मुगलों ने जब शाहजहांनाबाद बसाया था तो यहां हर चीज करीने से बनाई और संवारी गई थी। गलियां हो या चौक चौबारे, या फिर बात चाहे हवेलियों की हो, बाजारों की और जायकों की। हर बात में मुगलकालीन रईसी की झलक मिलती थी। गलियों में बिकने वाली चीजें भी रईसों के लिए खास बनाई जाती थी, यहां तक की इन ऐतिहासिक गलियों में बेची जाने वाली भिंडी, लौकी, तोरी, बैंगन, टमाटर, गाजर जैसी सब्जियां भी खास हुआ करती थी। हरी, चुनिंदा, छटी हुई ताजी सब्जियां। शायद ऐसा गांवों में भी कम देखने को मिलता हो, लेकिन शाहजहांनाबाद की गलियों में सब्जियां भी चुनिंदा मिलती थी। अब उस जमाने को गए कई बरस बीत गए, लेकिन हरी सब्जियों की रईसी की बादशाहत की झलक आज भी शाहजहांनाबाद की गलियों की सब्जियों की दुकानों में दिख जाती है। चांदनी चौक मालीवाड़ा में आज भी उसी तरह सब्जियां करीने से लगाई, पोछी, सजाई जाती है, जैसे कभी मुगलों के जमाने में हुआ करता था। मॉल और बड़ी-बड़ी दुकानों में भी चुनिंदा सब्जियां मिल जाती है, लेकिन जो बात मालिवाड़ा की सब्जियों में होता है वो कही नहीं। पुरानी दिल्ली के पुराने बाशिंदे इस बात से बखूबी वाकिफ हैं, इसलिए आज भी वे फुर्सत में ही सही, यहीं से सब्जी खरीदना पसंद करते हैं।

वैसे तो पुरानी दिल्ली में तीन स्थानों पर सब्जी मार्केट लगती है। माली वाड़ा, साइकिल मार्केट, नया बांस में रोजाना सुबह सब्जी की मार्केट आज भी लगती है। यहां के लोग इसे खरीदते भी हैं लेकिन ताजी और अच्छी सब्जी खरीदने मालीवाड़ा ही जाते हैं। पहले बाकी स्थानों पर भी चुनिंदा सब्जियां मिलती थीं। सब्जी के ठीए लगाने वाले सुबह तीन बजे ही थोक मार्केट से सब्जियां ले आते हैं और उसे छांटने, धोने में करीब ढाई घंटे बीता देते हैं। फिर उसे अपने ठीए पर करीने से सजाते।

मालीवाड़ा की तंग गली का मिजाज दिन होते ही बदल जाता है। सुबह की किरने पड़ती है यहां दूर दूर से लोग अपनी चुनिंदा सब्जियां बेचने पहुंच जाते हैं। छोटी छोटी टोकरियों में लोग एक ही तरह की भिंडी, मटर, टमाटर, गोभी, शलगम, बैंगन, मिर्च लिए बैठे होते हैं, लोग भी इन सब्जियों के स्वाद को इतना पसंद करते हैं कि वे दूर दूर से यहां सब्जी लेने पहुंच जाते हैं। आखिर क्यों इतनी लोकप्रिय है मालीवाड़ा की सब्जियां और उन्हें बेचने वाले लोग? यह जानने की जिज्ञासा शायद सभी को हो। इसके का जवाब तो टोकरियों में सब्जी को देख कर ही मिल सकता है लेकिन यहां की सब्जी वालों की कई यादें भी हैं जिसके कारण वे आज भी मालीवाड़ा चले आते हैं सब्जी बेचने।

मालीवाड़ा में अक्षय कुमार की नानी के घर के बाहर सब्जी की दुकान लगाने वाले रामचंद्र बताते हैं कि पुरानी दिल्ली में जो रईस लोग बचे हुए हैं उन्हीं की बदौलत अब भी यह सब्जी मार्केट जिंदा है। अपने खरीददारों की सूची के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि अभिनेता अक्षय कुमार भी यहां की सब्जी खा कर ही बड़े हुए हैं। चालीस साल पहले यहां हर घर से आवाज आती थी लेकिन सब दुकानों में तब्दील हो गया है। कुछ पुराने लोग अब भी यही है इसलिए सब्जी की दुकानें भी सांसे ले रही हैं।

पिछले साठ साल से यहां सब्जी बेचने वाले एक विक्रेता बताते हैं कि उनके दादा भी यहां नीबू, मिर्च और सब्जियां बेचा करते थे। सब्जी छांटना सभी के बस की बात नहीं है, यह भी मेहनत का काम है। धनियां को करीने से लगाते हुए हैं महिपाल सिंह कहते हैं कि पुरानी दिल्ली में कई रईस रहा करते थे, वे सब्जी वालों को भी नाम से पुकारा करते थे इस कदर जान पहचान हुआ करती थी। मंडी से अच्छी कीमत भी देने से गुरेज नहीं था। अब अगर अदरक की कीमत 20 रुपए प्रति 100 ग्राम है तो यहां पर 30 रुपए प्रति 100 ्रग्राम बेची जाती है। कुछ लोग तो आज भी इस कीमत पर सब्जी ले लेते हैं लेकिन सब नहीं। इसलिए अब बहुत कम मात्रा में ही सब्जी लाते हैं। पहले सुबह आठ बजे तक सारी सब्जियां बिक जाती थी, लेकिन अब वो वाली बात नहीं रही। उम्र ज्यादा हो गई है और कोई दूसरा काम किया भी नहीं जा सकता। इसलिए इसी गली में आकर सब्जी बेचता हूं, इसी बहाने कुछ पुराने लोगों से ही मुलाकात हो जाती है। वे बताते हैं सब्जी को छांटकर, धोकर बेचने के एवज में कुछ ज्यादा दाम मिल जाता है। अब लोग साग घर पर छांटते हैं यहां उन्हें छटी हुई मिल जाती है।

पुरानी दिल्ली से कई साल पहले यहां से दक्षिणी दिल्ली शिफ्ट हो चुके सोमदत्त बताते हैं कि जब उन्हें भरवी सब्जियां बनानी होती है, तो सब्जियां यही से खरीद कर लानी होती है। रोज-रोज तो यहां आया नहीं जाता लेकिन रविवार को जरुर यहां से सब्जियां खरीद कर ले जाते हैं। वे बताते हैं कि भरवी भिंडी, करेला का स्वाद यहीं की सब्जी से आता है। बड़ी-बड़ी सब्जी की दुकानों में आज कल चुनिंदा सब्जी मिल जाती है लेकिन पुरानी दिल्ली के लोगों के लिए तो मालीवाड़ा ही सुपर मार्केट है। खास बात यह है कि आठ बजते बजते सब सब्जी के ठीए खाली हो जाते हैं, और वहां खुल जाती है साड़ियों की दुकानें। सब्जी मार्केट बेशक आठ बजे तक वजूद में रहता है लेकिन सब्जी की ताजगी का अहसास के साथ आज भी अपने वजूद के साथ जिंदा है।

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