1857 की क्रांति शुरू हो चुकी थी। विद्रोही दिल्ली में दाखिल हो चुके थे। बादशाह बहादुर शाह जफर विद्रोहियों को संरक्षण देने की हामी भर चुके थे। अब दिल्ली में जो भी चंद अंग्रेज़ बचे थे, वह सब फरार हो रहे थे। एक अधिकारी जेम्स मोर्ली रात भर धोबी की झोपड़ी में छिपा रहा था और बाहर बैठे नौकरों से अपनी बीवी-बच्चों के क़त्ल की दास्तान सुनता रहा था और यह कि उन्हें लगने लगा था कि वह भी बाहर मारा जा चुका है। एक आदमी ने कहा कि यह बहुत गलत बात हुई कि मेम साहब और बच्चों को भी मार दिया गया, और कि अब हमें रोज़गार कहां मिलेगा।” लेकिन एक दूसरे आदमी ने कहा, “क्यों, आखिर वह सब काफ़िर थे। अब दिल्ली के बादशाह सबके लिए रोज़गार मुहैया करेंगे।”

विलियम डेलरिंपल अपनी किताब आखिरी मुगल में लिखते हैं कि मोर्ली, धोबी की मदद से उसकी बीवी का लहंगा और दुपट्टा पहने मुंह छिपाये वहां से निकला। उसने कहा-“मैं सारी उम्र इस मुल्क रहा हूं,” “फिर भी मुझे यह डर था कि कोई मुझसे बात में नहीं कर ले या यह देखकर कि मैंने दुपट्टा ठीक से नहीं ओढ़ा है, मुझ पर शक नहीं करे।” लेकिन वह सलामती से धोबी की गाड़ी पर मैले कपड़ों के ढेर के पास बैठा बिना पहरे के दरवाज़े से निकलकर शहर की हद से बाहर आ गया।

हालांकि काफी देर हो गई थी लेकिन सड़कें जोशीले लोगों से भरी थीं जो दिल्ली में लूटमार करने दिल्ली की तरफ जा रहे थे या लूट का सामान समेटकर दिल्ली से बाहर निकल रहे थे। एक जगह कुछ लोगों ने उनको घेरकर धोबी पर इल्ज़ाम लगाया कि वह कपड़ों में ख़ज़ाना छुपाकर ले जा रहा है। धोबी ने शांत भाव से कहा, “तुम लोग खुद ही ढूंढ़ लो,” और जब उनको कुछ नहीं मिला तो उन्होंने उसको जाने दिया। उसके बाद अपना बचाव करने के लिए धोबी ने हर एक से कहना शुरू कर दिया कि जल्दी करो, फिरंगियों को लूट लो वर्ना बहुत देर हो जाएगी और तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा।” यह लोग सुबह-सवेरे तक चलते रहे और सूरज निकलने के वक्त एक मंदिर के पास बनी एक धर्मशाला में पनाह ली।

उधर ब्रितानिया हुकूमत के अन्य अधिकारी रॉबर्ट और हैरियट टाइटलर एक भरी हुई गाड़ी में सवार होकर करनाल की तरफ जा रहे थे। उस दिन अंग्रेजों की हालात संभालने की हर कोशिश की तरह, उनकी फ्लैगस्टाफ टावर से भागने की यह कोशिश भी बहुत गलत तरह शुरू हुई और थोड़ी ही देर में सब गड़बड़ हो गया। टाइटलर ने सोचा था कि वह औरतों और बच्चों को बागपत के गंगा घाट से होते हुए मेरठ ले जाएंगे लेकिन चलने के फौरन बाद ही वह सब अलग-अलग हो गए। कुछ बग्घियां बागपत की तरफ चलीं और कुछ ग़लती से छावनी की तरफ चली गईं। इस गड़बड़ और अव्यवस्था में टाइटलर के बचे-खुचे सिपाही गायब हो गए और टाइटलर अपनी बीवी से भी अलग हो गया और सीधा एक गूजर कबीले के लोगों की भीड़ के सामने पहुंच गया जो अपने गांव से लूटमार करने दिल्ली आ रहे थे। उन्होंने अपनी लोहे के सिरों की लाठियों से टाइटलर पर हमला करना चाहा और उसे घोड़े से गिराना चाहा, लेकिन उसने बहुत तेज़ी से घोड़ा दौड़ाकर अपनी जान बचाई।

आखिरकार टाइटलर को अपनी बीवी और बच्चे मिल गए जो गलत सड़क पर निकल गए थे। उनके साथ गाड़ी में कैप्टन गार्डनर की बीवी भी थी। जब उसने पूछा कि उसके पति कहां हैं तो टाइटलर ने कहा कि वह वापस जाकर उसे ढूंढ़ेगा । गार्डनर बाकी लोगों के साथ नहीं चला था बल्कि लंगड़ाते हुए जलती छावनी में घूम रहा था जहां टाइटलर ने उसको ढूंढ निकाला और अपने घोड़े पर बिठा लिया। दो बार और उसका गूजरों से सामना हुआ। एक बार जाते हुए और दूसरी बार गार्डनर को पीछे बिठाये हुए वापस आते हुए, और दोनों बार गूजरों ने फिर उस पर लाठी से हमला किया और उसे घोड़े से गिराने की कोशिश की। जब दूसरी बार टाइटलर को अपनी बग्घी दिखाई दी तो वह उसके अंदर कूद गया और उसको सरपट दौड़ाते हुए आगे चला। वह घोड़ों को जबर्दस्त तेज़ी से दौड़ा रहा था क्योंकि उसे अंदाजा था कि बागियों की घुड़सवार फौज जल्द ही उनका पीछा करने रवाना हो जाएगी।” हैरियट लिखती है:

“हम अभी थोड़ी दूर ही गए थे कि गार्डनर ने पुकारकर कहा “टाइटलर, पीछे देखो। हमने छावनी की तरफ मुड़कर देखा तो सामने हर घर और क्वार्टर आग के शोलों में जल रहा था। यह बहुत तकलीफदेह दृश्य था। हर वह चीज़ जो हमारे लिए कीमती और अज़ीज़ थी, हमेशा के लिए तबाह हो रही थी। ऐसी चीजें जो कभी पैसों से नहीं खरीदी जा सकती थीं। एक प्यारे मर चुके बच्चे के बालों की चंद लटें, तस्वीरें, दस्तावेजें, पेंटिंग्स, किताबें, फर्नीचर, कपड़े, बग्घियां, घोड़े, गाड़ियां सब जल रही थीं। अगर कीमत के ऐतबार से देखा जाए, तो मेरे पति की यूनिफॉर्म को मिलाकर कम से कम बीस हज़ार पाउंड का सामान आग की नज़र हो गया था जो उस ज़माने में एक गरीब फौजी के लिए एक खजाना था। लेकिन उस समय हमारे दिमाग में बस अपनी जान बचाने के लिए भागने का ख्याल था जिसने हमें यह भुलाने पर मजबूर कर दिया कि हमारे लिए यह नुकसान आम हालात में कितना असहनीय होता।

भागते हुए टाइटलर परिवार के विपरीत वैगनट्राइबर के खानदान ने दिल्ली के बाहरी इलाकों में पनाह लेने का इरादा किया और सोचा कि एलिजाबेथ के पिता जेम्स स्किनर के दोस्तों से मदद मांगें।

पिछली रात नवाब जियाउद्दीन खां से मुलाकात के बाद उनको यकीन था कि वह उनकी दोस्ती पर भरोसा कर सकते हैं। इसलिए फ्लैगस्टाफ टावर से वह सीधे नवाब साहब के फार्म वाले घर की ओर चल दिए जो करनाल के रास्ते में था और जिसे कई बार नवाब साहब ने उनको वीकएंड पर देने की पेशकश की थी।

जब यह लोग वहां पहुंचे तो माली ने बड़ी गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। एलिजाबेथ की बच्ची के लिए बकरी का ताज़ा दूध दुहा गया और सबके लिए चपाती और सब्ज़ी का खाना तैयार किया गया। उनकी गाड़ी और घोड़ों को छिपा दिया गया और पहियों के निशान ज़मीन से मिटाकर घोड़ों का साजो-सामान घर के अंदर रख दिया गया। जॉर्ज अपनी सौतेली बेटी जूलिया और छोटी बच्ची फ्लोरेंस के साथ अपनी बंदूकें लेकर छत पर चला गया। एलिजाबेथ नीचे एक चारपाई पर चादर से मुंह छिपाये चौकीदार के पास बैठी रही और उस बदमिज़ाज चौकीदार को ख़बरदार किया कि अगर उसने जरा भी गद्दारी की, तो उसके पति की बंदूक का रुख उसकी ओर है, और वह फौरन उसे गोली मार देंगे।”

जैसे-जैसे चांद ऊंचा होता गया, जॉर्ज छत पर से पूरी दिल्ली में आग के शोले देखता रहा । छावनी में भी हर तरफ आग लगी थी। बार-बार बंदूकें चलने और पिस्तौल की गोलियों की आवाजें सुनाई दे रही थीं। जैसे ही अंग्रेज़ अफसरों की आखरी गाड़ी के पहियों की आवाज़ ख़त्म हुई, घुड़सवार सिपाही हर दरवाज़े पर जाकर अंग्रेज़ों को ढूंढ़ने लगे। जूलिया का कहना थाः

“मेरी मां ने चौकीदार से कह दिया था कि अगर कोई भी अंदर आना चाहे तो ऐतराज मत करना, वर्ना उन्हें शक हो जाएगा। उन्होंने चौकीदार को अपने पास से उठने या दरवाज़े के पास जाने नहीं दिया। दो बार बाग़ी दरवाज़े तक आए और चौकीदार को पुकारकर पूछा, “क्या तुमने किसी फिरंगी को पनाह दी है ?” दूसरी बार तो एक सिपाही अंदर बिल्कुल उस जगह के क़रीब आ गया जहां वह बैठी थीं। उसने अपना घोड़ा रोका और कहा मुझे सारे घर की तलाशी लेना है। चौकीदार ने मेरी मां के निर्देश को मानते हुए कहा कि कुछ अंग्रेज यहां से गुज़रे थे मगर ठहरे नहीं, सीधे सड़क पर निकल गए लेकिन फिर भी अगर तुम घर की तलाशी लेना चाहते हो, तो शौक से लो।” इस जवाब से सिपाही को तसल्ली हो गई और वह उन अंग्रेजों को ढूंढ़ने चला गया जिनको चौकीदार ने कहा था कि सड़क पर निकल गए।

लेकिन आधी रात को ख़बरें आने लगीं कि किसी ने बैगनट्राइवर खानदान की मुखबिरी कर दी है और बीस सवारों का एक गिरोह इस तरफ आ रहा है। अब उनके पास सिवाय भागने के और कोई चारा नहीं था। एलिज़ाबेथ ने घोड़ों पर जीन चढ़ाई और उनको घर के सामने लाई। बच्चों को गाड़ी में बिठाया गया और जॉर्ज ऊपर चढ़ गया। जॉर्ज ने बाद में लिखा है:

“खुली सड़क पर पहुंचने से पहले मेरी बीवी ने कहा कि अपने हथियार तैयार रखना। इसलिए मैंने एक भरी हुई दोनाली बंदूक और अपना पिस्तौल भरकर अपने पास रखा और दो राइफलें अंदर गाड़ी में छोड़ दीं और अपनी सौतेली बेटी जूलिया से जो बच्चे के साथ अंदर बैठी थी, कहा कि जैसे ही मैं गोली चलाऊं, यह मुझे पकड़ा देना। फिर हम अपने आपको ख़ुदा के हवाले किया और ग्रैंड ट्रंक रोड पर दाखिल हो गए।

दूसरी तरफ टाइटलर अभी दिल्ली से 15 मील दूर ही पहुंचे होंगे कि उनके घोड़े थकान की वजह से आहिस्ता चलने लगे। वह एक सरकारी डाकघर के घोड़ा बदलने के अस्तबल पर रुके लेकिन वहां के लोगों ने उन्हें घोड़ा देने से इंकार कर दिया। आखिर टाइटलर को एक अफसर को पिस्तौल दिखाकर एक घोड़ा ज़बर्दस्ती लेना पड़ा। वहां से वह कुछ मील ही आगे बढ़े होंगे कि उनकी ज़रूरत से ज़्यादा बोझ से भरी गाड़ी के सारे पहिये अचानक एक साथ टूट गए। और गाड़ी बिल्कुल नाकारा हो गई। अब सिवाय पैदल चलने के और कोई चारा नहीं था। दोनों मर्दों ने एक-एक बच्चे को उठा लिया और उनकी गर्भवती बीवियां और एक नौकरानी मैरी उनके पीछे-पीछे घिसटती हुई रवाना हो गईं। उन्हें लगातार डर था कि बस किसी भी लम्हे उनका पीछा कर रहे के घोड़ों की टापों की आवाजें सुनाई दे जाएगी। घुड़सवार सिपाहियों लेकिन कुछ मील के बाद उनको एक गाड़ी के आने की आवाज़ सुनाई दी। वह एक अंग्रेज़ लड़की की थी जो थोड़ी देर पहले उन्हें दिल्ली की तरफ जाते हुए मिली थी और जिसने उनकी ख़तरे से आगाह करने की कोशिशों पर बिल्कुल कान नहीं धरा था और अब उसको वापस आना पड़ा था। अब उसने रास्ता रोकने वाले अंग्रेज़ों को अपनी गाड़ी में बैठाने से साफ इंकार कर दिया।

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