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‘अछूत कन्या’ के बाद फिल्म इंडस्ट्री क्यों छोड़ना चाहते थे Ashok Kumar?

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हिन्दी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता अशोक कुमार के मन में एक समय फिल्म लाइन छोड़ने का विचार क्यों आया था, जानिए इसके पीछे की वजह

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Ashok Kumar: भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले अशोक कुमार ने एक वक्त पर फिल्म इंडस्ट्री को छोड़ने का मन बना लिया था। यह वो दौर था जब उनकी फिल्म ‘अछूत कन्या’ (1936) सामाजिक बदलाव की प्रतीक बनकर सामने आई थी और दर्शकों की भावनाओं को झकझोर गई थी।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी फिल्म के बाद अशोक कुमार ने अभिनेता बनने की इच्छा लगभग त्याग दी थी?

एक्टिंग से मोहभंग, फिर वापसी का कारण

अशोक कुमार कभी अभिनेता बनना ही नहीं चाहते थे। उनके भीतर अभिनय को लेकर कोई स्पष्ट आकांक्षा नहीं थी।

लेकिन न्यू थिएटर और बॉम्बे टॉकीज जैसे संस्थानों से जुड़े हिमांशु राय ने उनकी अभिनय प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अभिनय न छोड़ने की सलाह दी। हिमांशु राय का कहना था – अगर तुम्हारा नेचुरल स्टाइल चल गया, तो तुम ऊँचाई तक पहुँचोगे।”

माँ की आंखों में आंसू और एक नई समझ

जब उनकी माँ ने खंडवा में ‘अछूत कन्या’ देखी, तो भावुक हो गईं। फिल्म में रेलवे क्रॉसिंग के एक दृश्य में अशोक कुमार की भूमिका देखकर वे इस कदर द्रवित हुईं कि रो पड़ीं।

यह पल न केवल उनके परिवार के लिए भावनात्मक था, बल्कि अशोक कुमार के लिए भी एक नया बोध लेकर आया।

परफेक्शन की ओर पहला कदम

अशोक कुमार ने जब महसूस किया कि अभिनय ही अब उनका भविष्य है, तो उन्होंने इसे पूरी गंभीरता से लेना शुरू किया।

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उनके शब्दों में, मैंने यह समझा कि सफल अभिनय का मतलब है – ‘हाउ टू एक्ट’ नहीं, बल्कि ‘व्हाट टू एक्ट’।” यह सोच उन्हें आम अभिनेताओं से अलग करती है। उनके लिए अभिनय केवल संवाद बोलना नहीं था, बल्कि हर दृश्य में कुछ नया और असाधारण करना था।

ड्रामा नहीं, यथार्थवादी अभिनय में था विश्वास

अशोक कुमार का स्पष्ट मानना था कि उन्हें ड्रामा या थिएटर नहीं करना है, बल्कि सिनेमा में यथार्थ को प्रस्तुत करना है।

वे कहते थे कि बच्चे जब स्कूल नहीं जाना चाहते, तो बहाना बनाते हैं – यही मूलभूत एक्टिंग है। लेकिन वही बहाना जब अलग और प्रभावशाली हो जाए, तो वह अभिनय बन जाता है।

‘अछूत कन्या’ के बाद भले ही अशोक कुमार फिल्म लाइन छोड़ना चाहते थे, लेकिन उनके भीतर छिपे कलाकार को समय और परिस्थितियों ने एक नई दिशा दी। उन्होंने न केवल हिंदी सिनेमा

में अपने लिए एक अलग पहचान बनाई, बल्कि अभिनय को एक नई परिभाषा भी दी – जहाँ अभिनय यथार्थ की कला बन गई।

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