दिल्ली में कभी हिमालय (himalaya mountain) से भी ऊंची पर्वतमालाओं की श्रृंखला हुआ करती थी, जिसका फैलाव गुजरात तक हुआ करता था। लेकिन आज के हालत को देख शायद ही लोगों को इस बात का भरोसा करेंगे। हालात ये हैं कि अब इनके अस्तित्व को बचाने के लिए सरकारी मुहिम चलाई जा रही है। लोग अपने आशियाने को बसाने के लिए अरावली की पहाड़ियों को खोद रहे हैं, इनमें बसे जीव-जंतु भी अब लुप्त होने के कगार पर हैं। राहत की बात तो यह है कि अब करीब ढाई सौ करोड़ साल पुराने इतिहास को अपने गर्द में छुपाए इन पहाड़ियों को बचाने की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जा रही है। केन्द्रीय सरकार की कोशिशों के साथ कुछ गैरसरकारी संस्थाएं भी जंगल बचाने और बसाने में जुटी हैं। इससे कुछ हद तक अरावली (Arawali hills) की सूरत और सीरत बदली है। यही नहीं अब यहां हेरीटेज वॉक भी आयोजित किए जा रहे हैं और लोग कंक्रीट के जंगलों से उक्ता कर अपने शहर में ही प्रकृति के बीच सुकून के कुछ पलों को बिताना चाह रहे हैं।
अर्जुनगढ़ और गुड़गांव बॉर्डर से सटे अरावली की पहाड़ियों में बसते जंगलों में इन दिनों लोगों की रुचि बढ़ रही है। कंक्रीट के जंगलों को बसाने वालों को अब असल के जंगलों की याद हो आई है। लोग पेड़ों की ठंडक, हरियाली और उसकी शीतलता, चिड़ियों की चहचहाट, सांप बिच्छू जैसे जीव जंतु को देखने के लिए जंगल की ओर रुख कर रहे हैं। लोग सलाई, कुल्लू, कैम, धौऊ, दूधी, बिस्तेंदू, जाल, झाड़, रूंझ जैसे अरावली के पेड़ पौधों को वापस मुस्कुराते हुए देख सुकून महसूस कर रहे हैं। जंगलों में हेरीटेज वॉक किया जा रहा है। हेरीटेज वॉक करवाने वाले सोहेल हाशमी बताते हैं कि लोग अरावली की पहाड़ियों के इतिहास और उसकी विशालता को यहां आकर महसूस कर रहे हैं। खासकर सर्दियों में तो लोग वन्य जीव को देखने के लिए यहां कई किलोमीटर तक पैदल चलते हैं। अरावली की पहाड़ियों के ऊपर से निगाह डालें तो नजरें उन पहाड़ों को भी देख पाते हैं जो अब नंगे हो चुके हैं।

वहां पत्थर की खोदाई के चलते पहाड़ जीवनहीन दिखता है। इन सब के बीच कुछ छोटे-छोटे तालाब भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं। बारिश के बाद इन जंगलों में घास की पगडंडियों पर भी घास उग आई है। इन झाड़ियों के बीच झींगूर की आवाज भी यहां हमसफर बन जाते हैं। वहीं, अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क में तो डीडीए तितली, गुलाब, बॉगेनविलिया जैसे तमाम फूलों को भी लगाने का काम हो रहा है। इन सब के बीच एडवेंचर का शौक रखने वाले भी छोटे छोटे जंगलों में पहुंच रहे हैं। असोला, भाटी माइंस में लोग एडवेंचर की खोज में आने लगे हैं। अब यहां लोग साइकिल पर सवार हो कर जंगलों की सैर करते हैं। शनिवार इतवार को जंगल देखने वालों की भीड़ सी लग जाती है। साफ है लोगों को देर से ही सही जंगल की अहमियत का अंदाजा हो गया है।

कभी अरावली से हिमालय की बर्फ को देखा जा सकता था..

दिवंगत इतिहासकार आरवी स्मिथ बताते थे कि कभी राजधानी में अरावली की पहाड़ियां इतनी ऊंची थी कि अंग्रेज इन पर चढ़ कर हिमालय की बर्फ को

देख लिया करते थे। उस समय गगनचुंबी इमारतें नहीं हुआ करती थी जिसके कारण हिमालय के पर्वत भी यहां से देखे जा सकते थे। यह बात कई इतिहासकारों ने अपनी किताबों में लिखा है। राजधानी में अरावली और उस पर बसे जंगलों में कई ऐतिहासिक घटनाओं की कहानी भी छुपी हुई हैं और इसके गवाह वहां बने शिकार गाह हैं। राजा महाराजा अपने मनोरंजन के लिए इन जंगलों में शिकार पर जाया करते थे। यही वजह है कि रिज क्षेत्र में कई स्मारक बने जिसमें से शिकारगाह की संख्या काफी है। इसके साथ मोहम्मद गौरी ने जब पृथ्वीराज चौहान पर हमला किया था तो इसी जंगलों में उसने पनाह ली। कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान की बेटी सूरजमुखी( बेला) ने इन्हीं जंगलों में पति आलाह के मरने के बाद दासियों के साथ सती हो गई थी। झंडेवालन में बेला का भी मंदिर देखा जा सकता है। फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली के रिज में शिकार खूब किया। इसलिए उसने तीन स्थानों पर शिकारगाह बनाएं। दिल्ली में जहां-जहां जंगल के क्षेत्र हैं वो अरावली का भाग है। यानि अरावली की पहाड़ियों में बसे जंगल उत्तरी दिल्ली के रिज से होते हुए जामा मस्जिद, पूसा, करोलबाग राष्ट्रपति भवन, दक्षिणी रिज से होते हुए फरीदाबाद और गुड़गांव की ओर चला जाता है। जामा मस्जिद अरावली की पहाड़ियों को काट कर बनाया गया था। इसके अलावा राष्ट्रपति भवन भी रिज के जंगलों को काट कर बनाया गया है। अरावली की इन पहाड़ियों में गूर्जर समुदाय के लोग और डकैतों का बोलबाला रहा करता था। सालों पहले इन जंगलों में प्रोक्यूपाइन बहुत हुआ करते थे, जंगलों में रहने वाले डकैत इन्हीं का गोश्त खाकर जीवित रहा करते थे। तेंदुआ भी रहा करता था। दिल्ली बारिश के लिए भी जानी जाती थी। इन्हीं जंगलों की वजह से यहां बारिश खूब हुआ करती थी। दो महीने लगातार बारिश हुआ करती थी।


जंगल में बनाए जाते थे शिकारगाह

डॉ. प्रियालीन सिंह, प्रोफेसर, आर्किटेक्चर कंजर्वेशन

राजधानी के उत्तरी रिज और दक्षिणी रिज में वनस्पति से भरा जंगल है तो वहां कुछ ऐतिहासिक स्मारक भी हैं। उत्तरी रिज में फ्लैगस्टाफ टावर, चौबुर्जी मस्जिद, पीर गायब, अशोक स्तंभ, अजीतगढ़ और विद्रोह स्मारक हैं। वहीं, दक्षिणी दिल्ली रिज में शिकारगाह, भूली भटियारी का महल भी जर्जर हालात में हैं। फिरोजशाह तुगलक के जमाने में बने शिकारगाह ठहरने और शिकार के मकसद से बनाए जाते थे। इसलिए इन स्मारकों में मजबूती और ऊंचाई खास बात है। वहीं, जौंटी गांव में बने शिकारगाह का आर्किटेक्ट बेहद अलग है। इसमें इमारतों को खूबसूरत बनाने पर भी जोर दिया गया है। शाहजहांनी आर्किटेक्ट में स्मारकों के बाहर गार्डन भी बनाए जाते हैं। ऐसे ही कुछ स्मारक शालीमार गार्डन में भी देखे जा सकते हैं जहां बेगमों के लिए खास कमरे बनाए जाते थे। इससे पता चलता है कि बेगम भी शिकार खेलने जंगलों में आया करती थीं।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here