हाइलाइट्स
- चौधरी ब्रम्हप्रकाश को कहा जाा है दिल्ली में सहकारिता का सूत्रधार
- केन्या में हुआ था जन्म, 16 साल की उम्र में मां-बाप के साथ आए दिल्ली
- ब्रम्हप्रकाश को शेेर ए दिल्ली, मुगले आजम सरीखे नामों से भी पुकारा जाता है
नकी बोली, देहाती पहनावा और व्यवहार कुछ ऐसा था कि लोग खींचे चले आते थे। ठेठ बोली में मिठास ऐसी की दिल्ली देहात के वो अगुआ बन गए थे। जी हां हम बात कर रहे हैं दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रम्ह प्रकाश यादव की। सत्याग्रह आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले ब्रम्ह प्रकाश महज 34 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने थे। दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव 1952 में हुए थे। चौधरी ब्रह्मप्रकाश 1952 से 1955 तक मुख्यमंत्री रहे फिर जीएन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। अपने कार्यकाल में ब्रम्हप्रकाश ने जहां दिल्ली में विकास कार्यो की नींव रखी वहीं उनकी दूरदर्शिता सहकारिता कमेटियों के निर्माण के रूप में सामने आया। केन्या से उनके लगाव का नतीजा था कि वो दिल्ली शहर का विकास नैरोबी की तर्ज पर करना चाहते थे। राजनीतिक गलियारों में उनकी धमक थी। उनके कार्यो का ही नतीजा था कि सन 2001 में भारत सरकार ने इनके उपर डाक टिकट निकाला।
शेर-ए-दिल्ली
इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि ब्रम्हप्रकाश पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे जिनकी लोकप्रियता दिल्ली देहात के अलावा पुरानी दिल्ली व नई दिल्ली में भी बराबर थी। उनका ठेठ बोलचाल, व्यवहार उन्हें दिल्लीवासियों के दिलों से जोड़ देता था। वो 1952 से 55 तक मुख्यमंत्री रहे। 1956 में दिल्ली विधानसभा को भंग कर इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। दिल्ली विधानसभा की बात होते ही लोग 1993 में गठित विधानसभा को पहली विधानसभा मानते हैं। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन के अनुसार दिल्ली को 70 सदस्यों की एक विधानसभा दे दी गई जिसमें 12 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित थीं। ब्रम्हप्रकाश को शेर ए दिल्ली, मुगले आजम जैसे नामों से भी पुकारा जाता था।
केन्या जन्मभूमि, दिल्ली कर्मभूमि
बकौल आरवी स्मिथ, चौधरी ब्रम्हप्रकाश का जन्म केन्या में हुआ था। 16 साल की उम्र में मां-बाप संग दिल्ली आए थे। उनकी जिंदगी में केन्या के परिवेश का काफी प्रभाव रहा। वहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी। उनके संस्कार ही उन्हें जाति, धर्म के बंधनों से उपर रखते थे। यहां दिल्ली में काफी समय तक उनके नाम का गलत उच्चारण होता था। खासकर, अंग्रेजी में स्पेलिंग संबंधी गलतियां होती थी। उच्चारण भी प्रकाश की जगह परकाश करते थे।
दिल्ली देहात के अगुआ
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आंदोलनों में दिल्ली देहात ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इस कड़ी में आबादी पर नजर डाले तो पता चलता है कि दिल्ली में रहने वाले लोगों में 1901 में 48.6 प्रतिशत, 1911 में 43.7 प्रतिशत, 1921 में 37.7 प्रतिशत और 1941 में 29.7 प्रतिशत लोग गांव के निवासी थे। महरौली और नरेला के खादी आश्रम, बवाना की चैपाल, बदरपुर का गांधी खैराती अस्पताल, ये कुछ ऐसे केंद्र थे जिनसे स्वतंत्रता संग्राम का संदेश फैलता रहा। सी के नायर, डॉक्टर सुखदेव, किशनलाल वैद्य और चौधरी ब्रहमप्रकाश, जो कि आजाद भारत में दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री बने, ने देहात में स्वतंत्रता संग्राम में विस्मरणीय योगदान दिया।
नैरोबी की तर्ज पर दिल्ली का विकास
ब्रम्हप्रकाश जिम कॉर्बेट से बहुत प्रभावित थे। जिम कॉर्बेट के पूर्वज आयरलैंड के हरित चारागाह छोड़ हिंदुस्तान आकर बस गए थे। बाद में जिम कॉर्बेट केन्या जाकर बस गए। उनकी मृत्यु भी वहीं हुई। बचपन में ही एक बार ब्रम्हप्रकाश, कॉर्बेट की कब्र पर भी गए थे। वो उनके कार्यो से काफी प्रभावित थे। इसी तरह धौलपुर की एक ब्रिटिश फैमिली ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया था। इनका नाम था जार्ज एडमसन। ये भी बाद में केन्या जाकर बस गए थे। इन्होंने वहां लायंस पार्क बनवाया था। इन्हें लायंस प्रोटेक्टर के रूप में भी जाना जाता है। ब्रम्हप्रकाश दिल्ली जू को लायंस पार्क की तर्ज पर विकसित
करना चाहते थे।
जब अंग्रेजों का किया बखान
आरवी स्मिथ कहते हैं कि आजादी के बाद के दिनों में ब्रम्हप्रकाश एक सभा में शामिल हुए थे। लोग, अंग्रेजों की बहुत बुराई कर रहे थे। इस पर ब्रम्हप्रकाश ने कहा कि, यह सच है कि अंग्रेजों की दासता से मुक्ति जरूरी थी। हमें गुलामी में नहीं रहना है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अंग्रेजों ने भारत में रेल समेत कई विकास की नींव डाली। प्रत्येक जिले में सिर्फ तीन पोस्ट पर अंग्रेज नियुक्त होते थे। पहला डिस्टि्रक मजिस्ट्रेट, दूसरा सुपरिटेंडेंट आफ पुलिस और तीसरा कोतवाल। जबकि इनके मातहत सारे भारतीय होते थे। लेकिन तीन अधिकारी पूरा जिला संभालते थे। उनके इस वक्तव्य की सभा में मौजूद कई लोगों ने विरोध जताया था।
सहकारिता विकास
प्रारंभिक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सहकारी क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप स्थापित की। चालीस वर्षों तक सहकारिता का उन्होंने मार्गदर्शन किया। वर्तमान में सहकारी दर्शन और ढांचे का विभिन्न स्तरों पर जो विकास हुआ, उसका श्रेय काफी हद तक ब्रह्मप्रकाश को जाता है। सही मायने में वे सहकारिता के अंतरराष्ट्रीय नेता थे। उन्होंने दिल्ली किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति, दिल्ली केंद्रीय सहकारी उपभोक्ता होल सेल स्टोर, दिल्ली राज्य सहकारी इंस्टीट्यूट (वर्तमान दिल्ली राज्य सहकारी संघ) का गठन किया। दिल्ली में सहकारिता के विकास के वह मुख्य सूत्रधार और प्रेरणास्त्रोत थे।
किस्सा बंगले का
बतौर मुख्यमंत्री ब्रम्हप्रकाश 33 शामनाथ मार्ग स्थित सरकारी बंगले में रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि इस बंगले में कोई ज्यादा नहीं टिका। इसके पीछे बंगले के वास्तु दोष को जिम्मेदार माना जाता है। ब्रम्हप्रकाश को समयपूर्व गद्दी छोड़नी पड़ी। वहीं मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना भी यहीं रहे थे। वो भी हवाला कांड में आरोपी बने और बंगला छोड़ दिया।
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ब्रम्हप्रकाश जवाहर लाल नेहरू के खास भी थे और बनती भी नहीं थी। बाद में सरदार गुरूमुख निहाल सिंह मुख्यमंत्री बने। इसके बाद रिआर्गनाइजेशन कमीशन का गठन हुआ। तय हुआ कि दिल्ली में असेंबली की जरूरत नहीं हैं, एक हाईपावर कार्पोरेशन बनाई जाए। ब्रम्हप्रकाश दिल्ली देहात के काफी चर्चित नेता था।
विजय कुमार मलहोत्रा, पूर्व सांसद
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छोटी उम्र में गांधी जी के साथ जुड़ गए थे। भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। 33 साल की उम्र में मुख्यमंत्री बने। उस समय दिल्ली पूर्ण राज्य थी। दिल्ली में कांग्रेस को खड़ा करने में चौधरी साहब का बहुत बड़ा योगदान थे। पंजाबी बाग वेस्ट की सारी जमीनें चौधरी जी के नाम पर थी। आजादी के बाद पुर्नवास के दौरान चौधरी साहब ने अपनी जमीन पर लोगों को बसाया।
अजय चौधरी, बेटे