चौधरी चरण सिंह: किसानों के मसीहा और स्वतंत्रता सेनानी की अद्वितीय गाथा

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

चौधरी चरण सिंह का नाम भारतीय राजनीति में उस महान शख्सियत के रूप में दर्ज है, जिन्होंने अपने संघर्ष और दूरदर्शी सोच से न केवल किसानों को न्याय दिलाया, बल्कि भारत की राजनीति को एक नई दिशा दी। वे एक स्वतंत्रता सेनानी, निस्वार्थ समाजसेवी, कुशल प्रशासक, और ईमानदार राजनेता थे। उनके व्यक्तित्व की छवि भारत के किसानों के हितैषी के रूप में उभरती है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

चौधरी चरण सिंह एक जुझारु स्वतंत्रता सेनानी, उत्कट देशभक्त, कुशल प्रशासक, विवेकशील राजनेता, बेदाग चरित्र और ईमान के धनी तथा भारत के किसानों के मसीहा थे। चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को संयुक्त प्रान्त (अब उत्तर प्रदेश) के गाजियाबाद जिले (तब का मेरठ जिला) के नूरपुर ग्राम में हुआ था।

अपने पैतृक गांव और फिर मेरठ से स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात् उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और इतिहास में एम.ए. की शिक्षा पूर्ण की। उन्होंने वर्ष 1927 में एलएल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की और एक वकील के रूप में गाजियाबाद में अपना नामांकन कराने के बाद मेरठ आ गए। 5 जून, 1925 को वह गायत्री देवी के साथ परिणय सूत्र में बंधे और एक पुत्र तथा पांच पुत्रियों के पिता बने।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

गाजियाबाद में विधिक व्यवसाय में रहते हुए चौधरी चरण सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में गहरी रुचि लेनी प्रारंभ कर दी। वकालत के पेशे में होने के कारण उन्हें लोगों, विशेषकर कृषकों के संपर्क में आने और उनकी समस्याएं समझने के भरपूर अवसर मिले। इसी से उन्हें भारत पर साम्राज्यवादी शासन के अन्यायपूर्ण पहलू का प्रत्यक्ष अनुभव करने में सहायता मिली।

स्वामी दयानन्द सरस्वती के विचारों और उपदेशों से प्रभावित होकर तथा लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी से प्रेरित होकर वह स्वतंत्रता आंदोलन और 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए। वह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई बार जेल गये।

जब महात्मा गांधी ने अगस्त, 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया तो चौधरी चरण सिंह ने उसमें गहरी रुचि दिखायी। वह भूमिगत होकर अंग्रेजों के विरुद्ध गुप्त रूप से गतिविधियों का संचालन करने लगे। उनका कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से मेरठ, हापुड़ और बुलंदशहर का क्षेत्र था। परंतु उन्हें शीघ्र ही गिरफ्तार कर लिया गया और वह नवम्बर, 1943 तक जेल में रहे।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत

चौधरी चरण सिंह 1932 में जिला परिषद् मेरठ के उपाध्यक्ष बन गए। वर्ष 1937 में वह मेरठ जिले में छपरौली से संयुक्त प्रांत की विधान सभा के सदस्य चुने गए। कुछ समय को छोड़कर वह वर्ष 1977 तक विधायक रहे। विधायक के रूप में चौधरी चरण सिंह ने ऋण मुक्ति विधेयक, 1939 तैयार करने और इसे अंतिम रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई जिससे ऋण में दबे कृषकों को बहुत राहत मिली। इसके अतिरिक्त उन्होंने “भूमि उपयोग विधेयक” तैयार करने में योगदान दिया जिसमें संयुक्त प्रांत की कृषि जोतों का स्वामित्व अधिकार वास्तविक काश्तकारों को देने का प्रावधान था।

वर्ष 1946 में संयुक्त प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत ने उन्हें अपने संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया। इस पद पर उन्होंने राजस्व, चिकित्सा और जन-स्वास्थ्य तथा स्थानीय स्वशासन विभागों में कार्य किया।

तत्पश्चात् उन्होंने 1951 से 1967 के दौरान राज्य मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वर्ष 1951 में वह राज्य में कैबिनेट मंत्री बने तथा न्याय और सूचना मंत्री का पदभार संभाला। बाद के वर्षों में चौधरी चरण सिंह ने राज्य सरकार में विभिन्न मंत्रालयों का कार्यभार संभाला जिनमें कृषि, पशुपालन, सूचना, परिवहन, गृह, वन, राजस्व और स्थानीय स्वशासन मंत्रालय शामिल हैं।

जमींदारी प्रथा का उन्मूलन

चौधरी चरण सिंह ने उत्तर प्रदेश में जमींदारी प्रथा को समाप्त करने में अहम भूमिका निभायी। कृषि और उसकी समस्याओं से भली-भांति परिचित होने के कारण उन्होंने आजीवन भारतीय कृषकों के हितों के लिए बहुमूल्य योगदान दिया।

उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविन्द बल्लभ पंत ने उनकी योग्यता और भूमि सुधारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से प्रभावित होकर उन्हें भूमि सुधार के क्षेत्र में उपयुक्त विधान बनाने का कार्य सौंपा। उन्हीं के प्रयासों के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश जमींदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1952, जिससे संपूर्ण राज्य में जमींदारी प्रथा समाप्त हो गई।

उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम, 1953, जिससे धनी और मध्यम कृपकों की कृषि जोतों की चकबंदी के लिए मार्ग प्रशस्त किया जा सका; और उत्तर प्रदेश मृदा संरक्षण अधिनियम, 1954, जिसका उद्देश्य क्रमिक भू-क्षरण और मिट्टी की उत्पादकता में गिरावट को रोकना था, को कानूनी रूप दिया जा सका। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर “मृदा संरक्षण” को एक प्रमुख विषय के रूप में शुरू करवाया।

मुख्यमंत्री और कृषि विकास के मसीहा

वर्ष 1967 के आम चुनाव के पश्चात् चौधरी चरण सिंह और उनके 16 समर्थकों ने कांग्रेस छोड़ दी और “जन कांग्रेस” नामक ग्रुप की स्थापना की। बाद में विपक्ष के विधायकों ने एकजुट होकर “संयुक्त विधायक दल” (एस.वी.डी.) का गठन किया जिसमें “जन कांग्रेस” भी सम्मिलित हुई।

चौधरी चरण सिंह इस दल के नेता बने। दिनांक 3 अप्रैल, 1967 को वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। दिसंबर, 1968 में “भारतीय क्रांति दल” (बीकेडी) नामक एक नई पार्टी बनी। चौधरी चरण सिंह इसके संस्थापकों में से एक थे।

तत्पश्चात् उन्होंने 1969 में उत्तर प्रदेश में हुए मध्यावधि चुनाव में भाग लिया और इसमें विजय प्राप्त की। फरवरी, 1970 में चौधरी चरण सिंह एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने और सितम्बर, 1970 तक मुख्यमंत्री रहे। तदनन्तर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया और उसके बाद 1977 तक चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश राज्य विधान सभा में विपक्ष के नेता रहे।

वर्ष 1974 में चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास किया और भारतीय लोक दल (बीएलडी) का गठन करने में सफल हुए। वह वर्ष 1977 में राष्ट्रीय स्तर पर जनता पार्टी के गठन के प्रमुख संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने भारतीय लोक दल का जनता पाटी में विलय कर लिया।

राष्ट्रीय राजनीति में योगदान

वर्ष 1977 में जनता पार्टी के झंडे तले लड़े गए आम चुनावों में पहली बार छठी लोक सभा के लिए निर्वाचित होने पर चौधरी चरण सिंह को केन्द्रीय गृह मंत्री नियुक्त किया गया तथा बाद में उन्हें उप-प्रधान मंत्री बनाया गया।

जनवरी, 1979 में उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया और इसी हैसियत से उन्होंने वर्ष 1979-80 का बजट पेश किया। 23 दिसंबर, 1978 को चौधरी चरण सिंह के 76वें जन्मदिवस के अवसर पर दिल्ली में एक विशाल किसान रैली का आयोजन किया गया। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जिससे लोगों का ध्यान किसानों से जुड़े मुद्दों की ओर आकृष्ट हुआ।

चौधरी चरण सिंह ने जुलाई, 1979 में जनता पार्टी से त्यागपत्र दे दिया और “भारतीय क्रांति दल” को “लोक दल” के नाम से पुनर्जीवित किया। 15 जुलाई, 1979 को प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई के त्यागपत्र के बाद और काफी विचार-विमर्श के पश्चात् तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. नीलम संजीव रेड्डी ने चौधरी चरण सिंह को नई सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और लोक सभा में विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कहा।

चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई, 1979 को प्रधान मंत्री पद की शपथ ली। दिनांक 20 अगस्त, 1979 को जच विश्वास मत पर चर्चा हेतु लोक सभा का मंत्र बुलाया गया तो उस दिन सत्र आरंभ होने से पहले, कांग्रेस (आई.) जिसने चरण सिंह मंत्रिमंडल को अपना समर्थन दिया था, ने समर्थन वापस लेने की घोषणा की। चौधरी चरण सिंह ने उसी दिन अपना त्यागपत्र दे दिया और राष्ट्रपति को परामर्श दिया कि वह नये सिरे से आम चुनाव कराने की घोषणा करें। वह 1980 में सातवीं लोक सभा और पुनः 1984 में आठवीं लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए।

अंतिम दिन और विरासत

चौधरी चरण सिंह भारतीय अर्थव्यवस्था और आयोजना के बड़े विद्वान थे। उनकी पुस्तकें “इंडियाज इकॉनामिक पॉलिसी-द गांधियन ब्लूप्रिंट” और “इकॉनामिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया-कॉज एंड क्योर” भारतीय कृषि विषय पर महान कृतियां हैं। उनके कुछ अन्य महत्वपूर्ण प्रकाशन हैं: “एबॉलिशन ऑफ जमींदारी (जमींदारी उन्मूलन)”, “को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्सरेड”, “इंडियाज पावर्टी एंड इट्स सोल्यूशन”, “अग्रेरियन रिवोल्यूशन इन उत्तर प्रदेश” और “लैंड रिफार्म्स इन यू.पी. एंड द कुलक्स”।

29 मई, 1987 को हृदयगति रुक जाने के कारण चौधरी चरण सिंह का निधन हो गया। किसानों की उन्नति के लिए उनके अभियान के कारण ही नई दिल्ली में उनके स्मारक को ‘किसान घाट’ नाम दिया गया।

दिवंगत आत्मा के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कहा……चौधरी चरण सिंह एक वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी, चरित्रवान और सत्यनिष्ठ व्यक्ति थे तथा उनके निधन से देश को महान क्षति हुई है…..”।

इस पचासी वर्षीय नेता की मृत्यु पर शोक व्यक्त करते हुए तत्कालीन उपराष्ट्रपति और राज्य सभा के सभापति,  आर. वेंकटरमन ने चौधरी चरण सिंह को” भारत के किसान वर्ग के हितों का प्रवल समर्थक” बताया।।

तत्कालीन प्रधान मंत्री  राजीव गांधी ने अपने शोक संदेश में चौधरी चरण सिंह को “राष्ट्रीय आंदोलन का योद्धा” बताया “जिन्हें अपनी सादगी और एकनिष्ठता के लिए याद किया जाएगा”।

उनके निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुए तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष, डॉ. बलराम जाखड़ ने कहा, “….चौधरी साहब ने जिस किसी भी हैसियत से कार्य किया, स्वयं को अत्यंत कुशल प्रशासक सिद्ध किया और अपनी स्पष्टवादिता और सादगी की अमिट छाप छोड़ी…..

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