अकबर के पश्चात जहांगीर तख्त पर बैठा। अकबर ने अपने जीवन-काल में ही इसे राजगद्दी का उत्तराधिकारी बना दिया था। इसके दो भाई अकबर के सामने ही मर चुके थे। जहांगीर 1605 ई. में गद्दी पर बैठा। इसने भी आगरा को ही राजधानी कायम रखा। जहांगीर को कश्मीर बहुत पसंद था और गर्मियां वह वहीं बिताया करता था।

अक्तूबर 1627 में कश्मीर से वापसी पर वह अचानक बीमार हुआ और 59 वर्ष की आयु में 22 वर्ष के शासन के पश्चात इतवार के दिन मृत्यु को प्राप्त हुआ और लाहौर के करीब शाहदरा में एक निहायत शानदार मकबरे में, जो रावी नदी के किनारे बना हुआ है, दफन किया गया।

इसके जमाने की बहुत कम इमारतें बनी हुई हैं। आगरा में बेशक हैं, मगर दिल्ली में तो चंद ही हैं, जिनमें चौसठ खंभा, अरब सराय का पूर्वी द्वार, फरीद खां की कारवां सराय, फाहिम खां का मकबरा और खानखाना का मकबरा उल्लेखनीय हैं। सलीमगढ़ का यमुना पर का पुल भी इसी ने बनवाया था।

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