पूरे देश में श्रद्धा के साथ मनाया जाता है Mahashivratri
शिव पुराण की ईशान संहिता में शिव की महिमा वर्णित
लेखक-डॉ. सौरभ मालवीय
एसोसिएयट प्रोफेसर, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,लखनऊ विश्वविद्यालय
Mahashivratri 2024 : पर्व एवं त्योहार भारतीय संस्कृति की पहचान हैं। ये केवल हर्ष एवं उल्लास का माध्यम नहीं हैं, अपितु यह भारतीय संस्कृति के संवाहक भी हैं। इनके माध्यम से ही हमें अपनी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। महाशिवरात्रि भी संस्कृति के संवाहक का ऐसा ही एक बड़ा त्योहार है।
Mahashivratri date and time
शिवरात्रि प्रत्येक मास की अमावस्या से एक दिन पूर्व अर्थात कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है, जबकि महाशिवरात्रि वर्ष में एक बार आती है। यह फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। शिव पुराण की ईशान संहिता में कहा गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे-
फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूत: कोटिसूर्यसमप्रभ:॥
माना जाता है कि इसी दिन प्रलय आएगा, जब प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तृतीय नेत्र की ज्वाला से नष्ट कर देंगे। इसीलिए शिवरात्रि को कालरात्रि भी कहा जाता है।
सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व
महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2024) धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। महाशिवरात्रि के सन्दर्भ में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार अग्निलिंग के उदय के साथ इसी दिन सृष्टि प्रारंभ हुई थी। एक पौराणिक कथा के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर भगवान शिव सर्वप्रथम शिवलिंग के स्वरूप में प्रकट हुए थे। इसीलिए इस दिवस को भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के प्रकाट्य पर्व को प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
Mahashivratri 2024 एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव का देवी पार्वती के साथ विवाह सम्पन्न हुआ था। यह उनके विवाह की रात्रि है। उन्होंने वैराग्य त्याग कर गृहस्थ जीवन अ पना लिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन के समय निकले कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ नीला हो गया था। इसीलिए उन्हें नीलकंठ नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि इस घातक विष के कारण भगवान शिव को ताप चढ़ गया था। इसे उतारने के लिए उनके मस्तक पर बेल पत्र रखा गया, क्योंकि बेल पत्र शीतल गुण वाला होता है। इससे उन्हें संतुष्टि प्राप्त हुई। तभी से शिवलिंग पर बेल पत्र चढ़ाने की परंपरा आरंभ हुई। एक कथा के अनुसार इस रात्रि भगवान शिव ने संरक्षण एवं विनाश के नृत्य का सृजन किया था। इसलिए भी यह रात्रि विशेष है।
महाशिवरात्रि का वैज्ञानिक महत्त्व
महाशिवरात्रि (Mahashivratri 2024) का वैज्ञानिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्व है। माना जाता है कि इस रात्रि ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मानव की आंतरिक ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है। मान्यता है कि यह ऊर्जा मनुष्य को आध्यात्मिक शिखर तक ले जाने में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए इस रात्रि में भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने का अत्यंत महत्त्व है। पूजा के समय भक्त सीधा बैठता है तथा उसकी रीढ़ की हड्डी सीधी होती है।
इसके कारण उसकी ऊर्जा उसके मस्तिष्क की ओर जाती है। इससे उसे शारीरिक ही नहीं, अपितु मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति भी प्राप्त होती है। भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय है। यह मंत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस मंत्र का संबंध पंच महाभूतों भूमि, गगन, वायु अग्नि एवं नीर से माना जाता है। इस मंत्र का निरंतर जाप करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। इससे मनुष्य का आत्मबल बढ़ता है।
महादेव की पूजन विधि
धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा- अर्चना करने से वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं। शिवरात्रि का महोत्सव एक दिवस पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है। भगवान शिव के मंदिरों में रात्रि भर पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त रात्रिभर जागरण करते हैं एवं सूर्योदय के समय पवित्र स्थलों पर स्नान करते हैं। नदी तटों विशेष कर गंगा के तटों पर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। स्नान के पश्चात भगवान शिव के मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं। तत्पश्चात भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। शिवलिंग का जलाभिषेक अथवा दुग्धाभिषेक भी किया जाता है। शिवलिंग पर जल से जो अभिषेक जाता है, उसे जलाभिषेक कहा जाता है।
इसी प्रकार शिवलिंग पर दुग्ध से जो अभिषेक किया जाता है, उसे दुग्धाभिषेक कहा जाता है। मधु से भी शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग पर सिंदूर लगाया जाता है एवं सुगंधित धूप जलाई जाती है। दीपक भी जलाया जाता है। उस पर फल, अन्न एवं धन चढ़ाया जाता है। उस पर बेल पत्र एवं पान के पत्ते चढ़ाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त वे वस्तुएं भी भगवान शिव को चढ़ाई जाती हैं, जो उन्हें प्रिय हैं। इनमें धतूरा एवं धतूरे के पुष्प सम्मिलित हैं।
मुक्तिदायिनी गंगा के जल का भी विशेष महत्व है, क्योंकि गंगा देवलोक से सीधी भगवान शिव की जटा पर ही उतरी थी। इसके पश्चात ही वह पृथ्वी लोक में उतरी एवं प्रवाहित हुई। इसलिए सभी नदियों में गंगा का स्थान सर्वोपरि माना जाता है। भक्तजन महाशिवरात्रि के दिन उपवास भी रखते हैं। कुछ लोग निर्जल रहकर भी उपवास करते हैं। उपवास से तन एवं मन दोनों ही शुद्ध होते हैं। शुद्ध मन में ही तो भगवान वास करते हैं। कई स्थानों पर भगवान शिव की बारात भी निकाली जाती है। इसमें कलाकार शिव एवं पार्वती का रूप धारण करते हैं। बारात में सम्मलित लोग शरीर पर भस्म लगाए हुए होते हैं। वे नाचते गाते हुए शिव एवं पार्वती के रथ के पीछे चल रहे होते हैं। भक्तजन इसमें भाग लेते हैं।
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