Ind.H.C. London/Oct.51,A22 Shri H.K. Mehtab, India’s Minister for Industry and Commerce photographed with Shri Krishna Menon, Indian High Commissioner in U.K.on his arrival at the London Airport, in the first week of October, 1951, to attend the Commonwealth supply Minister’s Conference.

कृष्ण मेनन को विभिन्न समय पर कई नामों से पुकारा गया… ‘रासप्यूटिन’, ‘ईविल जीनियस’, ‘फ़ॉर्मूला मैन’ और ‘वर्ल्ड्स मोस्ट हेटेड डिप्लोमैट’ वगैरह-वगैरह। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि ‘मेनन दोस्तों को भी अपना दुश्मन बना लेते थे. 1960 के बाद सैनिक जनरलों से उनके संबंध अच्छे नहीं रहे और उसका नतीजा हमें 1962 के भारत चीन युद्ध में देखने को मिला। कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में लिखा है कि चीनी हमले से कुछ ही हफ्ते पहले, अगस्त 1962 में भी मेनन भारत के खिलाफ पाकिस्तान की तैयारी का राग अलाप रहे थे। उन दिनों पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर राजेश्वर दयाल दिल्ली में ही थे। राजेश्वर दयाल ने कुलदीप नैयर को बताया कि एक सुबह उन्हें रक्षा मंत्रालय से एक फोन आया। वे मंत्रालय में पहुंचे तो उन्हें उस कमरे में ले जाया गया जहां रक्षा मंत्री सेना के कमांडरों के साथ बैठे हुए थे। वहां जनरल थापर भी मौजूद थे।

दयाल अभी अपनी सीट पर बैठे ही थे कि मेनन ने उनसे कहा कि वे कमांडरों को भारत-पाक सीमा पर पाकिस्तान की तैयारियों के बारे में बताएं। इससे पहले कि दयाल कोई जवाब दे पाते, थापर ने उनसे पंजाबी में कहा कि उन्हें किसी झांसे में नहीं आना चाहिए, क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से खतरे की बात एक-दूसरे बड़े अभियान का हिस्सा थी। मेनन समझ ही नहीं पाए कि थापर ने दयाल को इशारों ही इशारों में सावधान कर दिया था।

दयाल ने कहा कि उन्हें पाकिस्तान की तैयारियों की कुछ भी जानकारी नहीं थी। न ही उन्होंने दिल्ली आते समय सीमा पर इस तरह की कोई गतिविधियां देखी थीं। मेनन भड़क उठे और दयाल से बोले कि उन्हें इस खबर की पुष्टि करनेवाली रिपोर्ट चाहिए कि पाकिस्तान भारत पर हमले की तैयारी नहीं कर रहा था।

पाकिस्तान की तैयारियों की दलील के कारण जनरल थापर भारत-पाक सीमा से सेनाओं को हटाते हुए हिचकिचा रहे थे। लेकिन अब यह दलील खोखली साबित हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने वहाँ से एक डिवीजन हटाए जाने की माँग की। नेहरू ने झट से इस माँग को स्वीकार कर लिया।

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