दिल्ली के उत्तर-पश्चिम में कोई चार मील पर सब्जीमंडी से आगे महलदार खां का बाग था, जिसमें किसी जमाने में ईद के बाद टर का मेला लगा करता था। महलदार खां मोहम्मद शाह के जमाने में सम्मानित ओहदेदार था। उसने इस बाग को 1728-29 ई. में बनवाया था, जो करनाल सड़क के बिल्कुल किनारे था। बाग बहुत बड़ा कई एकड़ जमीन में फैला हुआ था।

सदर दरवाजा सड़क के किनारे था, जिसकी दो महराबें 14 फुट ऊंची, 9 फुट चौड़ी और 35 फुट गहरी थीं। इसके छत्ते में दो-दो कमरे इधर-उधर बने हुए थे। दरवाजा पूरा लाल पत्थर का बना हुआ था। बारहदरी के चारों कोनों पर चार कमरे थे और उनके बीच में तीन-तीन दरों के दालान थे, जिनके बीच में एक चौकोर कमरा था। बारहदरी का बेहतरीन हिस्सा लाल पत्थर का बना हुआ था।

चबूतरे के चारों तरफ सीढ़ियां थीं। छत्ते की मुंडेर के अलावा चारों तरफ चौड़ा छज्जा था। बारहदरी के पास ही लाल पत्थर का एक गहरा हौज 90 फुट मुरब्बा था, इसमें दिल्ली की नहर से पानी आया करता था। यह बाग महलदार खां के बाजार की पूर्वी हद पर था। बाग और बाजार के दरमियान एक बहुत चौड़ा अहाता था। इसकी उत्तरी और दक्षिणी दीवारों में तीन दरवाजे थे, जो तिरपोलिया के नाम से मशहूर थे।

उत्तरी दरवाजा अब तक करनाल की सड़क पर मौजूद है, जिसको देखकर लोग समझते हैं कि शहर शुरू हो गया। इसके जोड़ का दूसरा दरवाजा सड़क से हटा हुआ बाएं हाथ कुछ फासले पर है। पहले और दूसरे दरवाजे के बीच 250 गज का फासला है। इन दरवाजों पर संगमरमर की तख्ती पर संगमूसा की पच्चीकारी से लिखा हुआ एक कुतबा है। दूसरा दरवाजा भी कुछ थोड़े फर्क से इसी प्रकार का बना हुआ है। फर्क सिर्फ इतना है कि दरवाजों में जो कमरे हैं, उनमें से एक-दूसरे में जाने-आने के रास्ते भिन्न-भिन्न प्रकार से बनाए गए थे। इस दूसरे दरवाजे की बगली में दो छोटी-छोटी मीनार भी थीं, जो पहले दरवाजे में नहीं हैं। अब इस बाग की जगह इमारतें बन गई हैं।

मस्जिद पानीपतियां

यह छोटे कश्मीरी दरवाजा बाजार की सड़क के दाएं हाथ हैं, जो नसीरगंज की सड़क कहलाती है। यह मस्जिद पहले एक अहाते के अंदर थी। इस मस्जिद को लुत्फुल्लाह खां सादिक ने 1725-26 ई. में बनवाया था। अब तो यह पक्की बन गई है। इस मस्जिद में मदरसा अमोनियां नाम का मुस्लिम धार्मिक स्कूल चलता है।

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