1857 की क्रांति: 14 सितंबर को दोनों तरफ की सैनिक आमने सामने थे। अंग्रेजों ने दिल्ली शहर की दीवारों में सुराख कर दिया था, सैनिक शहर में दाखिल हो गए थे। अंग्रेज अफसर बार्टर ने कश्मीरी गेट के पास दीवार की मुंडेर पर भागते हुए एक जबरदस्त धमाका सुना और ऊपर देखने पर उसने पाया कि कश्मीरी गेट दिल्ली के अंदर ढह गया था।
हमले की योजना के मुताबिक दस सुरंग खोदने वालों और एक बिगुल बजाने वाले को गेट के एकदम सामने भारी मात्रा में विस्फोटक लगाने थे और गेट के टूटते ही अंग्रेज फौज को अंदर घुस जाना था। चूंकि यह हमला योजना के समय से देर से शुरू हुआ था और अब तक खूब दिन निकल आया था, इसलिए यह इतना आसान साबित नहीं हुआ, जितना योजना बनाते वक्त लग रहा था।
जब हमले का हुक्म दिया गया तो अंदर से बागी सिपाहियों ने गेट के नीचे स्थित छोटा दरवाजा खोलकर बारूद लगाने वालों पर सामने से गोलियां चलानी शुरू कर दीं जब वह टूटे पुल के साथ-साथ हमला करने कोशिश कर रहे थे, जिसकी अब बस एक शहतीर बची थी। उन सिपाहियों में सबसे आगे 27 वर्षीय फिलिप सॉकेल्ड था, जो एडवर्ड की वाइबर्ट के उन साथियों में से था जो 11 मई की शाम को उसी गेट से भागे थे और जिसने बाद के भटकने के दिनों में अपने जूते बहुत सम्मान से एनी फॉरेस्ट को दे दिए थे। अब पलीता पकड़े जिससे उस बारूद में आग लगाना थी, वह इस खतरनाक हमले में उस बची-खुची शहतीर पर विस्फोटक दल का नेतृत्व कर रहा था।
पीछे चार आदमी बारूद का थैला लिए हुए थे, अन्य सात आदमियों को जिनमें सॉकेल्ड भी शामिल था, थैले को गेट के लकड़ी के तख़्तों में ठोंकना था और फिर उसमें पलीता लगाकर उसमें आग भड़काना और फिर उड़ाना था। जैसे ही सॉकेल्ड का दल गेट के नजदीक पहुंचा, प्रतिरक्षक सिपाहियों ने छोटे दरवाज़े के अंदर से एकदम क्रीब से गोली चलाना शुरू कर दिया। गेट पर बारूद लगाने की कोशिश करते हुए पहले पहला सुरंग लगाने वाला, फिर दूसरा, फिर तीसरा, फिर चौथा मारे गए।
चंद पलों में तीन को छोड़कर सब मारे गए या जख्मी हो गए थे। सॉकेल्ड भी दो जख्म खाकर बुरी तरह घायल हो गया था। लेकिन उन तीन बचे हुए आदमियों में से एक सार्जेंट स्मिथ ने बुरी तरह जख्मी होते हुए भी फिर से बुझा पलीता जलाया और जैसे ही धमाका हुआ उसने अपने आपको पुल के नीचे फेंक दिया। दोहरे गेट का दायां हिस्सा पलीते से उखड़ गया। बचने वाला दूसरा सिपाही बिगुल बजाने वाला हॉथोर्न था, जिसने एक गढ़े की आड़ से जहां वह छिपा था, बिगुल बजाकर ब्रिटिश सिपाहियों को आगाह किया कि अब वह आकर हमला कर सकते हैं।