रिंग रोड पर वाहनों की भागमभाग, लगा रेला और जाम में फंसकर चिल्लाते लोगों के ठीक उलट सड़क किनारे स्थित गांधी हिंदुस्तान साहित्य सभा (gandhi hindustani sahitya sabha) और राष्ट्रीय संग्रहालय (gandhi museum) तपती धूप में छांव का एहसास कराती है। परिसर में कदम रखते ही सुकून की अनुभूति होती है। हवा में गूंजता रघुपति राघव राजा राम, बैष्णव जन तो तेने कहिए, मद्धम भजन दिल को छू जाता है। अभिभावकों की अंगुली पकड़ गांधी की तस्वीरों को निहारते और सवालों की बौछार करते बच्चे और गांधी के दर्शन को आत्मसात करते विदेशी पर्यटक देखे जा सकते हैं। सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी (mahatma gandhi) का ही प्रभाव है सभा में आज भी विदेशी पर्यटक चरखा सीखने आते हैं। जापान में तो बकायदा चरखा क्लब बनाया गया है, जिसके सदस्य अक्सर दिल्ली आते हैं। दिल्ली में महात्मा गांधी से जुड़ी यादों से आपको रूबरू कराते हैं।

चरखा क्लब (charkha club) का दिल्ली जुड़ाव

हिंदुस्तान साहित्य सभा की सचिव कुसुम शाह कहती हैं कि गांधी के सत्य के प्रयोग, अहिंसा का दर्शन समझने बड़ी संख्या में लोग आते हैं। अभिभावक अपने बच्चों को दिखाने लेकर आते हैं। इसे देख तसल्ली मिलती है। वर्षो पहले जापान से कुछ लोग चरखा सीखने आए थे, वापस लौट उन्होंने चरखा क्लब की स्थापना की। क्लब के पुराने सदस्य आज भी नए सदस्यों को लेकर दिल्ली आते हैं। यहां वे चरखा सीखते हैं। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन समेत अन्य देशों से बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। अमेरिकी दूतावास तो हर वर्ष गांधी जयंती से पहले चरखा शिविर आयोजित करता है। जिसमें अमेरिकी दूतावास स्कूल के बच्चों को चरखा सिखाया जाता है। इस वर्ष 13 से 21 सितंबर तक आठ दिवसीय शिविर चलाया। जिसमें वर्ष विजय हाण्डा और उनकी पत्‍‌नी बीना हाण्डा ने बच्चों को प्रशिक्षित किया। विजय हाण्डा तो सन 1973 से चरखा चलाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। कुल 600 छात्रों ने चरखा चलना सीखा। बकौल कुसुम शाह चरखा सीखना आर्थिक से ज्यादा भावनात्मक मामला है। यह स्वावलंबन, स्वयंश्रम का महत्व जगाता है। चरखा चलाने से एकाग्रता बढ़ती है।

रूबरू हों चरखे के इतिहास से

राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में भांति-भांति के चरखे लोगों को आकर्षित करते हैं। यहां चरखे का इतिहास संजोकर रखा गया है। पदाधिकारी कहते हैं कि प्रारंभिक काल से ही भारत के घर-घर में चरखे का प्रयोग होता था। हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के उत्खन्न से भी इसके प्रमाण मिलते हैं। ऋगवेद में कताई और बुनाई के बारे में जानकारी मिलती है। गांधी ने कहा था कि पहली बार उनके मन में चरखे का ख्याल सन 1909 में लंदन में आया था। दिमाग में कौंधा कि चरखे के बिना स्वराज्य की कल्पना नहीं की जा सकती। मैं पहले 1915 में बुनकर बना और बाद में कातने वाला। गांधी के इसी सपने को यहां संजोया गया है। संग्रहालय में पंजाबी चरखा, गुजराती चरखा, बारडोली चरखा, बिहार चरखा, एक तकुवा चरखा, पेटी चरखा, किसान चरखा, पुस्तक चरखा, चार तकुआ लकड़ी का चरखा, अेरि चरखा, मूगा रेलिंग,एल्युमिनियम पेटी चरखा, एक तकुआ डिब्बा चरखा, छह तकुआ अंबर चरखा, सात तकुआ मस्लिन चरखा समेत कई अन्य प्रकार के चरखे लोगों का ज्ञानवर्धन करते हैं।

फोटो की जुबानी जिंदगी की कहानी

2 अक्टूबर को पोरबंदर में जिस कमरे में महात्मा गांधी का जन्म हुआ वहां स्वस्तिक चिन्ह बनाया गया है। गांधी से जुड़ी यादें यहां फोटोफ्रेम में संजोयी गई है। सात वर्षीय गांधी की अपने भाई लक्ष्मीदास संग फोटो, दक्षिण अफ्रीका में मई 1893 से 18 जुलाई 1914 तक प्रवास के दौरान की फोटो यहां लगाई गई है। जोहांसबर्ग में कार्यालय, पीट्सबर्ग का वो रेलवे स्टेशन जहां गांधी को ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। गांधी के तगमे भी यहां लोगों के लिए लगाए गए हैं। अधिकारी कहते हैं कि गांधी के बचपन से अंतिम संस्कार तक की जिंदगी को संग्रहालय में 7000 से भी ज्यादा तस्वीरों के माध्यम से जाना एवं समझा जा सकता है। दिल्ली में बिरला हाउस प्रवास, महरौली में भ्रमण, भंगी कालोनी का निरीक्षण, जिन्ना संग बैठक समेत कई अन्य महत्वपूर्ण अवसरों की फोटो है।

गांधी की स्मृतियां

मनु बेन द्वारा प्रदत्त महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी के सामान आज भी लोग उत्सुकता एवं कौतुहल से देखते है। गांधी की कपूर की माला, मार्तड टेबल घड़ी, पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा लंदन वापसी पर दिया गया पारकर फाउंटन पेन, 25 दिसंबर को क्रिसमस के अवसर पर मिस्टर ग्लेन और एंथनी द्वारा गिफ्ट दी गई जिलेट रेजर ब्लेड और दो कैंची, नोआखली यात्रा के दौरान प्रयोग की गई दो माचिस की डिबिया, सन 1945 से अंतिम दिनों तक पहना गया चमड़े की चप्पल, लकड़ी का डिब्बा, सेवाग्राम में उपयोग किया पीतल की कटोरी प्रदर्शित है। इसके अलावा सन 1947 में गांधी द्वारा उपयोग की गई पत्थर की थाली, 1946 में उपयोग की गई पीतल की थाली और जूसर, पैर साफ करने के लिए प्रयुक्त पत्थर, फिटकरी, थूकदानी, चम्मच, तवा, बेलन, कूकर, बालपेन, घड़ी गांधी के जीवन से परिचित कराते हैं।

44 हजार किताबें बढ़ाएंगी ज्ञान

महात्मा गांधी के विचारों, उनके अनुभव, उनकी भावनाओं को समझने एवं आत्मसात करने के लिए किताबों का खजाना मौजूद है। पदाधिकारियों ने बताया कि यहां 44 हजार से ज्यादा किताबें उपलब्ध है। गांधी की 25 हजार मनु स्कि्रप्ट भी हैं। इसके अलावा मंगल प्रभात समेत तमाम ऐसी पत्र-पत्रिकाएं भी यहां आसानी से पढ़ने को मिलती है जो सालों से गांधीवादी विचारों को समाज में फैला रही है।

आस्कर सम्मानित फिल्मकार ने सीखा चरखा

कुसुम शाह कहती हैं कि आस्कर सम्मानित ब्रिटिश फिल्मकार रिचर्ड सैमुअल एटनबरो तब गांधी फिल्म बना रहे थे। फिल्म निर्माण के दौरान वो अशोका होटल में ठहरे थे। गांधी हिंदुस्तानी साहित्य सभा से प्रतिदिन दो से तीन लोग चरखा चलाना सिखाने जाते थे। साथ ही फिल्म के कलाकार यहां आकर गांधी दर्शन भी जानते थे। उनसे जुड़े सामानों को देखते थे।

डीयू की दीवारें सुनाती गांधी की कहानी

भारत की आजादी का इतिहास दिल्ली विश्र्वविद्यालय के इतिहास से जुड़ा हुआ है। जब आजादी के लिए दिल्ली मचल रही थी तो दिल्ली विश्र्वविद्यालय के सैकडों छात्र आंदोलन में शरीक हुए थे। महात्मा गांधी ने दिल्ली विश्र्वविद्याल के कई कॉलेजों में बैठकें की हैं और यहां के छात्रों को आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित भी किया। सेंट स्टीफंस कॉलेज और हिंदू कॉलेज इसके गवाह हैं। डीयू ने बकायदा दीवारों पर गांधी की जीवन यात्रा को चित्रित करवा रहा है। इसके अलावा कनॉट प्लेस में चरखा म्यूजियम भी गांधी के जीवन की दास्तां सुनाता है। यहां चरखा समेत गांधी पर फिल्म भी दिखाई जाती है। गांधी शांति प्रतिष्ठान में गांधी दर्शन पर व्याख्यान होते हैं। राजघाट स्थित गांधी स्मृति दर्शन संस्थान साहित्य के माध्यम से लोगों को गांधी के विचारों से परिचित करा रहा है।

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