बाकी बिल्लाह काबुल के रहने वाले थे। यह अकबर बादशाह के अहद में दिल्ली आए और 1603 ई. में इनकी मृत्यु हुई। इनको दिल्ली के पश्चिम में नबीकरीम के करीब दफन किया गया। ये नक्शेबंदियों में से थे और इनका दावा था कि मोहम्मद साहब ने स्वप्न में इन्हें उपदेश दिया था। इनकी पूजनीयता का अंदाजा इससे हो सकता है कि इनकी कब्र को लोग बड़ी श्रद्धा-भक्ति से देखते हैं और हजारों आदमी वहां जियारत को जाते हैं। इनकी कब्र कई एकड़ जमीन के एक अहाते में बनी हुई है, जिसकी नौची-नीची दीवारें हैं और यह एक बाकायदा कब्रिस्तान है।
बाकी बिल्लाहियों की कब्रें नीचे चबूतरों पर बनी हुई हैं। पहला चबूतरा कोई 24 फुट मुरब्बा है, जिसके चारों ओर कोई डेढ़ फुट ऊंची खारे के पत्थर की दीवार है, दूसरा 12 फुट मुरब्बा है, जिसके गिर्द एक फुट ऊंची दीवार है। इस दूसरे चबूतरे पर एक जनाने की शक्ल का मजार है। कब्र के सिरहाने तीन महराबों की एक दीवार है, जिसमें दीपकों के लिए सूराख बने हुए हैं। कब्र के दाएं हाथ एक मस्जिद है, जिसमें महराबदार पांच दरवाजे हैं।
अफसर खां सराय का मकबरा
यह मक़बरा अरब की सराय में एक चबूतरे पर बना हुआ है। साथ में मस्जिद भी है। इसको किसने बनवाया, इसका पता नहीं चलता।