1857 की क्रांति: नजफगढ में जनरल बख्त खां की टोली का अंग्रेजों ने आमना सामना हुआ। अंग्रेजों ने बुरी तरह शिकस्त दी। बख्त खां वहां से बहुत अपमानित होकर वापस आया। दरबार में भी उसको नीमच के दस्ते को हारने के लिए अकेला छोड़ देने और उनकी मदद को नहीं पहुंचने पर बहुत बुरा-भला कहा गया।
यहां तक कि बहादुर शाह जफर ने भी, जो कुछ हफ्तों से इन मामलों से बहुत दूरी बना चुके थे, इस हादसे के बारे में सुनने के बाद कुछ होश में आए और उन्होंने ‘जनरल बख्त खां को संदेश भेजा कि उसने मैदाने-जंग से मुंह फेरकर वापस आने में अपने नमक का हक अदा नहीं किया’
एक हफ्ते तक ऐसा लगता था कि फौज दूसरी बगावत करने वाली है। सिपाहियों में बेसिर-पैर की बातें होने लगीं कि वह जीनत महल को हटा देंगे-क्योंकि उनका इल्जाम था, जोकि सही भी था।
उन्होंने अंग्रेजों से पत्राचार जारी रखा है-और उनकी जगह पूर्ववर्ती ताज बेगम को मलिका बना देंगे। अगर पंद्रह दिन के अंदर-अंदर उनकी तंख्वाह नहीं दी गई’। जीनत महल के पिता मिर्जा कुली खान को भी कुछ अर्से के लिए सिपाहियों के एक दस्ते ने अपनी मर्जी से गिरफ्तार कर लिया।
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि जफर को हटाकर मिर्जा जवांबख़्त को तख्त पर बिठाना चाहिए, जो इस घेराबंदी के दौरान बिल्कुल गायब रहे थे। एक दिन पांच सौ सिपाही दीवाने-खास के सामने जमा हो गए और मिर्जा अबूबक्र और मिर्ज़ा खिजर सुल्तान पर रुपए गबन करने का इल्जाम लगाने लगे, और कहा कि उन्होंने ‘शहर से भी लोगों से कई लाख रुपए लिए हैं और फौज को कुछ भी नहीं दिया। ज़फर ने परेशान होकर क्लेि की बची हुई सारी चांदी उनके हवाले कर दी और कहा कि ‘इसे बेचकर अपनी तंख्वाहों के लिए आपस में बांट लो’।