अक्टूबर 1962 के अन्तिम दिनों में जनरल थापर मेमन से मिलने गए तो चीनी सेनाएँ ढोला की चौकियों पर कब्जा कर चुकी थीं और बड़ी तेजी से नेफा की तरफ बढ़ रही थीं। मेनन को भी यह जानकारी थी, क्योंकि सेना प्रमुख को भेजे जानेवाले हर सन्देश की एक प्रति रक्षा मंत्री को भी भेजी जाती थी। थापर ने “मैंने पहले ही आपसे कहा था” जैसी बातें करने की बजाय सिर्फ यह बताया कि क्या हुआ था। “अब हमें यह सोचना है कि आगे क्या करें?” उन्होंने कहा। रक्षा मंत्री मेनन ने ब्लैक टी के घूँट भरते हुए सिर्फ इतना कहा, “मुझे क्या पता था कि वे आँधी की तरह हम पर टूट पड़ेंगे ?”
थापर ने कहा कि अब भारतीय सेनाओं को चालीस मील पीछे से-ला पास में चीनियों का मुकाबला करना चाहिए। मेनन ने व्यंग्य से कहा, “वहाँ क्यों? बंगलौर और भी अच्छा रहेगा, जनरल !” इसके बाद उनके बीच बहुत कम बातचीत हुई।
इस मीटिंग से पहले गुप्तचर विभाग के प्रमुख बी. एन. मलिक गलत सूचनाएँ देने के लिए थापर से क्षमा-याचना कर चुके थे। गुप्तचर विभाग ने कहा था कि चीन तिब्बत में इतना ज्यादा उलझा हुआ था कि वह अपनी सेनाओं को वहाँ से हटाकर भारतीय मोर्चों पर नहीं ला पाएगा। जनरल थापर ने उनसे कहा था कि अब पिछली गलतियों को देखने की जरूरत थी।