लाल किले के इन हिस्सों को गिराया गया

1857 की क्रांति: क्रांति के बाद अंग्रेजी फौज ने लाल किले पर कब्जा कर लिया। अधिकारियों के आदेश पर लाल किले को ध्वस्त करने का काम नवंबर 1857 में मलिका के हमामों से शुरू हुआ और उसके बाद सारे किले में फैलता चला गया।

एक वास्तुकला इतिहासकार जेम्स फर्ग्युसन ने 20 साल बाद लिखा कि एस्कोरियल से दोगुना इलाका नष्ट कर दिया गया। बाजार के दक्षिण और पूर्व में इमारतों के केंद्रीय रेंज में जितना भी इलाका था, उस सबको गिरा दिया गया, जो दोनों तरफ लगभग एक हजार फुट था, जहां किले के हरम का निवास था-यह जगह यूरोप के किसी भी महल से दोगुनी थी।

“मेरे पास जो देसी नक्शे हैं, जिन पर भरोसा न करने की मेरे पास कोई वजह नहीं है, उनमें चार बाग सेहन दिखाए गए हैं और कोई तेरह-चौदह दूसरे सेहन हैं, जिनमें से कुछ खास और कुछ आम लोगों के लिए बनाए गए थे। मगर वह कैसे थे, हम अब कभी नहीं जान पाएंगे। अब उनका कोई निशान भी नहीं रह गया है… हरम के भी सारे सेहन मिटा डाले गए और उनकी जगह ब्रिटिश सिपाहियों के रहने के लिए बहुत बदसूरत कमरों की कतारें बना दी गई। जिन लोगों ने इस भयानक विध्वंस को अंजाम दिया, उन्होंने यह तक नहीं सोचा कि वह जिस जगह को बर्बाद कर रहे हैं और वो दुनिया का सबसे शानदार महल है उसका कोई प्लान या रिकॉर्ड ही सुरक्षित कर लेते।

मार्च 1859 तक भी, जॉर्ज वैगनट्राइबर डेल्ही गजट में बड़ी खुशी के साथ लिख रहा था कि किले में अब भी इमारतें ‘उड़ाने का काम बड़े पैमाने पर’ चल रहा है। सबसे पहले सबसे उम्दा और खूबसूरत इमारतें ढहाई गई, जैसे छोटा रंग महल। किले के शानदार बागों-खासकर हयात बख्श बाग और महताब बाग-पूरी तरह तबाह कर दिए गए और साल के आखिर तक सिर्फ किले की असली शक्ल का शायद पांचवां हिस्सा ही बचा रह गया, जिसमें यमुना के किनारे चंद अलग-अलग बिखरी संगमरमर की इमारतें शामिल थीं। यह भी इसलिए बच गई कि यह अंग्रेज अफसरों के दफ्तरों या क्लब के इस्तेमाल में थीं लेकिन उनका वास्तु तर्क बिल्कुल खत्म हो चुका था क्योंकि वह सारे सेहन तोड़ डाले गए थे जिनका यह हिस्सा थीं।

सारे सुनहरी गुंबद और संगमरमर की अधिकतर वियोज्य फिटिंग्स वसूली एजेंटों ने नोच-नोचकर बेच डालीं। जैसा कि फर्ग्युसन ने लिखा हैः

“जब हमने किले पर कब्जा किया, तो हर किसी ने उसको पूरी आजादी के साथ लूटा। इनमें एक कैप्टन (जिसने किले पर कब्जे के दौरान लाहौर गेट को उड़ा दिया था, और जिसे बाद में ‘सर’ का खिताब मिला) जॉन जोंस भी था, जिसने एक बहुत बड़े हिस्से को उखाड़ डाला और बाद में उसने अपने लूट के माल को संगमरमर में जड़वाकर उन्हें टेबल टॉप बनवा लिया। उनमें से दो को वह इंग्लैंड ले गया और उन्हें सरकार को 500 पाउंड में बेच दिया, जो अब वहां इंडिया म्यूजियम में मौजूद उन टुकड़ों में पर्चिनकारी का मशहूर ‘ऑर्फियस पैनल’ भी था, जिसे शाहजहां ने अपने तख्ते-ताऊस के पीछे लगवाया था।

अब मुग़लों का लाल किला सुरमई रंग की ब्रिटिश कोठरियों का ढांचा बन गया था। नक्कारखाने में, जहां ढोल और नक्कारे कभी इसफहान और कुस्तुनतुनिया से आने वाले दूतों की आमद का ऐलान करते थे, अब एक ब्रिटिश स्टाफ सार्जेंट का निवास बन गया। दीवाने-आम अफसरों के आराम करने की जगह हो गया। बादशाह का निजी प्रवेश द्वार कैंटीन बन गया और रंग महल अफसरों का मैस।

मुमताज महल को फौजी कैदखाने में बदल दिया गया और शानदार लाहौरी दरवाजे का नाम बदलकर विक्टोरिया गेट रख दिया गया और उसे किले के अंग्रेज सिपाहियों के लिए बाजार बना दिया गया। महल के वास्तु में जफर के योगदान-जफर महल, जो सुर्ख बलुआ पत्थर की एक हौज के बीच बना नाजुक और खूबसूरत तैरता हुआ मंडप था-अब अफसरों के स्विमिंग पूल के बीच आराम की जगह बन गया, जबकि हयातबख्श बाग के बचे-खुचे हिस्से पेशाबघरों में तब्दील हो गए।

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