शनिवार को शाहजहांनाबाद की गलियों में पुराने दोस्त यार नाश्ते पर जमा होते हैं। नागौरी हलवे, बेड़मी पूरी, मटर की कचौरी हलवे, समोसे के जायकों के बीच बातों का लंबा सिलसिला शुरू होगा। कुछ अपनी कहेंगे और कुछ हाले दिल सुनाएंगे। परिचित हलवाई भी पुराने दोस्तों के गपशप में शामिल हो कर साप्ताहिक अखबार की तरह पूरे आस पड़ोस के सूरते हाल से बिछड़े लोगों को वाकिफ कराएंगे।

चावड़ी बाजार के बर्शाबुल्ला चौक से आती हलवे और मटर की कचौरी की खुशबू से राहगीर भी खिंचे चले आते हैं। लेकिन यहां के लोग भी फुर्सत में गर्मागर्म बेड़मी पूरी और आलू की चटपटी सब्जी के जायकों की तलाश में चले आते हैं। चटपटी नाश्ते के साथ गर्मागर्म गपशप नाश्ते का मजा ही दो गुना हो जाता है। दरअसल, शाहजहांनाबाद के हर गली-नुक्कड़ में लोग हर सुबह नाश्ते पर ऐसे ही गपशप करते दिख जाते थे। हालांकि अब यह नजारा शनिवार और एतवार का इंतजार करवाता है। शहर के हलवाई भी अब शनिवार और एतवार का बेसब्री से इंतजार करते हैं क्योंकि रोजाना तो पर्यटक और खरीददार आते हैं, लेकिन वीकएंड में यहां अपने लोग आते हैं।

नाश्ते में मुगलकालीन जायके

नागौरी हलवे की मिठास और स्वाद के कायल मुगलकाल के आखरी बादशाह बहादुर शाह जफर भी इस कदर थे कि वे नाश्ते में इसी दुकान से नागौरी हलवा और मटर की कचौड़ी मंगाया करते थे। श्याम स्वीट्स पिछली पांच पीढ़ी से चल रही है जहां मटर की कचौरी, बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी और नागौरी हलवे का वहीं स्वाद परोसा जाता है। एकदम दिल्ली छह का खालिस स्वाद जो किसी के मुंह में पानी ला दे। बेड़मी पूरी और आलू की सब्जी के साथ आचार भी जायके के लुत्फ को बढ़ा देता है।

श्याम स्वीट्स के संचालक संजय अग्रवाल बताते हैं कि इस दुकान से मुगलों का नाश्ता जाया करता था, पांच पीढ़ी बीत गई पर कचौरी और हलवे का स्वाद वैसा ही रखा गया है। यही वजह है कि पुरानी दिल्ली से किसी और स्थान पर जा बसे लोग नगौरी हलवे का स्वाद लेने हर रविवार को आते हैं। 60 वर्षीय संजय ने बताया कि मेरे बचपन के दोस्त भी यहां आते हैं और हम सब पुरानी बातें याद करते हैं। हमारी तरह कई लोगों की यादें यहां आकर ताजा हो जाती है। नागौरी हलवे को उसी तरह बनाया जाता है जैसे मेरे पिताजी बनाया करते थे। नाश्ता मतलब नाश्ता इसलिए कुछ चीजें सिर्फ नाश्ते यानि सुबह 11 बजे तक ही बनाया जाता था लेकिन अब विदेशी पर्यटकों को देखते हुए पूरे समय बनाया जाता है। उन्होंने बताया कि हलवे का एक प्लेट पहले कुछ आने में मिलता था अब इसका एक प्लेट 60 रुपए में मिल रहा है। दुकान के भरत ने बताते हैं कि अब भी पुराने लोग आते हैं लेकिन अब धीरे धीरे स्थितियां बदल रही है। अब इस हलवे और पुरानी मिठाई को देश विदेश में भेजा जा रहा है। दिल्ली के लोगों में ही खाने पीने के लिए दीवानगी रही है। इसी के चलते पुरानी दिल्ली में पुराने जायके आज भी चल रहे हैं। खासकर पुराने लोग आज भी अपने ठीए और दुकानों में इन चीजों को पकाते हैं।

अंग्रेजी फ्रूट सैंडविच में वहीं पुरानी बात

पुरानी दिल्ली की गलियों में मुगलकाल के जायकों के साथ अंग्रेजों के जमाने के नाश्ते का भी लुत्फ उठाया जा सकता है। अंग्रेजों के जमाने में ज्यादातर नाश्ता नॉनवेज सैंडविच का हुआ करता था, लेकिन पुरानी दिल्ली के लोग कुछ हल्का फुल्का और शाकाहारी खाना पसंद करते थे इसलिए जैन बंधुओं ने ब्रेड, बटर के साथ कुछ नया फार्मूला इजाद किया।साल 1930 में भारतीय के लिए खास फ्रूट सैंडविच बनाया जाने लगा जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। पवन जैन और अनिल जैन द्वारा चलाए जा रहे सैंडविच कॉर्नर में पुराने लोगों का आज भी अड्डा जमता है। यहां फलों के सैंडविच खाने दूर दराज से लोग आते हैं।

चावड़ी बाजार के एक तंग गली में जैन कॉफी हाउस नाम से मशहूर सैंडविच की दुकान को करीब 85 साल बीत गए हैं। इन्हें भी पुराने लोगों का इंतजार रहता है। कभी डेढ़ रुपए में मिलने वाले सैंडविच की कीमत आज 70 रुपए हो गई है लेकिन लोग फिर भी यहां आते हैं और इनका लुत्फ उठाते हैं। मौसमी फल आम, अंगूर, मलाई, केला, सेब, चीकू, मिक्सड फ्रूट, कीवी, नाशपाती जैसे कई फलों का सैंडविच यहां खाया जा सकता है। संडे के दिन यहां लोग सैंडविच के साथ अपने पुराने दिनों की याद भी कर लेते हैं।

पवन कुमार जैन बताते हैं कि चांदनी चौक और आसपास में रहने वाले लोग अंडे और दूसरी नॉनवेज सैंडविच नहीं खाते थे, तब मेरे पिताजी ने फ्रूट सैंडविच बनाना शुरू किया। उस समय आसपास के लोगों ने इसकी तारीफ की और इसे बहुत पसंद करने लगे, बस इस तरह शुरू हो गया फ्रूट सैंडविच बेचने का सफर जो आज भी चल रहा है। सैंडविच काफी हल्का भोजन है और हेल्दी भी इसलिए इसे खाने के लिए पर्यटक काफी दूर से आते हैं। उनके भाई अनिल जैन ने बताया कि पैसों से ज्यादा उनके सैंडविच के कद्रदान के चलते उन्हें ज्यादा खुशी होती है। कई विदेशी यहां उनसे इस सैंडविच की रेस्पी पूछ कर भी जाते हैं, लेकिन फिर भी वे इसी दुकान में जरुर आते हैं।

पराठे वाले गली में जाना पहचाना नाश्ता

किनारी बाजार के पास पराठे वाली गली में भी शाही नाश्ता करते लोग दिखते हैं। रोजाना यहां विदेशी और खरीददार आते हैं लेकिन शनिचर और एतवार को कुछ पुराने लोग आते हैं। इनके लिए बनाए जाने वाले पराठे भी अलग होते हैं। घी से तला हुआ नहीं लेकिन लजीज स्वाद। बाबू राम पराठे वाले बताते हैं कि पुराने लोगों के लिए कीमत भी अपनी होती है। वो बस चले आते हैं इसी से सकून होता है कि आज भी चांदनी चौक जिंदा है। क्योंकि शहर का मिजाज इन्हीं से तो था कभी। 

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