मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने शुरू करवाया था रामलीला का मंचन
सोशल मीडिया के जमाने में रामलीला का स्वरूप जरूर बदला है लेकिन परंपरा आज भी दिल्ली के लोगों के बेहद करीब है। यही वजह है कि मुगलों के जमाने में शुरू हुई यह परंपरा आज भी न सिर्फ कायम है बल्कि अलग अलग रूपों में लोगों को जोड़े हुए है। नवरात्रों में दिल्ली शहर उत्सव के शहर में तब्दील हो जाता है। गली कूचों से लेकर बड़े बड़े मैदानों में रामलीला का मंचन होता है। कही रामलीला के नए रंग देखने को मिलते हैं तो कही पुरानी पंरपराओं की खूबसूरत शैली।
बहादुरशाह जफर ने डाली थी नींव
करीब 170 साल पहले शाहजहांनाबाद में धार्मिक सद्भावना कायम करने के लिए आखिरी मुगल बादशाह ने रामलीला मैदान में रामलीला की शुरुआत करवाई। उन्होंने अपने सिपेसलार को इस आयोजन करने के लिए कहा। तब दिल्ली में एक मात्र इसी मैदान में रामलीला का आयोजन होता था। इस आयोजन के हर दिन शोभा यात्रा निकाली जाती थी वो परंपरा आज भी बरकरार है। श्री राम लीला कमेटी के महासचिव राजेश खन्ना बताते हैं चांदनी चौक की गलियों में आज भी रामलीला के कलाकार दस दिनों तक रोजाना शोभा यात्रा निकालते हैं। यह यात्रा साइकल मार्केट से शुरू हो कर दरीबा, चांदनी चौक, टाउन हाल, नई सड़क, चावड़ी, हौजकाजी, अजमेरी गेट होते हुए रामलीला मैदान पहुंचती है। इस यात्रा में पूरी दिल्ली शामिल हो जाती है। कई लोग इस यात्रा के साथ हो लेते हैं। रोजाना आठ किलोमीटर का रास्ता तय कर रामलीला का मंचन शुरू होता है। वर्ष 1950 में इस मैदान का नाम रामलीला मैदान रखा गया। इस मैदान के करीब एक तालाब हुआ करता था जिसमें केवट प्रसंग का मंचन होता था। अब उस स्थान पर सिविक सेंटर का मुख्यालय है। आजादी के समय दिल्ली की जनसंख्या करीब चार लाख हुआ करती थी। इस रामलीला को देखने के लिए दिल्ली के दूरदराज के लोग देखने आते हैं।
रामानंद सागर की रामलीला का क्रेज आज भी
80 के दशक में जब रामानंद सागर की रामायण शुरू हुआ करती थी, तो सड़कें भी सूनी हो जाया करती थी। उसी रामायण की रोचकता आज भी बरकरार है। शास्त्री पार्क की विश्वअवतार रामलीला कमेटी के सचिव दीवाकर पांडे बताते हैं कि पार्क में आज भी लोग इसी रामायण को देखने के लिए जमा होते हैं। पहले छोटे पर्दे पर इसे प्रदर्शित की जाती थी अब इसे 10 बाइ 30 फुट के स्क्रीन पर रामायण दिखाई जाती है। 1 अक्टूबर से रात 8-12 बजे तक इसी धारावाहिक को लोग देखने दूर दूर से आते हैं।
मुस्लिम कलाकारों भी बढ़ चढ़ कर करते हैं रामलीला
उत्तर पूर्वी दिल्ली के जीटीबी एंक्लेव इलाके में होने वाली श्री आदर्श रामलीला में मुस्लिम कलाकार भी बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं। इस रामलीला में मंच सज्जा से लेकर अभिनय क्षेत्र में भी मुस्लिम कलाकार डायलोग बोलते नजर आते हैं। मुरादाबाद से आने वाले कलाकारों में बड़ी संख्या में मुस्लिम कलाकार भी इसमें अपनी भागीदारी निभाते हैं। इस कमेटी में हिंदू, मुस्लिम, सिख धर्म के लोगो का भी पूरा सहयोग एवं योगदान रहता है। रामलीला में जटायु के रूप में फिरोज नजर आते हैं, दरबारी राजा का रोल भी खुद निभाते हैं। कलाकारों की वेशभूषा एवं साज सज्जा का काम करने वाले मोहम्मद तस्लीम बताते हैं कि कला कभी भी किसी धर्म की मोहताज नहीं रही है और सबसे बड़ा धर्म अपने काम के प्रति ईमानदारी है।
अब भी होती है पारसी शैली में रामलीला
लालकिले परिसर में आयोजित होने वाली नव श्री धार्मिक लीला कमेटी में अब भी पारसी शैली की रामलीला का मंचन किया जाता है। मुरादाबाद से यहां रामलीला के कलाकार आते हैं। इस रामलीला के पदाधिकारी बताते हैं कि समय गुजरने के साथ भी इस लीला के शैली में बदलाव नहीं हुआ है। इस शैली में पर्दे के पीछे से ही सारे संवाद काव्य शैली में बोले जाते हैं। पहले सारे संवाद बोलने वाले कलाकारों को घंटों प्रैक्टिस करनी पड़ती थी लेकिन अब कई पात्रों के संवाद को रिकॉर्ड कर लिया गया है। इसलिए गलतियां होने की संभावनाएं कम हो गई है। सारे संवाद आज भी काव्य शैली में ही बोली जा रही है। पर्दे के पीछे और आगे के कलाकारों के बीच सामंजस्य बेहद जरुरी है। इसलिए दोनों कलाकारों को साथ में प्रैक्टिस कराया जा रहा है। ज्यादातर कलाकार पुराने हैं तो उन्हें संवाद याद रहते हैं लेकिन दिक्कत सीता के रोल में आती है। सीता की तलाश भी जितनी ममुश्किल है उतनी ही उसे ट्रेनिंग देना टेढ़ी खीर साबित होता है। सीता में सभी भाव होने चाहिए। वे बताते हैं कि उनकी रामलीला में सुनीधी चौहान के पिता दुष्यंत चौहान भी राम की भूमिका निभाते थे। अच्छे कलाकारों में से एक हैं। रावण की हंसी भी निकाल पाना सबके बस की बात नहीं है। कई पात्र तो शौक से रामलीला करते हैं।
पुरुष ही करते हैं सीता का किरदार
समय बदलने के साथ रामलीला के मंचन में कई बदलाव भी आए। रामलीला में अब महिलाएं भी किरदार निभाती हैं, लेकिन शास्त्री पार्क में होने वाली रामलीला में प्रस्तुति देने वाले कलाकार पुरुष ही करते हैं। सीता, उनकी सहेलियां श्री गणेश रामलीला कमेटी के अध्यक्ष मणिराज पांडे बताते हैं कि पिछले 33 सालों से यहां रामलीला हो रही है। इन वर्षों में लोगों ने अपनी रामलीला के मंच के साथ अन्य किरदारों में बदलाव किया लेकिन शास्त्री पार्क में आज भी मंच पारंपरिक रामलीला की तरह है।
मोर सराय के बच्चों की रामलीला
पिछले 28 सालों से मोर सराय स्थित बद्रीनाथ बाल रामलीला कमेटी में चंदा जमा करने से लेकर अभिनय करने की जिम्मेदारी भी बच्चे संभालते हैं। इन दिनों भी बच्चों की तैयारी जोरों पर है। रामलीला के आयोजन के एक महीने पहले से ही रेलवे कालोनी के बच्चे जमा होते हैं और डायलोग बोलने की तैयारी करते हैं। राम का किरदार निभाने वाले 15 वर्षीय गौरव चौहान बताते हैं कि इस रामलीला की खासबात यह है कि पुराने कलाकार नए बच्चों को ट्रेनिंग देते हैं। यहां 10 साल से लेकर 15 साल तक के बच्चों को मौका दिया जाता है। छोटे बच्चों को खासतौर पर सिखाया जाता है। इसलिए इसे देखने कालोनी के साथ पुरानी दिल्ली के लोग भी आते हैं।