तालाब के पानी को एक झरना बनाकर फीरोजशाह ले गया तुगलकाबाद

इस हौज में बरसात का पानी जमा होता है। इसकी लंबाई दो मील और चौड़ाई एक मील है। इसके पश्चिम में ईदगाह की तरह पक्के घाट चबूतरों की शक्ल के ऊपर तले बने हुए हैं। चबूतरों से पानी तक सीढ़ियां हैं और हर चबूतरे के कोने पर बुर्ज बना हुआ है, जिसमें बैठकर तमाशाई इसे देखते हैं। हौज के बीचोंबीच पत्थरों का दोमंजिला बुर्ज बना हुआ है। जब तालाब में पानी अधिक होता है तो लोग किश्तियों में बैठकर बुर्ज तक पहुंचते हैं और जब थोड़ा होता है तो वैसे ही आते-जाते रहते हैं। इसके अंदर एक मस्जिद भी बनी हुई है। जब पानी उतर जाता है तो किनारों पर खरबूजे बो देते हैं। खरबूजा गो छोटा होता है, मगर बहुत मीठा होता है।

आजकल इस हौज में सिंघाड़े बोए जाते हैं, जो बहुत मीठे होते हैं। किसी जमाने में यह हौज तमाम लाल पत्थर का बना हुआ था। अब सारी बंदिश उखड़ गई है। इस तालाब के पानी को एक झरना बनाकर फीरोज शाह तुगलक तुगलकाबाद ले गया था।

अब तो इसमें बरसात में ही पानी भरता है। यह तालाब और इसके साथ की इमारतें तथा बाग बहुत खूबसूरत लगते थे। पूर्व की ओर लाल पत्थर की एक बहुत बड़ी इमारत है, जिसे जहाज कहकर पुकारते हैं। एक मस्जिद है, जिसे औलिया मस्जिद कहते हैं। कहते हैं कि दिल्ली को फतह करने की नमाज इसमें पढ़ी गई थी। इसके नजदीक सड़क के दूसरी ओर इसमें से जो नहर काटकर ले गए हैं, वह झरने में जाकर गिरती है, जहां छायादार वृक्ष लगे हैं। यह नहर तुगलकाबाद चली गई है।

कहते हैं कि ख्वाजा कुतुबुद्दीन अल्तमश के जमाने में एक बहुत बड़े औलिया हो गुजरे हैं। अल्तमश ने एक बार स्वप्न में हजरत अली को देखा और ख्वाजा साहब से उसकी ताबीर (मतलब) पूछी। ख्वाजा साहब ने कहा कि जहां आपने हजरत अली को देखा है, वहीं तालाब बनवा दो। चुनांचे बादशाह ने हुक्म की तामील की और यह तालाब बनवा दिया। 1311 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने इसकी मरम्मत करवाई थी और उसी जमाने में इसके बीचोंबीच एक चबूतरा, जो नीचे से खाली है, बनवाकर उस पर एक बुर्जी बनवा दी थी, जो करीब ढाई फुट ऊंची और 52 फुट लंबी थी, जिसके सोलह सुतून आठ-आठ फुट ऊंचे हैं। कहते हैं कि यह बुर्जी मोहम्मद साहब की आमद की यादगार में बनाई गई थी और उनके घोड़े के निशान बुर्ज के मध्य में हैं।

दो सौ वर्ष बाद मोहम्मद शाह तुगलक ने इसकी फिर मरम्मत करवाई और इसी तालाब से कुतुब साहब के झरने में पानी होता हुआ तुगलकाबाद जाता है। लोहे की लाट से यह तालाब कोई एक मील के फासले पर है। इस तालाब के गिर्द की जमीन तारीखी घटनाओं की जगह है। इर्द-गिर्द में बहुत से शूरवीरों और मुस्लिम संतों की यहां कब्रें हैं, जो हमलावरों के साथ आए। हौज के दक्षिण में अंधरिया बाग है और पूर्व में औलिया मस्जिद और लाल महल, जिसे जहाज कहते हैं।

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