Home मनोरंजन जब Ashok Kumar ने चैंपियन को दे डाली चुनौती, 35 हजार दर्शकों...

जब Ashok Kumar ने चैंपियन को दे डाली चुनौती, 35 हजार दर्शकों के सामने हुई साईकिल रेस

128
0
Ashok Kumar
source-google

मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम में हुआ ऐतिहासिक मुकाबला

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Ashok Kumar: अशोक कुमार, जिन्हें हिन्दी सिनेमा में दादा मुनि (Dadamuni) के नाम से भी जाना जाता है, केवल एक उम्दा अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी भी थे।

उन्होंने जहां एक ओर अभिनय की नई परिभाषा गढ़ी, वहीं दूसरी ओर उनके जीवन के कुछ पहलू आज भी कम ही लोगों को पता हैं।

अभिनय से परे एक बहुआयामी व्यक्तित्व

अशोक कुमार न केवल कैमरे के सामने जीवंत किरदार निभाने में माहिर थे, बल्कि वे एक होम्योपैथी विशेषज्ञ, चित्रकार, शतरंज खिलाड़ी और हस्तरेखा विशेषज्ञ भी थे। उनका जीवन सादगी, गहराई और साहसिकता से भरा हुआ था।

उन्हीं की जीवनशैली का एक अनोखा और प्रेरक अध्याय है 1951 की साइकिल रेस, जिसमें उन्होंने एक पेशेवर साइकिल चैंपियन को चुनौती दी।

साइकिल चैंपियन जानकीदास को दी चुनौती

इस ऐतिहासिक घटना की शुरुआत तब हुई जब जाने-माने अभिनेता और साइकिल चैंपियन जानकीदास ने अशोक कुमार को एक नुमाइशी साइकिल दौड़ के लिए आमंत्रित किया।

पहले तो अशोक कुमार हिचकिचाए, लेकिन देश में साइकिलिंग को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से वे राज़ी हो गए। उन्होंने इसे केवल एक रेस नहीं, बल्कि एक सामाजिक अभियान के रूप में लिया।

ashok kumar
source-google

ब्रेबोर्न स्टेडियम में ऐतिहासिक दौड़

यह रोमांचक मुकाबला 18 मई 1951 को बंबई (अब मुंबई) के प्रसिद्ध ब्रेबोर्न स्टेडियम में आयोजित हुआ। आयोजन की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे देखने के लिए करीब 35,000 दर्शक स्टेडियम में मौजूद थे।

निर्देशक किशोर साहू ने इस रेस के लिए एक सोने की कलात्मक ट्रॉफी प्रसिद्ध जौहरी नरोत्तमदास से तैयार करवाई थी।

मुकाबले में रोमांच, परिणाम में खेल भावना

जैसे ही दौड़ शुरू हुई, पहले हिस्से में अशोक कुमार ने जानकीदास को कड़ी टक्कर दी। दर्शकों का उत्साह चरम पर था। लेकिन आखिरकार अनुभवी खिलाड़ी जानकीदास ने बढ़त बनाई और रेस जीत ली।

फिर भी यह सिर्फ हार-जीत का मामला नहीं था। यह रेस भारतीय सिनेमा और खेल के बीच एक सुंदर समर्पण का प्रतीक बन गई।

ashok kumar
source-google

एक महीने की तैयारी और गंभीर अभ्यास

इस नुमाइशी रेस को वास्तविक रूप देने के लिए जानकीदास ने एक माह तक अशोक कुमार को प्रशिक्षण दिया।

दादा मुनि ने भी इस चुनौती को गंभीरता से लिया और पूरे समर्पण से अभ्यास किया। यह दिखाता है कि वे किसी भी क्षेत्र में शामिल होते तो पूरे मनोयोग और प्रतिबद्धता के साथ करते थे।

साईक्लिंग को बढ़ावा

अशोक कुमार की यह कहानी सिर्फ एक साइकिल रेस की नहीं, बल्कि यह उस सोच की कहानी है जहाँ एक सुपरस्टार अपनी लोकप्रियता का उपयोग समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए करता है।

उनकी यह पहल आज भी हमें यह सिखाती है कि प्रसिद्धि का असली उपयोग तब होता है जब वह प्रेरणा बन जाए।

अशोक कुमार स्पेशल

‘अछूत कन्या’ के बाद फिल्म इंडस्ट्री क्यों छोड़ना चाहते थे Ashok Kumar?

जब Ashok Kumar के पिता ने लड़ा मूछों पर ताव देने वाले का केस, जज ने कही यह बात

जन्म से पहले ही तय था नाम, लंदन से आया था बॉक्स: Ashok Kumar की अनसुनी विरासत

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here