यह बाग, जिसका अब कोई निशान बाकी नहीं रहा, मोती मस्जिद के उत्तर में था। 1902 ई. में यह मलबे के नीचे दबा पड़ा था और बाकी हिस्सा सड़कों में आ गया था। इसकी नहरें, रविरों, झरने, नालियां, टूट-फूटकर तबाह हो गई थीं। लार्ड कर्जन ने इसे 1904 ई. में ठीक करवाया था। जब यह अपनी असली हालत में था तो इसका नक्शा इस प्रकार था :

बाग के बीचोंबीच एक बड़ा हौज था। चारों ओर लाल पत्थर की नहरें छह गज चौड़ी थीं। हर नहर में तीस-तीस फव्वारे चांदी के छूटते थे और रविश में नहर का पानी आता था। हौज के दो तरफ जो मकान उनको सावन-भादों कहते थे। इस बाग की लंबाई 150 गज और चौड़ाई 125 गज थी। बीच वाले हौज की लंबाई 158 फुट और चौड़ाई 153 फुट है। हौज के बीच में 49 फव्वारे चांदी के लगे हुए थे, जो हरदम छूटा करते थे। इनके अतिरिक्त हौज के चारों ओर 112 फव्वारे चांदी के हौज की जानिब झुके हुए थे इन फव्वारों का भी अब नाम नहीं रहा। हौज के गिर्द जंगला लगा हुआ था, जिसका ऊपरी हिस्सा शाहजहां के काल का नहीं है, बल्कि वहादुर शाह सानी के जमाने का प्रतीत होता है।

महताब बाग

हयात बाग के पश्चिम में यह बाग किसी जमाने में देखने योग्य था। मगर मुद्दतें हुईं, उजड़ गया। इसके चप्पे-चप्पे में नहर और हौज थे।

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