दूधिया भैरव और बाल भैरव मंदिर के इतिहास से जुड़ी कहानी

यह स्थान जिसे पांडवों के समय का बताते हैं, दिल्ली शहर से 2 मील मथुरा रोड पर बाएं हाथ पुराने किले की उत्तरी चारदीवारी के बराबर जो सड़क अंदर को गई है, उसके बाएं हाथ पुराने किले की फसील से बिल्कुल सटा हुआ है। मंदिर में दो सैदरियां हैं- एक में भैरव जी, भीमसेन और हनुमान की मूर्तियां हैं और दूसरी में यहां के पुजारी नाथों की तीन समाधियां हैं। दोनों सैदरियों के सामने खुला सहन है। मंदिर में सदर दरवाजे से प्रवेश करके सामने हो चौक में शिव मंदिर है और बाएं हाथ भैरव मंदिर है। दाएं हाथ भी एक कोने में शिव मंदिर है। उसके एक भाग में पुजारी रहता है। हर इतवार को बहुत से दर्शनार्थी इस मंदिर की यात्रा को आते हैं। मंदिर से सहन में चौके बिछे हुए हैं और एक कुआं भी है। मंदिर की एक तरफ की दीवार तो किले की ही दीवार है बाकी तीन तरफ दीवार खिंची हुई है। मंदिर के बाहर एक प्याऊ है। यहां पुजारी नाथ संप्रदाय का रहता है। कभी-कभी मंदिर में बकरा भी काटा जाता है। दिल्ली में 52 भैरव माने जाते हैं। इनमें जो सबसे प्राचीन गिने जाते हैं, वे हैं- किलकारी भैरव और इसी मंदिर के पास एक और भैरव हैं ‘दूधिया भैरव’।

दूधिया भैरव

दूधिया भैरव का मंदिर इसे भी पांडव काल का माना जाता है। 8 कहते हैं कि यह किलकारी भैरव से कोई एक फलांग आगे जाकर है। किले की दीवार से सटा हुआ दूधिया भैरव का मंदिर है। भैरव की मूर्ति सिंदूर से ढकी है। एक छोटी-सी बगीची और कुआं भी यहां है।

बाल भैरव का मंदिर

किलकारी भैरव के समय के ही एक दूसरे भैरव – बाल भैरव-भी माने जाते हैं, जिनका मंदिर तीसहजारी’ जीतगढ़ की पहाड़ी पर है। मंदिर का अहाता बहुत बड़ा है। उसके दो द्वार हैं। अहाते में बारहदरी यात्रियों के लिए बनी हुई है। मंदिर एक दालान में बना हुआ है। उसके चारों ओर परिक्रमा है। मूर्ति की पिंडी है, जिसका चेहरा जमीन में बना हुआ है। चारों ओर छह इंच ऊंची संगमरमर की रोक है। मंदिर में और भी कई मूर्तियां हैं। यहां के पुजारी भी नाथ संप्रदाय के हैं। इस मंदिर की भी बहुत मान्यता है। मूर्ति पांडव काल की ही मानी जाती है।

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