दिनोंदिन बढ़ती जा रही वेतन असमानता की खाई
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
देश की शीर्ष कंपनियों में वेतन असमानता दिनोंदिन गहराती जा रही है। शीर्ष अधिकारियों (सीईओ, एमडी, चेयरमैन) और मीडियन कर्मचारियों के वेतन के बीच का अंतर इतना ज्यादा है कि कई कंपनियों में मीडियन कर्मचारी को सीईओ जितना वेतन कमाने में 500 साल से अधिक समय लग सकता है। यह प्रवृत्ति कोविड-19 के बाद और तेज हुई है।
वेतन असमानता के आंकड़े
मीडियन वेतन का मतलब: मीडियन वेतन वह बिंदु है जहां आधे कर्मचारी उससे अधिक और आधे उससे कम वेतन पाते हैं।
बिजनेस स्टैंडर्ड के प्राइमइन्फोबेस डॉट कॉम के विश्लेषण के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2018-19 में निफ्टी 200 की 11% कंपनियां ऐसी थीं, जहां मीडियन कर्मचारी को सीईओ के बराबर कमाई करने में 500 साल से अधिक समय लगता। 2023-24 तक यह आंकड़ा 16% तक पहुंच गया।
वर्षवार असमानता का ग्राफ
वित्तीय वर्ष | 100 गुना या कम | 100-300 गुना | 300-500 गुना | 500 गुना से अधिक |
2018-19 | 39% | 37% | 13% | 11% |
2019-20 | 37% | 36% | 14% | 13% |
2020-21 | 36% | 35% | 14% | 15% |
2021-22 | 35% | 34% | 14% | 17% |
2023-24 | 35% | 35% | 13% | 16% |
वेतन में बढ़ोतरी की कहानी
कोविड-19 महामारी के बाद नेतृत्व की मांग बढ़ने से शीर्ष अधिकारियों के वेतन में तेजी आई है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में शीर्ष अधिकारियों का मीडियन वेतन 7.5 करोड़ रुपये था, जो 2023-24 में बढ़कर 12.5 करोड़ रुपये हो गया। यानी पांच साल में यह 64% की बढ़ोतरी दर्शाता है।
वहीं, मीडियन कर्मचारियों का वेतन 5 लाख रुपये से 13 लाख रुपये के बीच ही सिमटकर रह गया। इससे यह स्पष्ट है कि कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी का अनुपात शीर्ष अधिकारियों की तुलना में नगण्य है।
विभिन्न उद्योगों में असमानता
वेतन असमानता हर उद्योग में अलग-अलग है।
- वित्तीय क्षेत्र: यहां शीर्ष अधिकारी का वेतन 241 करोड़ रुपये सालाना तक है, जबकि मीडियन कर्मचारी का वेतन औसतन 13 लाख रुपये है।
- बुनियादी ढांचा उद्योग: यहां शीर्ष अधिकारियों का वेतन 51 करोड़ रुपये तक है, जबकि मीडियन कर्मचारी को औसतन 5 लाख रुपये वेतन मिलता है।
सबसे अधिक असमानता वाली कंपनियां
कुछ कंपनियों में यह अंतर सबसे ज्यादा है। पूनावाला फिनकॉर्प में शीर्ष अधिकारी का वेतन मीडियन कर्मचारी के वेतन का 2,679 गुना है।
- विप्रो: 1,701 गुना
- टेक महिंद्रा: 1,379 गुना
- इंफोसिस: 1,200 गुना
काम के घंटों पर छिड़ी बहस
इन्फोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति और लार्सन ऐंड टूब्रो के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन द्वारा कामकाज के 70-90 घंटे की बात ने नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने यह बयान राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में दिया, लेकिन इसका असर कर्मचारियों की मौजूदा परिस्थितियों पर भी पड़ा।
विशेषज्ञों की राय
- प्रणव हल्दिया (प्राइम डेटाबेस): “कोविड-19 के बाद नेतृत्व की प्रतिभा की मांग बढ़ने से सीईओ वेतन में तेज़ी आई है।
- अमित टंडन (आईआईएएस): “वेतन असमानता कंपनी के प्रमोटरों की सोच को दर्शाती है कि कंपनी की सफलता केवल उनके कारण है। इसे सुधारने के लिए अल्पांश शेयरधारकों को अधिक अधिकार देने की जरूरत है।”
वेतन असमानता पर अंकुश लगाने के लिए कंपनियों को पारदर्शी नीतियां अपनानी होंगी। इसके साथ ही, कर्मचारियों के लिए उचित वेतन संरचना और न्यायपूर्ण अवसरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना आवश्यक है।