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Indraprastha college for women दिल्ली के इतिहास में साल 1911 कई मायनों में अहम है। ब्रितानिया हुकूमत ने 1911 में कलकत्ता से बदलकर दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई। राजधानी बनने से दिल्ली के स्थानीय समुदायों की सोच में भी व्यापक बदलाव आया। जिसका असर यहां के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में भी दिखा। ऐसी परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में ही वर्ष 1924 में दिल्ली का पहला महिला कॉलेज, इंद्रप्रस्थ कॉलेज बना। वर्तमान में यह दिल्ली विश्वविद्यालय से संबंद्ध है।

Indraprastha college for women यहां यह जानना दिलचस्प है कि इस कॉलेज की स्थापना का एक सिरा साल 1904 तक जाता है क्योंकि इसी वर्ष दिल्ली के एक धनी लाला बालकिशन दास ने जामा मस्जिद की पीछे एक हवेली में लड़कियों का स्कूल शुरू कराया। वहीं लाला जुगल किशोर ने राजधानी के कायस्थ परिवारों को अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने की जरूरत के बारे में समझाने की पहल की।

Indraprastha college for women ने भारतीय भाषाओं को दिया बढ़ावा

इस स्कूल ने आधुनिक स्कूल के लिए अंग्रेजी भाषा की अनिवार्यता के मिथक को तोड़ते हुए शिक्षा के माध्यम के रूप में हिन्दी का अपनाते हुए भारतीय भाषा का बढ़ावा दिया। जबकि अंग्रेजी एक विषय के रूप में उपलब्ध थी। यह इस बात को रेखांकित करने का एक सफल प्रयास था कि जनसाधारण की भाषा में आधुनिक विचारों का फैलाव तेजी से गहराई तक हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि हिंदी को शिक्षा के माध्यम के रूप में शुरू करके स्कूल ने दादाभाई नौरोजी, न्यायमूर्ति गोविन्द रानडे, बाल गंगाधर तिलक, महर्षि अरविंद और महात्मा गांधी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं की मांग को साकार किया। ये सभी राष्ट्रीय नेता शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के व्यापक उपयोग के लिए आंदोलनरत थे। दूसरी जरूरी बात यह थी कि इंद्रप्रस्थ स्कूल के संस्थापक उस समय के अनेक रूढ़िवादी मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के परिवारों को यह समझाने में सफल रहे कि उनकी बेटियों को घर की दहलीज लांघ कर पढ़ने के लिए बाहर आने पर भी उनके पारंपरिक मूल्य सुरक्षित रहेंगे। इंद्रप्रस्थ कॉलेज भी इस संस्थान का एक अभिन्न हिस्सा था।

पांच छात्राओं के साथ शुरू हुआ कॉलेज

Indraprastha college for women पांच छात्राओं के साथ शुरू हुआ। इंद्रप्रस्थ कॉलेज की कक्षाएं स्कूल के कुछ अतिरिक्त कमरों से हुई। एक ऑस्ट्रेलियाई थिओसोफिस्ट मिस लियोनार जी मेइनर कॉलेज की पहली प्राचार्य थी। इस कालेज को चलाने के लिए पैसों का इंतजाम के हिसाब से दिल्ली के प्रतिष्ठित नागरिकों ने एक कोष बनाया। इन नागरिकों में लाला बालकिशन दास, लाला प्यारीलाल और लाला जुगल किशोर प्रमुख थे।

वर्ष 1934 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज सिविल लाइंस की रामचंद्र लेन में स्थित चन्द्रावती भवन नामक एक निजी बंगले में आ गया। यह बंगला लाला प्यारेलाल मोटरवाला के बनाए अशरफ देवी और चंद्रावती देवी ट्रस्ट की सम्पत्ति था। 1938 में आखिरकार अलीपुर हाउस में आ गया जो कि नई दिल्ली में राजधानी स्थानांतरित होने से पूर्व सिविल लाइंस में राजधानी होने के समय सेना के कमांडर-इन-चीफ का विशाल कार्यालय होता था।

जाति और समुदायों के बंधनों से परे कॉलेज

1932-33 में दिल्ली विश्वविद्यालय में कुल 83 छात्राएं थी, जिनमें से 62 इंटरमीडिएट कला और विज्ञान वर्ग में, 16 बीए और बीएससी में तथा पांच छात्राएं एमए में पढ़ रही थी। तत्कालीन समाज के कुछ वर्गों की स्त्रियों में पर्दा प्रथा होने के कारण वर्ष 1926 में दिल्ली विश्वविद्यालय ने महिला उम्मीदवारों को किसी एक कॉलेज या विश्वविद्यालय में नियमित पाठ्यक्रम में एडमिशन लिए बिना विश्वविद्यालय परीक्षा देने की अनुमति के संबंध में एक अध्यादेश जारी किया।

इंद्रप्रस्थ कालेज जाति और समुदायों के बंधन से परे जाकर सभी महिलाओं के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने के लिए कटिबद्व था। कालेज के इन्हीं मूल्यों के प्रोत्साहन के कारण न केवल हिंदू बल्कि बड़ी संख्या में मुस्लिम परिवारों ने भी अपनी बेटियों को यहां पढ़ने के लिए भेजा। इंद्रप्रस्थ कालेज और स्कूल के इस चरित्र के कारण 1930 के दशक तक मुस्लिम लड़कियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। इतना ही नहीं, इंद्रप्रस्थ कॉलेज का महत्व स्वतंत्रता के राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका सहित समय-समय पर अनेक राजनीतिक-सामाजिक गतिविधियों के योगदान में भी निहित है। Indraprastha college for women

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