प्राचीन दिल्ली के आस-पास भी देहात थे और आज भी हैं। जहां शहर की फसील से बाहर कदम रखा, देहात का सिलसिला शुरू हो जाता था। दिल्ली में भवन निर्माण का क्रम, जिसका संबंध आधुनिक इतिहास से है, अधिकतर सुल्तानों के काल और बाद में मुगल वंश के शासन से शुरू हुआ। उससे पहले की दिल्ली बनती और उजड़ती रही और एक मध्यवर्ती नागरिक बस्ती और कुछ ऐतिहासिक इमारतों के सिवा गांवों पर निर्भर और उन्हीं से घिरी हुई थी। हालांकि दिल्ली पर हमेशा आज के उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान का प्रभाव रहा है, फिर भी उसकी अपनी विशिष्ट सभ्यता, रहन-सहन और संस्कृति रही है। दिल्ली के लोकगीत एक ऐसी ही सांस्कृतिक धरोहर हैं और हर अवसर पर, तीज-त्योहार और उत्सवों में दिल्लीवालों की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। यह एक ऐसा दर्पण है, जिसमें हम जन-जीवन और जनता की भावनाओं और अनुभूतियों की एक झलक देख सकते हैं। आज की प्रगतिशील दिल्ली में भी इन लोकगीतों की लोकप्रियता में कोई अंतर नहीं आया।
लोकगीतों का संबंध हमारे धार्मिक विश्वासों से भी रहा है। इस दृष्टि से भी लोकगीतों की जड़ें दो-तीन हजार साल पहले के जीवन से जुड़ी हुई हैं। वेदान्त और वैष्णव भाव के युगों में गाए गीत भी लोकगीतों के ही अंतर्गत आते हैं। इसी प्रकार राधा-कृष्ण की लीला के गिर्द बहुत से लोकगीतों का जन्म उस युग में भी हुआ और बाद में भी गणेश पूजा और अन्य देवताओं की पूजा के गीत हमारे लोकगीत ही हैं। गणेश पूजा से हिन्दुओं में हर शुभ काम का प्रारंभ होता है। गणेश जी का यह गीत आज भी गाया जाता है-
हे गणेश गिरिजा
सुमन मंगल मोल सुजान तुम्हीं से है प्रार्थना
सुनो हृदय घर ध्यान पहले मनाऊँ मैं तुम्हें
कर बार-बार प्रणाम
कृपा करो तुम अपनी
जग में हो सरनाम
मन में यह विश्वास है
तुम बिन होत न काम
कृष्ण और राधा की लीला के विभिन्न पहलू हिन्दुओं के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाजों को प्रभावित किए हुए हैं। उन्हीं के संबंध से अनेक गीतों ने जन्म लिया है। हमारे शास्त्रीय संगीत में भी राधा और कृष्ण के गीत कई लोकप्रिय राग और रागिनियों के बोल हैं। एक गीत सुनिए :
पनघट पे हाय पिया कीन्ही चतुराई
बहियां पकड़ के मोरी चूरियां करकाई
गगरी डोरी मोरी छीन लई माें से
पनिया भरत मोरी बीरा रिझाई
ढीठ सैयां मोहे पानी भरन न देत
पनिया भरत मोरी गगरी ढरकाई
एक और गीत सुनिए जिसमें कितना सुंदर चित्रण किया गया है-
कैसे ब्याहू राधे
कन्हैया तेरो काला
काला काला मत कर ग्वालन
यह जग का उजियारा
नागनाथ रेती में डारो
मारत फुंकार बदन भयो काला
तेरे कन्हैया ऐसो काला
जैसे रैन अंधेरी
मेरी राधा ऐसी गोरी
ज्यूं तारों बिच चंद्र उजाला
कैसे ब्याहूं राधे
कन्हैया तेरो काला