भारत में खाद्य अपव्यय: समाधान, प्रभाव और वैश्विक उदाहरण

वर्ल्ड इंटलेक्चुअल फाउंडेशन ने अपनी रिसर्च में खाद्य सुरक्षा और अपव्यय का किया अध्ययन

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

खाद्य सुरक्षा का अर्थ है कि हर व्यक्ति के पास पौष्टिक और सुरक्षित भोजन की स्थायी उपलब्धता हो। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, खाद्य सुरक्षा तब होती है जब सभी लोगों के पास हर समय शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पर्याप्त पोषणयुक्त भोजन तक पहुंच होती है। इसके विपरीत, खाद्य असुरक्षा का मतलब भोजन की अनुपलब्धता या सीमित पहुंच है, जो भूख, कुपोषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जन्म देता है।

2023 की द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड” रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 74% जनसंख्या स्वस्थ आहार नहीं ले पाती और 39% लोग आवश्यक पोषक तत्वों से भी वंचित रहते हैं। यह आंकड़ा भारत में खाद्य अपव्यय की गंभीरता को और उजागर करता है। खाद्य अपव्यय आज के समय में भूख और कुपोषण का सबसे बड़ा कारण बन गया है।

भारत में खाद्य अपव्यय: चिंताजनक स्थिति

भारत में खाद्य उत्पादन भले ही विशाल मात्रा में हो, लेकिन यह वैश्विक खाद्य अपव्यय में दूसरे स्थान पर आता है। संयुक्त राष्ट्र के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन” के अनुसार, भारत में हर साल 74 मिलियन टन खाद्य पदार्थ बर्बाद होते हैं, जो कुल उत्पादन का लगभग 40% है।

खाद्य अपव्यय की यह स्थिति तब और विडंबनापूर्ण हो जाती है जब भारत वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index) में 125 देशों में से 111वें स्थान पर आता है। यह स्पष्ट करता है कि इस मुद्दे पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।

खाद्य अपव्यय के मुख्य चरण

खाद्य अपव्यय केवल घरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कृषि से लेकर उपभोक्ता तक हर चरण में होता है।

  1. कृषि उत्पादन स्तर:
    • खराब फसल कटाई तकनीकें।
    • अपर्याप्त भंडारण सुविधाएं।
    • बाजार तक पहुंच की कमी।
    • आउटडेटेड तकनीकी और कृषि पद्धतियाँ।
  2. प्रसंस्करण स्तर:
    • खराब गुणवत्ता नियंत्रण।
    • आधुनिक तकनीक की कमी।
    • अपर्याप्त निवेश और प्रशिक्षण।
  3. वितरण और परिवहन:
    • खराब कोल्ड स्टोरेज और खराब परिवहन व्यवस्था।
    • रास्ते में भोजन का खराब होना।
  4. खपत स्तर:
    • अधिक भोजन पकाना या खरीदना।
    • आयोजनों में जरूरत से ज्यादा भोजन का ऑर्डर करना।
    • सौंदर्यपूर्ण भोजन की प्राथमिकता।

भारत में कुल अपव्यय का 60% हिस्सा घरेलू स्तर पर होता है, जहाँ हम खाने की बर्बादी के प्रति लापरवाह हैं। इसके अलावा, शादी-ब्याह जैसे आयोजनों में फिजूलखर्ची और अधिक भोजन बनाना इस समस्या को और बढ़ा देता है।

खाद्य अपव्यय के कारण और उनके परिणाम

1. आर्थिक प्रभाव:

  • भारत में खाद्य अपव्यय के कारण सालाना लगभग ₹92,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
  • किसान अपनी उपज के खराब होने से आर्थिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।
  • उपभोक्ताओं को खाद्य महंगाई का सामना करना पड़ता है।
  • कंपनियों को मुनाफे में कमी झेलनी पड़ती है।

2. पर्यावरणीय प्रभाव:

  • खाद्य अपव्यय से जैविक कचरे के सड़ने के कारण मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है, जो जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान देता है।
  • खाद्य उत्पादन में लगने वाले संसाधन जैसे पानी, ऊर्जा और भूमि भी बर्बाद होते हैं।
  • यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का प्रमुख कारण बनता है।

3. सामाजिक प्रभाव:

  • भारत में बड़ी संख्या में लोग कुपोषण और भूख से पीड़ित हैं।
  • भोजन के अपव्यय के कारण समाज में असमानता बढ़ती है।

खाद्य अपव्यय रोकने में संबंधित पक्षों की भूमिका

  1. सरकार का योगदान:
    • कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और परिवहन नेटवर्क में निवेश बढ़ाना।
    • खाद्य अपव्यय रोकने के लिए सख्त कानून और नीतियाँ बनाना।
    • खाद्य सुरक्षा और पोषण के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना।
  2. कृषकों की भूमिका:
    • आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाना।
    • भंडारण सुविधाओं का सही इस्तेमाल करना।
  3. उद्योगों और कंपनियों की भूमिका:
    • गुणवत्ता नियंत्रण में सुधार करना।
    • खाद्य पदार्थों को सही तरीके से संसाधित और वितरित करना।
  4. उपभोक्ताओं की भूमिका:
    • जरूरत के अनुसार भोजन खरीदना और पकाना।
    • बचे हुए भोजन को दान में देना।
    • जागरूक उपभोक्ता बनकर भोजन की बर्बादी रोकना।

स्टार्टअप्स, सोशल मीडिया और वैश्विक प्रयासों का प्रभाव

भारत में कई स्टार्टअप और तकनीकी प्लेटफार्म इस समस्या को हल करने में मदद कर रहे हैं:

  • वेस्ट लिंक और ग्रीन पॉड लैब्स जैसे स्टार्टअप फसलों के अपशिष्ट से पशु आहार बनाते हैं।
  • फूड बैंकिंग नेटवर्क जैसे संगठनों के माध्यम से अतिरिक्त भोजन को जरूरतमंदों तक पहुँचाया जाता है।
  • #LoveFoodHateWaste जैसे वैश्विक अभियान जागरूकता फैलाने में सहायक हैं।
  • ओलियो जैसे प्लेटफार्म के माध्यम से लोग बचे हुए भोजन को साझा कर सकते हैं।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण: भारत के लिए सबक

  1. दक्षिण कोरिया:
    • यहाँ भोजन को लैंडफिल में डालने पर प्रतिबंध है और फूड रीसाइक्लिंग को अनिवार्य किया गया है।
    • जैविक कचरे को उर्वरक और पशु आहार में बदला जाता है।
  2. फ्रांस:
    • फ्रांस में सुपरमार्केट को बचा हुआ भोजन दान करने के लिए कानून बनाया गया है।
  3. डेनमार्क:
    • Too Good To Go ऐप के माध्यम से रेस्टोरेंट बचे हुए भोजन को सस्ते दाम पर बेचते हैं।

इन प्रयासों से यह साबित होता है कि सही तकनीकी, नीतियाँ और जागरूकता के माध्यम से खाद्य अपव्यय को रोकना संभव है।

समाधान: टिकाऊ भविष्य की ओर

खाद्य अपव्यय को रोकने के लिए समग्र और रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है:

  1. राष्ट्रीय नीति:
    • फूड लॉस एंड वेस्ट” पर राष्ट्रीय नीति बनाना।
    • निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन और सख्त नियमों के माध्यम से जोड़ना।
  2. प्रशिक्षण और जागरूकता:
    • किसानों और उद्योगों के लिए आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण।
    • उपभोक्ताओं में जागरूकता कार्यक्रम।
  3. सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP):
    • सरकार और निजी क्षेत्र के सहयोग से भंडारण और वितरण प्रणाली में सुधार।
  4. डिजिटल तकनीक का उपयोग:
    • खाद्य प्रबंधन में AI और IoT जैसी तकनीकों का इस्तेमाल।

खाद्य अपव्यय को रोकना केवल एक नैतिक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। भारत जैसे विशाल कृषि अर्थव्यवस्था वाले देश के लिए, जीरो हंगर” और जिम्मेदार उपभोग” के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिए खाद्य अपव्यय पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। यदि सरकार, उद्योग और समाज एक साथ मिलकर प्रयास करें, तो हम निश्चित रूप से इस गंभीर समस्या का समाधान निकाल सकते हैं और एक समावेशी, टिकाऊ भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।

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