किले के तीन मशहूर बुर्जों में से आखिरी बुर्ज यह है। यह बुर्ज दरिया की तरफ हम्माम से थोड़ी दूर किला सलीमगढ़ से मिला हुआ है। यह हीरा महल के उत्तर-पूर्व के कोने में है। यह तीन मंजिला था और दरिया पार से इसका दृश्य बहुत सुंदर दिखाई देता था। 1784 ई. में शाह आलम का वलीअहद जवांबख्त अपने बाप के मंत्रियों की सख्ती से तंग होकर इसी बुर्ज पर से पगड़ियां लटकाकर भागा था और अंग्रेजों के पास लखनऊ चला गया था।

बुर्ज उत्तरी भी कहलाता है। अब इस बुर्ज की दो ही मंजिलें बाकी हैं। गुंबद गदर में उड़ गया था। दक्षिण की और का संगमरमर का बरामदा बहुत सुंदर है। अब हालत खराब होती जा रही है। यह पूर्व से पश्चिम तक 69 फुट 2 इंच और उत्तर से दक्षिण तक 33 फुट है। गदर के बाद इसमें फौजी पहरेदार रहा करते थे। 1904 ई. में इसे उनसे खाली करा लिया गया। इस बुर्ज और हम्माम के बीच में 1911 ई. में एक चबूतरा बनाकर तख्ता घास लगा दिया गया है। संगमरमर के बरामदे के पीछे गुंबद के नीचे के कमरे की छत पर शीशे लगे थे।

इस बुर्ज का व्यास 100 गज है और इसके तीन हिस्से हैं। पहले हिस्से को जमीन से बारह गज की कुर्सी देकर बनाया है। उसकी छत अंदर से गोल और ऊपर से चपटी है। तमाम इमारत पत्थर की बनी हुई है। इजारे तक संगमरमर है, जिसमें रंग-बिरंगे पत्थरों की पच्चीकारी है। इजारे से छत तक संगपठानी है, जिसको पालिश करके सफेद कर दिया है और सुनहरी बेल-बूटे बनाए गए हैं।

दूसरा हिस्सा अठपहलू है। इसका व्यास आठ गज है। इसमें चार ताक हैं। ताक की लंबाई-चौड़ाई उत्तर और पूर्व की चार-चार गज है। पश्चिमी और दक्षिणी ताक की लंबाई चार गज और चौड़ाई तीन गज है। तीसरे दरजे के बीच में एक हौज तीन गज व्यास का निहायत खूबसूरत है। पश्चिमी ताक में एक आवशार है और छोटे-छोटे महराबदार ताक बने हुए हैं, जिनमें दिन को फूल और रात को दीपक रखते थे।

इस आबशार (चद्दर) के आगे 3.5 फुट x 2.5 फुट का संगमरमर का एक हौज है। इस हौज से पूर्वी ताक के किनारे तक एक नहर डेढ़ गज चौड़ी खालिस संगमरमर की है। इस नहर में से एक नहर निकलकर पश्चिमी हौज के ताक में पड़ती है। उससे बुर्ज की नहर में आकर मुसम्मन हौज में से होकर पूर्वी ताक की तरफ बहती है। उसके नीचे दरिया की तरफ एक आबशार बना हुआ है। सारे किले में उसी जगह से नहर गई है और हर जगह पानी जाने की खिड़कियां इसी बुर्ज में बनी हुई हैं। हर एक पर जहां-जहां पानी जाता है, उस जगह के नाम लिखे हुए हैं।

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