1857 की क्रांति: दिल्ली में अब निर्णायक लडाई लडी जा रही थी। क्रांतिकारियों और अंग्रेजों के बीच तीखे हमले जारी थे। रिज पर अंग्रेजी सिपाही डटे थे। अंग्रेजों ने जॉन निकल्सन को ब्रिगेडियर जनरल की जिम्मेदारी सौंपी तो सिपाहियों में जोश आ गया।

हालांकि, रिज पर जो ऐसे अफसर थे जिन्होंने कम कष्ट झेला था, और उनमें से भी कुछ की निकल्सन के बारे में अच्छी राय नहीं थी। मेजर रीड जिसे बाड़ा हिंदू राव में अपनी गोरखा रेजिमेंट के साथ बागी सिपाहियों का सामना करना पड़ा था, ने लिखा है, “मैंने नहीं सोचा था कि मैं कोई ऐसा आदमी देखूंगा, जिससे पहली नजर में ही मुझे नफरत हो जाएगी। उसका घमंडी अंदाज और घृणा भरी मुस्कुराहट मेरे लिए बिल्कुल असहनीय थी। उसने मुझसे दुश्मनों के मुकाम के बारे में बहुत से सवाल पूछे और फिर खामोशी से आगे बढ़ गया।”

हर्वी ग्रेटहैड की भी समझ में नहीं आ रहा था कि उसका बर्ताव इस सख्त आदमी के लिए कैसा होना चाहिए, जो अब फील्ड फोर्स का असली लीडर माना जाने लगा था। जिस रात वह वहां पहुंचा था तो अफसरों के मेस में खाने के दौरान वह पूरे वक्त खामोश बैठा रहा और उसका विशालकाय पठान अर्दली उसके पीछे खड़ा रहा, जो ‘एक तैयार पिस्तौल हाथ में लिए हुए था और अपने सिवाय किसी और को अपने मालिक को खाना पेश नहीं करने दे रहा था’। ग्रेटहैड ने अगले दिन अपनी बीवी से शिकायत कीः

“जनरल निकल्सन डिनर पर था। वह काफी रोबदार आदमी है जिसका बस चले तो वह बिल्कुल नहीं बोले, जोकि एक अफसर के लिए अच्छी बात है। लेकिन अगर हम सब पिछले दो महीनों में इतने गंभीर और कम बोलने वाले होते, तो शायद हम जिंदा नहीं रह पाते। हमारे मैस के हल्के-फुल्के और हंसी-मजाक के मूड ने हमारी हिम्मत को जिंदा रखा।””

लेकिन इन सब आलोचनाओं से बेखबर जनरल निकल्सन अगले दिन सुबह-सवेरे बाहर निकल गया और घोड़े पर सवार होकर रिज का जायजा लेने लगा। उसने सब सुरक्षा स्थलों का जायजा लिया, मोर्चों को देखा और शहर पर कब्जा करने के मंसूबे का खाका अपने दिमाग में बनाने लगा। एक सिपाही ने लिखा है: “एक चौंकाने वाले हुलिए का अजनबी हमारी सब चौकियों का मुआयना करते हुए देखा गया और उसने उनकी मजबूती और इतिहास के बारे में बड़े टेढ़े सवाल किए। उसके लिबास से उसके दर्जे का कोई पता नहीं चलता था लेकिन शायद उसको खुद इसकी परवाह नहीं थी।

हमें जल्द अंदाज़ा हो गया कि वह जनरल निकल्सन था। जिसके आने का अभी तक कैंप में पता नहीं था, लेकिन यह अफवाहें उड़ रही थीं कि वह फौज का सबसे जहीन और काबिल अफसर है। उसका चेहरा बहुत रोबदार और प्रचंड था, और किसी हद तक खुरदुरा था। सूरत शक्ल अच्छी लेकिन सख्ती भरी, लंबी काली दाढ़ी और गूंजती आवाज। उसके पूरे हुलिए से बेहद मजबूती, योग्यता और दृढ़ संकल्प जाहिर होता था, और मुश्किल वक्त में लोगों पर हुकूमत करने की ताकत जिसे हर कोई महसूस कर रहा था।

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