HARDAYAL MUNICI PALPUB LICLIBRARY
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अंग्रेजी क्लब के रूप में हुई थी हरदयाल सिंह लाइब्रेरी की स्थापना

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Delhi: दिल्ली के चांदनी चौक स्थित गांधी मैदान के पास स्थित हरदयाल म्युनिसिपल हेरिटेज पब्लिक लाइब्रेरी (पूर्व में हार्डिंग लाइब्रेरी) 1862 में स्थापित हुई थी। यह भारत की सबसे पुरानी सार्वजनिक पुस्तकालयों में से एक है, जिसमें लगभग 1.7 लाख पुस्तकों का संग्रह है, जिनमें 8,000 दुर्लभ ग्रंथ और 350 हस्तलिखित पांडुलिपियाँ शामिल हैं।

इतिहास और नाम परिवर्तन

इस पुस्तकालय की स्थापना 1862 में एक अंग्रेजी क्लब के रूप में हुई थी। 1902 में इसे दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी नाम दिया गया और कच्चा बाग में स्थानांतरित किया गया। 1912 में वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर हुए बम हमले के बाद, 1916 में इसे वर्तमान भवन में स्थानांतरित किया गया और हार्डिंग म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी नाम दिया गया।

1970 में, स्वतंत्रता सेनानी और गदर पार्टी के संस्थापक लाला हरदयाल के सम्मान में इसका नाम बदलकर हरदयाल म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी रखा गया।

दुर्लभ संग्रह और सांस्कृतिक महत्व

पुस्तकालय में 17वीं और 18वीं शताब्दी की ब्लॉक-प्रिंटेड किताबें, फारसी में अनुवादित महाभारत, 1677 की ‘द हिस्ट्री ऑफ द वर्ल्ड’, 1881 में ब्रज भाषा में लिखित ‘प्रेम सागर’, और स्वर्णाक्षरों में लिखित कुरान जैसी दुर्लभ कृतियाँ शामिल हैं।

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संरक्षण और डिजिटलीकरण प्रयास

2016 में, तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग ने पुस्तकालय की दुर्लभ पुस्तकों के संरक्षण और डिजिटलीकरण की पहल शुरू की।

2021 में, तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने नवीनीकरण के बाद पुस्तकालय का उद्घाटन किया, जिसमें दीवारों की सफेदी, विद्युत वायरिंग और एयर-कंडीशनिंग की मरम्मत शामिल थी।

वर्तमान चुनौतियां

हाल के वर्षों में, पुस्तकालय को बिजली की आपूर्ति में बाधाओं, कर्मचारियों को वेतन न मिलने और वित्तीय संकट जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा है। छात्रों ने स्वयं सहायता से सुविधाओं को बनाए रखने के लिए धन जुटाया है, लेकिन सरकारी सहायता की कमी के कारण पुस्तकालय की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है।

हरदयाल म्युनिसिपल हेरिटेज पब्लिक लाइब्रेरी न केवल दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है। इसकी संरक्षण और पुनरुद्धार के लिए सरकारी और सामाजिक प्रयास आवश्यक हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इस अमूल्य धरोहर से लाभान्वित हो सकें।

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