यह पुल हुमायूं के मकबरे से करीब ही दक्षिण द्वार के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसे जहांगीर के एक दरबारी मेहरबान आगा ने बनवाया था। उसी ने अरब की सराय का पूर्वी द्वार बनवाया था। पुल पर के एक लेख से यह 1612 ई. में बना बताया जाता है। लेकिन कनिंघम का कहना है कि मैरिनर फिंच ने इसे 1611 ई. में देखा था, इसलिए यह 1612 ई. में नहीं बन सकता। यह चूने पत्थर की एक भारी इमारत है।
यह यमुना की एक धारा पर बनाया गया था। 1628 ई. में मकबरे और पुल के बीच एक चौड़ी सड़क थी, जिसके दोनों ओर सायेदार वृक्ष लगे हुए थे। इस पुल में ग्यारह दर थे, यद्यपि नाम इसका बारह पुला था। यह नाम इस कारण पड़ा मालूम होता है कि दर चाहे ग्यारह हों, मगर पुल के सुतून बारह ही हैं।
पुल 361 फुट लंबा और 46 फुट चौड़ा है। इसकी ऊंचाई 29 फुट हैं। पुल के दोनों तरफ बड़े भारी पुश्ते हैं। पुल की मुंडेरों के ऊपर 10 फुट ऊंचे बुर्ज बने हुए हैं, जो दोनों ओर एक दूसरे के सामने हैं। उत्तर की दूसरी महराब पर कोई आठ फुट ऊंची और पांच फुट चौड़ी एक लाल पत्थर की दीवार बनी हुई है, जिस पर लेख लिखा हुआ है।