नोट: यह लेख इंडोलाॅजी फाउंडेशन के अध्यक्ष ललित मिश्र द्वारा लिखित है

जब देवी पूजा की बात आती है तो हमारे मन में पश्चिम बंगाल की देवी पूजा या फ़िर पूर्व में गुजरात के गरबा नृत्य के चित्र उभरते हैं, लेकिन देवी भक्ति के इन लोकप्रिय स्थलों से अलग भारत के प्राचीनतम देवी पूजास्थल मध्यभारत के विंध्य क्षेत्र से प्राप्त हुये हैं।भारत की राजधानी दिल्ली से करीब 900 किमी दूर म०प० के विंध्य क्षेत्र के सीधी जिले में कैमूर की पहाडियों के घने जंगलों के बीच बघोर (Baghor) नामक गांव में स्थित है जहां से भारत का अब तक का सबसे प्राचीन पूजा स्थल प्राप्त हुआ है, जो कि इंडस वैली कल्चर से भी ज्यादा पुराना है।

इस पूजा स्थल को भारत एवं अमेरिका की आर्कियोलॉजिकल टीम ने अस्सी के दशक में, इलाहाबाद विवि के प्रो GR Sharma एवं बर्केले विवि अमेरिका के प्रो JD Clark के संयुक्त नेतृत्व में खोजा था। सन 1982 में एक दिन शाम के वक्त,  जब आर्कियोलॉजिकल टीम अपना काम खत्म करने के पहले सामान इकट्ठा कर रही थी, तभी अनायास, चूने एवं बलुये पत्थर से निर्मित खुले आकाश के नीचे 85 Cm व्यास का एक गोलाकार चबूतरा जो कि नीम के पेडों से घिरा हुआ था, उनकी नजर में आ गया। चबूतरा मलवे से दबा हुआ था, जब इस चबूतरे को साफ़ किया गया, तो सामने भारत का सबसे प्राचीनतम देवी पूजा स्थल बिलकुल आंखो के सामने प्रकट हो चुका था, किंतु सफ़ाई के दौरान चबूतरा छतिग्रस्त हो गया।

जैसा आज भी तांत्रिक पूजा पद्धति में यंत्र स्वरूप त्रिभुजाकार आकृति की पूजा देवी के प्रतीक के रूप में की जाती है, ठीक उसी तरह इस चबूतरे पर यंत्र जैसी आकृति एक एक प्रस्तर खंड में,एक के भीतर एक अर्थात दो त्रिभुजों की मदद से ऊर्ध्वाकार योनि स्वरूप देवी का प्रतीक निर्मित किया गया।

  जब इस देवी स्थल को खोजा गया था तब सारी दुनिया में हलचल मच गई थी क्योंकि इतने पुराने कालखंड, में भारत में किसी तरह के व्यवस्थित पूजा स्थल की, तब कल्पना भी नहीं की जा रही थी, यही मानकर चला जा रहा था कि तब भारत में मनुष्य आदिम अवस्था में रहा करता था, जिसके भीतर इस तरह का धार्मिक विश्वास विकसित नहीं हुआ था कि वे पूजास्थल बना लें एवं उस पर मातृशक्ति का एक प्रतीक स्थापित कर पूजा अर्चना भी करने लगें।

बघोर एवं बघोर के आस-पास के इलाके में ऐसे अनेक देवी स्थल पाये गये हैं, जिससे इस क्षेत्र में देवी पूजा की व्यापक लोकप्रियता का पता चलता है, सीधी जिले के सिंहावल तहसील में ही एक छोटी सी बरसाती नदी पायी जाता है जिसका पानी वहां के आदिवासी समुदाय के लोग नही पीते हैं क्योंकि उनकी मान्यता है कि देवी द्वारा महिषासुर का वध किये जाने के बाद उस का रक्त इसी नदी से बहा था, अतः इस नदी का जल अपवित्र हो चुका है

बघोर में देवी पूजा के ऐसे दो चबूतरे खोजे गये थे, इस चबूतरे के समीप ही स्थित दूसरे चबूतरे में प्राप्त चारकोल के टुक्डे की कार्बन डेट कराने पर आई हुई डेट (8830+/-220 वर्ष पहले) बताती है कि इन चबूतरों का निर्माण आज से लगभग नौ हजार वर्ष पूर्व किया गया था।

वस्तुतः सोन एवं गंगानदी की पूरी घाटी देवी शक्ति का उपासना क्षेत्र रहा है, यहां तीन शक्ति पीठ स्थित हैं–

1) विंध्यांचल शक्तिपीठ जिसे सब जानते हैं।

2) घोघरा का शक्तिपीठ जो सीधी जिले में ही स्थित है, घोघरा बीरबल का पैतृक गांव भी है।

3) अमरकंटक का शक्तिपीठ।

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