The secret of Delhi havelis दिल्ली की गलियों में हवेलियों से जुड़ी कई कहानियां सुनने को मिल जाती है। महेश्वर दयाल ने अपनी किताब दिल्ली जाे एक शहर है में हवेलियों पर विस्तार से लिखा है। वो लिखते हैं कि औरतों में परदा बहुत सख्त होता था नौजवान लड़कों और लड़कियों का एक-दूसरे से मिलना तो दरकिनार, एक-दूसरे को देखना भी मुश्किल हो जाता था। उन दिनों दिल्ली की यह आम कहावत थी, ‘आग और फूस का बैर है। इसका मतलब यह था कि किसी युवा लड़के या युवती का मिलना आग और फूस का मिलना है और उसका नतीजा वही निकलेगा।

इस संबंध में एक नवयुवक पर बीती घटना का जिक्र करना अप्रासंगिक न होगा। वह युवक बड़ा सुंदर था और बाद में एक मशहूर फ़िल्म स्टार भी हो गया था वह कई दिनों से देख रहा था कि बराबर के घर से एक हसीन लड़की रोज दोपहर के वक़्त छत पर आकर कपड़े सुखाती है। एक दिन हिम्मत करके वह भी उससे मिलने छत पर चला गया। लड़के और लड़की ने एक-दूसरे की ओर देखा मगर दोनों एक शब्द भी न बोल सके। लेकिन फिर भी दोनों पहली ही नज़र में मुहब्बत के शिकार हो गए।

लड़की का दादा एक आरामकुर्सी पर बैठा हुआ था और उसने अपनी दोनों टांगें कुर्सी के दोनों लंबे बाजुओं पर रखी हुई थीं। उसके बराबर में ही उसका हुक्का रखा हुआ था। वह लड़के और लड़की के दरम्यान जो कुछ हो रहा था उसे जानता था लेकिन जाहिर यह कर रहा था कि जैसे सोया हुआ हो। चार रोज के बाद लड़का हैरान रह गया जब दादा ने जोर से आवाज़ दी, “ऊपर कौन है?” नौजवान लड़के ने बहुत ही घबराहट की हालत में और लड़खड़ाती जबान से अपना नाम बताया और बोला- “मैं तो अपने कबूतर की तलाश में ऊपर आया था।” लड़की का दादा हंस पड़ा और बोला, “बरखुरदार, बेहतर यही होगा कि तुम उसके पर काट रखो वरना कबूतर जल्द उड़ जाएगा।” इस गुप्त संकेत को सुनकर नौजवान समझ गया कि क्या होने वाला है। उसके कुछ अर्से बाद ही उस लड़की की शादी हो गई और इस तरह से यह चंद दिन का रोमांस समाप्त हो गया।

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