जलवायु संकट से निपटने के लिए यूपी में योजनाओं की सफलता अनिवार्य

ब्राजील, चिली और पाकिस्तान की आबादी के बराबर है यूपी की जनसंख्या

जलवायु परिवर्तन का संकट दिनोंदिन सुरसा के मुख की तरह विकराल होता जा रहा है। दुनिया के अधिकतर देश जलवायु संकट का सामना कर रहे हैं। हाल के दिनों में कई देशों में इसका दुष्परिणाम भी दिखा। एक तरफ भारत में लगातार बारिश, बाढ़ और भूस्खलन का सबब बनी तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप में गर्मी कहर बनकर टूटी। अमेरिका में करीब 11 करोड़ लोग गर्मी से प्रभावित हुए हैं। जलवायु संकट से यूरोप भी अछूता नहीं है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी को बकायदा चेतावनी करनी पडी है कि आने वाले समय में इटली, फ्रांस, जर्मनी और पोलैंड में लोगों को अधिक गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। पश्चिमी देशों में इसकी वजह से पारा लगातार बढ़ता जा रहा है। खासकर, दुनिया के सबसे गर्म स्थानों में से एक कैलिफोर्निया की डेथ वैली में रविवार को तापमान 53 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया। ऐसे में यह जरूरी है कि दुनिया के सभी देश मिलकर जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए प्रयास करें। संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में होने वाली बैठकों से आगे बढ़कर अब जमीनी स्तर पर बदलाव की जरूरत महसूस की जाने लगी है। सर्वाधिक आबादी वाला देश होने के कारण भारत की इसमें निर्णायक भूमिका होगी।

केंद्र की मोदी सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सराहनीय प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री ने जलवायु संकट से जूझ रही दुनिया को एक नई राह दिखाई है। 2021 में फ्रांस में संपन्न COP 26 सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने विश्व के सामने LiFE (लाइफ) यानी ‘लाइफस्टाइल फॉर द इन्वायरमेंट’  की अवधारणा रखी और इसे अपनाने का वैश्विक आह्वान किया। उन्होंने 3आर- रीयूज, रिड्यूस और रिसाइकिल का मंत्र दिया। इतना ही नहीं भारत ने जलवायु संकट से निपटने के लिए दुनिया को पंचामृत का सौगात दिया। भारत ने 2030 तक कुल प्रोजेक्टेड कार्बन उत्सर्जन में एक बिलियन टन की कमी की भी प्रतिबद्ध जताई है। इसके लिए केंद्र सरकार भगीरथ प्रयास कर रही है। रेलवे समेत विभिन्न सेक्टरों में आमूलचूल परिवर्तन किए जा रहे हैं। रेलवे ने अपने आप को 2030 तक ‘Net Zero’ बनाने का लक्ष्य रखा है। यदि रेलवे ऐसा करने में सफल हो जाती है तो अकेले इस पहल से सालाना 60 मिलियन टन एमिशन की कमी होगी। केंद्र सरकार एलईडी बल्ब लगाने को प्रोत्साहित कर रही है। एलईडी बल्ब अभियान से सालाना 40 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन कम हो रहा है।

सरकारी प्रयासों से इतर पर्यावरण संरक्षण के लिए जन-जन का जागरूक होना अति महत्वपूर्ण है। जन जागरूकता में देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य यूपी की भूमिका निर्णायक है। यूपी की गिनती जनसंख्या के हिसाब से छठे बडे देश में हो सकती है। यूपी की आबादी 23 करोड़ है जो ब्राजील से अधिक है। जनसंख्या के हिसाब से ब्राजील दुनिया का छठा बडा देश है, यहां की आबादी 21 करोड़ है। यूपी की जनसंख्या चिली, पाकिस्तान के बराबर है। अफ्रीका, यूरोप, दक्षिण अमेरिका के हर देश में यूपी की तुलना में कम लोग रहते हैं। इसलिए जरूरी है कि पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी योजनाओं को यूपी में गंभीरता के साथ लागू किया जाए। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार मिशन मोड में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रही है। भारत सरकार के आंकडें भी इसकी पुष्टि करते हैं। यूपी में 2017 से 2022 तक 136.98 करोड़ वृक्षारोपण किया गया। अकेले 2022-23 में 35.49 करोड वृक्षारोपण हुआ। इसके सकारात्मक परिणाम अब सामने आने लगे हैं।

वनाच्छादन 5.97 प्रतिशत से बढ़कर वर्तमान में 6.15 प्रतिशत हो गया है। वहीं वृक्षाच्छादन 2.92 प्रतिशत से बढ़कर 3.08 प्रतिशत तक पहुंच गया है। कुल हरित क्षेत्र का दायरा भी बढा है। 2015 में कुल हरित क्षेत्रफल 8.89 प्रतिशत था जो अब 9.23 प्रतिशत हो गया है। यूपी सरकार प्रत्येक जिलों में जन जागरूकता अभियान चला रही है। लोगों को पर्यावरण संरक्षण की सीख दी जा रही है। विगत महीने ऑनलाइन शपथ भी दिलाई गई। यूपी के लिहाज से यह बहुत जरूरी भी है, क्योंकि एक दो नहीं कुल 27 जिले जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से संवेदनशील है। चित्रकूट, श्रावस्ती, बदायूं, मुरादाबाद, रायबरेली, औरैया संवेदनशील हैं। खुद यूपी सरकार की रिपोर्ट में इन जिलों का जिक्र किया गया है। यहां ग्रीन हाउस गैसों के अधिक उत्सर्जन की वजह से सामान्य से कम बारिश होने या ज्यादा बारिश होने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। सरकार इन जिलों को ‘क्लाइमेट स्मार्ट’ बनाने की योजना पर काम कर रही है।

पहले चरण में इन जिलों की एक-एक पंचायत को जलवायु मित्र पंचायत के तौर पर विकसित किया जाएगा। यह एक सकारात्मक पहल है। लेकिन प्रशासनिक अमले को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह योजना कागजों पर जितनी अच्छी दिख रही है उतने ही बेहतर तरीके से जमीनी स्तर पर भी लागू हो। आमतौर पर देखा जाता है कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर बृहद पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान शुरू किया जाता है। यह अभियान गांवों की अपेक्षा शहरों में अधिक व्यापकता के साथ लागू किया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि गांवों में हरियाली कम हुई है। खेतों के आसपास हरे वृक्ष अब पहले की अपेक्षा कम दिखाई देते है। गत वर्ष यूपी के वन एवं पर्यावरण के अपर मुख्य सचिव ने बयान दिया था कि प्रदेश के 70 प्रतिशत खेत ऐसे हैं, जिनमें एक भी पेड़ नहीं हैं। यही वजह है कि सरकार कृषि वानकी को बढ़ावा दे रही है।

गर्मी का एक और असर गेहूं के उत्पादन में कमी के रूप में भी दिखा। हालही में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि तापमान बढ़ने से 2050 तक चावल, गेहूं और मक्का की पैदावार में कमी आ सकती है। इतना तो साफ है कि जलवायु संकट और कृषि का गहरा संबंध अब आम आदमी की समझ में भी आने लगा है। पूर्व के मुकाबले लोगों में जागरूकता का स्तर बढ़ा है। यूपी सरकार भी अभियान चलाकर वृक्षारोपण कर रही है। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पूरी दुनिया में मरुस्थलीकरण बढ़ रहा है।  स्टेट ऑफ इंडियाज इन्वायरमेंट इन फिगर्स ने भारत में मरुस्थलीकरण के आंकड़े जारी किए हैं। आंकड़ों की मानें तो यह चिंताजनक स्थिति है कि भूमि की गुणवत्ता कमजोर हो रही है। बंजरपन लगातार बढ़ रहा है और मिट्टी का कटाव भी हो रहा है। मरुस्थलीकरण के लगातार बढ़ने के आंकडें चौंकाने वाले हैं। भारत में पंजाब और हरियाणा तक इसका असर देखने को मिल रहा है। आने वाले समय में पश्चिमी यूपी में भी इसका असर दिखे उससे पहले ही प्रदेश सरकार भविष्य को ध्यान में रखते हुए प्रयास कर रही है। इस सराहनीय पहल की तारीफ करनी चाहिए।

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