चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन के पास एक हवेली रजिया बेगम के नाम से जानी जाती है। यह राजी-उन-निसा बेगम से संबंधित है जो नवाब कमरुद्दीन खान की बेटी थी। ये मोहम्मद शाह के शासनकाल में बड़े रईस थे।इनके नाम पर एक कूचा भी यहां है राजा बेगम। नवाब की तीन बेटियां थी। राजी उन निशा, शाह तारा और फत-उन-निशा बेगम। हौजकाजी से अजमेरी गेट तक का बड़ा हिस्सा नवाब साहब का ही था। राना सफवी लिखती हैं कि हवेली वर्तमान में अतिक्रमणकी जद में है। यहां रिक्शा खड़े होते हैं। वर्तमान में यह कई भागों में विभाजित हो चुका है। यहां उनकी मुलाकात राजा लाल से हुई। 90 वर्षीय राजा लाल ने बताया कि उनका परिवार कई वर्षों से रह रहा है। इनके पिता एवं दादा जी भी यहीं रहे थे। राना कहती हैं कि इस तरह यह तो साफ हो गया कि यह हवेली 19वीं शताब्दी की है। नवाब कमरुद्दीन खान हवेली को मुगल जनरल मिर्जा नजफ खान ने 1779-1782 के बीच अधिकृत किया था। इस समय मिर्जा नजफ वजीर थे। इनकी मौत के बाद इनकी बहन खादिजा बेगम रहने लगी। जबकि इसके एक बड़े हिस्से पर कमरुद्दीन खान की बेटी रहती थीं।
सैदुल्ला खान की हवेली
सैदुल्ला खान बादशाह शाजहां के वजीर थे। इन्हीं के सुपरविजन में लाल किला और जामा मस्जिद का निर्माण हुआ था। इनकी हवेली लाल किले के पास दक्षिण की तरफ थी। नजदीक बनाए जाने के पीछे एक कारण इनके नेतृत्व में किले का निर्माण हाेना भी था। लाल किले के सामने चौक भी कभी सैदुल्ला चौक के नाम से जानाजाता था। लेकिन अब इनसे जुड़ी ाबातें सिर्फ किताबों में ही मिलती है।
जीनत महल
लाल कुअां की पिछली गलियों में फतेहपुरी मस्जिद से निकलकर, एक हवेली दिखती है। यह लंबे अरसे से भूला दी गई हवेली है। राहगीर इस ऐतिहासिक हवेली के सामने से गुजरते रहते है, बिना ये जाने की हवेली का इतिहास क्या है। पहली मंजिल पर अग्रभाग का एक भाग ऐसा प्रतीत होता है मानो समय के साथ ठहर गया हो। खूबसूरत जालियां अभी भी बरकरार है। किसी को यकीन नहीं है कि ज़ीनत महल कहां से शुरू और खत्म होती है। स्थानीय निवासियों के अनुसार, महल एक मुगल सम्राट की पत्नियों में से एक जीनत महल के नाम था और बाद में पटियाला के महाराजा द्वारा खरीदा गया था जिन्होंने इसे एक सरकारी स्कूल में विकसित करने की पहल की थी। फाटकों के अंदर, खूबसूरत लखोरी ईंट का बेहतरीन इस्तेमाल आज भी दिखता है।