निकलसन रोड के साथ जो मकान है, उसमें बंगाल बैंक हुआ करता था। यहां सेंट स्टीफेंस कालेज था और उसके पीछे अहमद अली खां का मकान था।

गिरजे से आगे बढ़ें तो बाएं हाथ को फिर एक सड़क आती है। यह चौराहा है। बीच में एक छोटा पार्क है। सड़क के बाएं हाथ स्टीफेंस कालेज का बोर्डिंग हाउस था और दाहिने हाथ कालेज की इमारत। पहले जो कालेज था, उसकी इमारत 1877 ई. में तोड़ दी गई थी। यह कालेज 1890 ई. में कायम हुआ। पहले अलनट पादरी ने इसे बनवाया। फिर सी.एफ. एंड्र्यूज साहब रहे, फिर रुद्र साहब प्रिंसिपल रहे। इस कालेज के दाएं हाथ की दोमंजिला इमारत में जो सड़क के साथ है, रुद साहब रहा करते थे। उस जमाने में 1915 से 1921 तक ऊपर के कमरे में रुद्र साहब के साथ महात्मा गांधी ठहरते रहे। अब यह कालेज दिल्ली  विश्वविद्यालय में चला गया है। यहां पोलीटेक्नीक स्कूल है।

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