अलाई दरवाजे (1310 ई.) का दिलचस्प इतिहास

कुतुब मीनार के पास यह बड़ा आलीशान गुंबददार दरवाजा अलाउद्दीन खिलजी ने 1310 ई. में बनवाया था। उसी के नाम पर इसका नाम पड़ा है। जनरल कनिंघम ने इसकी बाबत लिखा है- ‘अफगानों की जितनी इमारतें देखने में आईं, उन सबमें यह बेहतरीन है।’

फर्ग्यूसन ने इसके संबंध में लिखा है- ‘इस इमारत को देखने से प्रतीत होता है कि इस काल में पठानों की गृह निर्माण कला अपने सर्वोच्च वैभव को पहुंच चुकी थी और हिंदू निर्माताओं ने मुसलमानों के अति सुंदर और लाजवाब ढंग को काफी हस्तगत कर लिया था।’

यह दरवाजा, जो स्वयं एक पूरी इमारत है, अलाउद्दीन द्वारा निर्मित दक्षिणी दालान में है। संभव है कि यह मस्जिद का शहर की ओर का दरवाजा रहा हो। इसके बनाने की तिथि पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी महराबों पर लिखी हुई है। यह इमारत चौकोर बनी हुई है।

अंदर से 34.5 मुरब्बा फुट से थोड़ी अधिक ओर बाहर से 56.5 मुरब्बा फुट है। दीवारें 11 फुट मोटी हैं। दरवाजे की ऊंचाई 47 फुट है। इमारत नीचे से चौकोर है, मगर ऊपर जाकर अष्टकोण हो गई है। इस पर गुंबद बना हुआ है। चारों तरफ के कोनों में कई महराबदार सुंदर आले निकाले गए हैं।

चारों ओर के दरवाजों पर बहुत बढ़िया बेल-बूटे और नक्काशी का काम हुआ है। जगह-जगह कुरान की आयतें खुदी हैं। इसकी तमाम रोकार पच्चीकारी के काम से भरी हुई है। कोई जगह ऐसी नहीं है, जो कारीगरी के काम से खाली हो । हर दरवाजे के दोनों ओर दो-दो खिड़कियां हैं। इनमें निहायत उम्दा संगमरमर की जालियां निहायत बारीक और नाजुक काम वाली लगी हुई हैं। खिड़कियों के ऊपर एक-एक आला बना हुआ है, जो दूर से खिड़कियों की तरह नजर आते हैं। जगह-जगह फूल-पत्तियां और बेल-बूटे खुदे हुए हैं। 1827 ई. में इस दरवाजे की मरम्मत मेजर स्मिथ द्वारा करवाई गई थी।

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