उस खुले मैदान में, जिस चबूतरे पर दाह संस्कार हुआ था, गांधीजी की समाधि बना दी गई। मगर आज जो समाधि है, वह तो असल से नौ-दस फुट ऊंची है। असल समाधि नीचे दबी पड़ी है। विगत वर्षों में इस स्थान की शक्ल ही बदल गई है। मौजूदा समाधि बंगलौर ग्रेनाइट के नौ चौकोर काले पत्थरों की बनी हुई है। ये पत्थर 9 फुट x 9 फुट के हैं और डेढ़ फुट ऊंचे हैं।

समाधि जमीन से छह इंच ऊंची है। नीचे का चबूतरा ग्रेनाइट का 28 फुट x 28 फुट का है। चारों ओर 18.5 फुट लंबा, 9.5 इंच मोटा और 3 फुट ऊंचा संगमरमर का कटारा लगा है। फिर चारों ओर खुला मैदान है, जिसमें घास लगी और उसके बाद चारों ओर धौलपुर के चौड़े ग्रेनाइट पत्थर का 257 फुट x 257 फुट का खुला सफेद चबूतरा है। उसके बाद पत्थरों की 42 गुफाएं बनाई गई हैं, जिनके चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार है।

गुफाओं के पीछे की ऊंचाई जो अंदर से 9 फुट और बाहर से 13 फुट है, ढलवां मिट्टी डालकर उसे मैदान बनाया गया है। उसके बाद बगीचा है। चारों कोनों पर साए के लिए तीन-तीन सीमेंट की बैठकें हैं। यहां अंदर और बाहर नहरें बनाने की भी योजना है। चूंकि अभी पुनर्निमाण का बहुत कार्य बचा हुआ है। समाधि का क्षेत्रफल 71 एकड़ में है, जो बाद में 171 एकड़ हो जाएगा। साथ में 38 एकड़ की नर्सरी है।

समाधि स्थान पर हर शुक्रवार को शाम को, जो गांधीजी का निधन दिवस है, प्रार्थना होती है और 30 जनवरी को सुबह एक बड़ा समारोह होता है। उस दिन प्रार्थना और सूत्र यज्ञ होता है। दो अक्तूबर और आश्विन कृष्ण द्वादशी के दो दिन गांधी जयंती मनाई जाती है। उन दोनों दिन भी प्रार्थना और सूत्र यज्ञ होता है। सुबह से शाम तक हजारों दर्शनार्थी नित्य प्रति देश-देशांतर से समाधि पर आते रहते हैं। यहां के प्रबंध के लिए लोकसभा की ओर से समिति नियुक्त है, जो यहां की व्यवस्था करती है।

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