स्तुति से जीवन में आएगी सुख शांति
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
श्री गणेशजी, जिन्हें विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता के रूप में पूजा जाता है, के विभिन्न स्वरूपों का अद्वितीय महत्व है। प्रत्येक स्वरूप अपने साथ विशेष गुण और लाभ लाता है। इस लेख में हम श्री गणेशजी के विभिन्न स्वरूपों का ध्यान करेंगे, उनकी पूजा विधियों, महिमाओं और उन लाभों की चर्चा करेंगे जो भक्तों को इन स्वरूपों के माध्यम से प्राप्त होते हैं। आइए, गणेशजी की कृपा से अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति के लिए इन स्वरूपों की पूजा विधि को समझें।
भगवान गणेश
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं
लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम्।
ब्रह्मादिदेवैः परिसेव्यमानं
सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम्॥
सच्चिदानन्दमय भगवान् गणेश की अंगकान्ति सिन्दूरके समान है, उनकी दो भुजाएं हैं, वे लम्बोदर हैं और कमलदलपर विराजमान हैं। ब्रह्मा आदि देवता उनकी सेवा में लगे हैं तथा वे सिद्धसमुदाय से युक्त हैं, ऐसे श्रीगणपतिदेव को मैं प्रणाम करता हूं।
गजवक्त्र
अविरलमदधाराधौतकुम्भः शरण्यः
फणिवरवृतगात्रः सिद्धसाध्यादिवन्द्यः।
त्रिभुवनजनविघ्नध्वान्तविध्वंसदक्षो
वितरतु गजवक्त्रः संततं मङ्गलं वः॥
जिनका कुम्भस्थल निरन्तर बहनेवाली मदधारासे धुला हुआ है; जो सबके शरणदाता हैं; जिनके शरीरमें बड़े-बड़े सर्प लिपटे रहते हैं; जो सिद्ध और साध्य आदि देवताओंके वन्दनीय हैं तथा तीनों लोकों के निवासी- जनों के विघ्नान्धकारका विध्वंस करने में दक्ष (चतुर) हैं, वे गजानन गणेश आप लोगों को सदा मंगल प्रदान करें।
महागणपति
ओङ्कारसंनिभमिभाननमिन्दुभालं
मुक्ताग्रबिन्दुममलद्युतिमेकदन्तम्
लम्बोदरं कलचतुर्भुजमादिदेवं
ध्यायेन्महागणपतिं मतिसिद्धिकान्तम्॥
ओंकार-सदृश, हाथीके से मुखवाले तथा जिनके ललाटपर चन्द्रमा और बिन्दुतुल्य मुक्ता विराजमान है, जो बड़े तेजस्वी और एक दाँतवाले हैं, जिनका उदर लम्बायमान है, जिनकी चार सुन्दर भुजाएँ हैं, उन बुद्धि और सिद्धिके स्वामी आदिदेव गणेशजीका हम ध्यान करते हैं।
विघ्नेश्वर
विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाड्
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडो विघ्नेभपञ्चाननः।
विघ्नोत्तुंगगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाम्बुधौ वाडवो
विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वरः पातु वः॥
वे विघ्नेश्वर आपलोगोंकी रक्षा करें, जो विघ्नान्धकारका निवारण करनेके लिये एकमात्र सूर्य हैं, विघ्नरूपी विपिनको जलाकर भस्म करनेके लिये दावानलरूप हैं, विघ्नरूपी सर्पकुलके अभिमानको कुचल डालनेके लिये गरुड़ हैं, विघ्नरूपी गजराजको पछाड़नेके लिये सिंह हैं, विघ्नोंके ऊँचे पर्वतका भेदन करनेके लिये वज्र हैं, विघ्न-समुद्रके लिये वड़वानल हैं तथा विघ्न एवं पाप समूहरूपी मेघोंकी घटाको छिन्न-भिन्न करनेके लिये प्रचण्ड पवन हैं।
गणपति
सिन्दूराभं त्रिनेत्रं पृथुतरजठरं हस्तपद्यैर्दधानं
दन्तं पाशाङ्कुशेष्टान्युरुकरविलसद् बीजपूराभिरामम्।
बालेन्दुद्योतमौलिं करिपतिवदनं दानपूरार्द्रगण्डं
भोगीन्द्राबद्धभूषं भजत गणपतिं रक्तवस्त्राङ्गरागम् ॥
जो सिन्दूरकी-सी अंगकान्ति धारण करनेवाले और त्रिनेत्रधारी हैं; जिनका उदर बहुत विशाल है; जो अपने चार हस्त-कमलोंमें दन्त, पाश, अंकुश और वर-मुद्रा धारण करते हैं; जिनके विशाल शुण्ड-दण्डमें बीजपूर (बिजौरा नीबू या अनार) शोभा दे रहा है; जिनका मस्तक बालचन्द्रसे दीप्तिमान् और गण्डस्थल मदके प्रवाहसे आई है; नागराजको जिन्होंने भूषणके रूपमें धारण किया है तथा जो लाल वस्त्र और अरुण अंगरागसे सुशोभित हैं, उन गजेन्द्र-वदन गणपतिका भजन करो।
एकाक्षरगणपति
रक्तो रक्ताङ्गरागांशुककुसुमयुतस्तुन्दिलश्चन्द्रमौलि-
नैत्रैर्युक्तस्त्रिभिर्वामनकरचरणो बीजपूरान्तनासः।
हस्ताग्ग्राक्लृप्तपाशांकुशरदवरदो नागवक्त्रोऽहिभूषो
देवः पद्मासनो वो भवतु नतसुरो भूतये विघ्नराजः॥
वे विघ्ननाशक श्रीगणपति शरीरसे रक्तवर्णके हैं। उन्होंने लाल रंगके ही अंगराग, वस्त्र और पुष्पहार धारण कर रखे हैं। वे लम्बोदर हैं; उनके मस्तकपर चन्द्राकार मुकुट है; उनके तीन नेत्र हैं और हाथ-पैर छोटे-छोटे हैं; उन्होंने शुण्डाग्रभागमें बीजपूर (बिजौरा नीबू) ले रखा है; उनके हस्ताग्रभागमें पाश, अंकुश, दन्त तथा वरद (मुद्रा) सुशोभित हैं; उनका मुख गजके समान है और सर्पमय आभूषण धारण किये हैं। वे कमलके आसनपर विराजमान हैं और समस्त देवता उनके चरणोंमें नतमस्तक हैं; ऐसे विघ्नराजदेव आपलोगोंके लिये कल्याणकारी हों।
हेरम्बगणपति
मुक्ताकाञ्चननीलकुन्दघुसृणच्छायैस्त्रिनेत्रान्वितै-
र्नागास्यैर्हरिवाहनं शशिधरं हेरम्बमर्कप्रभम्।
दृप्तं दानमभीतिमोदकरदान् टङ्क शिरोऽक्षात्मिकां
मालां मुद्गरमङ्कुशं त्रिशिखिकं दोर्भिर्दधानं भजे॥
हेरम्बगणपति पाँच हस्तिमुखोंसे युक्त हैं। चार हस्तिमुख चारों ओर और एक ऊर्ध्व दिशामें हैं। उनका ऊर्ध्व हस्तिमुख मुक्तावर्णका है। दूसरे चार हस्तिमुख क्रमशः कांचन, नील, कुन्द (श्वेत) और कुंकुमवर्णके हैं। प्रत्येक हस्तिमुख तीन नेत्रोंवाला है। वे सिंहवाहन हैं। उनके कपालमें चन्द्रिका विराजित है और देहकी कान्ति सूर्यके समान प्रभायुक्त है। वे बलदृप्त हैं और अपनी दस भुजाओंमें वर और अभयमुद्रा तथा क्रमशः मोदक, दन्त, टंक, सिर, अक्षमाला, मुद्रर, अंकुश और त्रिशूल धारण करते हैं। मैं उन भगवान् हेरम्बका भजन करता हूँ।
सिंहगणपति
वीणां कल्पलतामरिं च वरदं दक्षे विधत्ते करै-
र्वामे तामरसं च रत्नकलशं सन्मञ्जरीं चाभयम्।
शुण्डादण्डलसन्मृगेन्द्रवदनः शङ्खन्दुगौरः शुभो
दीव्यद्रत्ननिभांशुको गणपतिः पायादपायात् स नः ॥
जो दायें हाथोंमें वीणा, कल्पलता, चक्र तथा वरद (मुद्रा) धारण करते हैं और बायें हाथोंमें कमल, रत्नकलश, सुन्दर धान्य-मंजरी एवं अभय मुद्रा धारण किये हुए हैं, जिनका सिंहसदृश मुख शुण्डादण्डसे सुशोभित है, जो शंख और चन्द्रमाके समान गौरवर्ण हैं तथा जिनका वस्त्र दिव्य रत्नोंके समान दीप्तिमान् है, वे शुभस्वरूप (मंगलमय) गणपति हमको अपाय (विनाश) से बचायें।
बालगणपति
क्रोडं तातस्य गच्छन् विशदबिसधिया शावकं शीतभानो-
राकर्षन् बालवैश्वानरनिशितशिखारोचिषा तप्यमानः।
गङ्गाम्भः पातुमिच्छन् भुजगपतिफणाफूत्कृतैर्दूयमानो
मात्रा सम्बोध्य नीतो दुरितमपनयेद् बालवेषो गणेशः॥
बालक गणेशजी अपने पिता शंकरजीके मस्तकपर सुशोभित बाल चन्द्रकलाको कमलनाल समझकर उसे खींच लानेके लिये उनकी गोदमें चढ़कर ऊपर लपके; लेकिन तृतीय नेत्रसे निकली लपटोंकी आँच लगी, तब जटाजूटमें बहनेवाली गंगाका जल पीनेको बढ़े तो सर्प फुफकार उठा। इस फुफकारसे घबराये हुए गणेशको माता पार्वती बहला-फुसलाकर अपने साथ ले गयीं। ऐसे बाल गणेश हमारे सब पाप-तापका निवारण करें।